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फ़ैक्ट चेक

मार्च में जारी मास्क का यह सरकारी विज्ञापन अब क्यों वायरल हो रहा है!

बूम ने पाया कि यह विज्ञापन मार्च 2020 में जारी किया गया था, उस समय मास्क पहनना अनिवार्य नहीं था। वायरल पोस्ट भ्रामक है।

By - Shachi Sutaria | 26 Aug 2020 11:42 AM GMT

सोशल मीडिया पर इन दिनों एक सरकारी विज्ञापन जमकर वायरल हो रहा है। महामारी की शुरुआत में पब्लिक हेल्थ एडवाइजरी के द्वारा जारी मास्क को लेकर विज्ञापन, जिसमें 'एक स्वस्थ व्यक्ति को मास्क पहनने की ज़रूरत नहीं है' बताया गया है, ग़लत संदर्भ में वायरल हो रहा है ।

बूम ने पाया कि यह वीडियो मध्यप्रदेश सरकार और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन ने मार्च 2020 में जारी किया था । भारत में कोविड-19 अपने शुरुआती दौर में था और उस समय मास्क पहनना अनिवार्य नहीं हुआ था।

वीडियो ऐसे समय में वायरल हो रहा है जब कई मास्क विरोधी लोग मास्क पहनने की ज़रूरत पर सवाल उठा रहे हैं।

क्या 'मास्क' वायरस को मार सकता है? फ़ैक्टचेक

वायरल वीडियो के अंत में मध्यप्रदेश सरकार और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन का लोगो देखा जा सकता है। इसे मंत्रालय के नवीनतम दिशानिर्देश के रूप में शेयर किया जा रहा है। वीडियो के कैप्शन में लिखा है, "स्वस्थ लोग मास्क नहीं पहनते....सौजन्य से भारत सरकार"

इस 35 सेकंड के वीडियो में तीन परिस्थितियों में मास्क पहनना ज़रूरी बताया गया है - अस्पताल जाते समय, किसी बीमार से मिलते समय और तीसरा कोविड-19 के लक्षण दिखने की स्थिति में। वीडियो में ज़ोर देकर कहा गया है कि एक स्वस्थ व्यक्ति को मास्क पहनना ज़रूरी नहीं है |


यह वीडियो फ़ेसबुक और यूट्यूब पर ख़ूब वायरल हो रहा है।Full View

आर्काइव यहां और यहां देखें

यह वीडियो व्लादिमीर पुतिन की बेटी को कोवीड-19 वैक्सीन लेते नहीं दिखाता

फ़ैक्ट चेक

फ़्रेम-बाय-फ़्रेम विश्लेषण और साथ ही रिवर्स इमेज सर्च से पता चलता है कि वीडियो को मूल रूप से मध्यप्रदेश के उज्जैन के कलेक्टर के फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल पर 19 मार्च, 2020 को पोस्ट किया गया था। इस दौरान देश में मास्क पहनना अनिवार्य नहीं था। यह किसी भी कोविड-19 के लक्षणों जैसे कि बुखार, खांसी या ठंड होने की स्थिति में लोगों को एहतियाती तौर पर मास्क पहनने का सुझाव दिया गया था।

Full View

महामारी की शुरुआत में सभी प्रमुख शीर्ष स्वास्थ्य संगठनों का मानना था कि मास्क पहनने की ज़रूरत उन लोगों को है जो अस्पताल में काम कर रहे हैं, जो बीमार से मिल रहे हैं और जों लोगों में कोविड-19 के लक्षण दिख रहे हों। भारत में भी यह नियम लागू थे, क्योंकि देश में मास्क की कालाबाज़ारी और डॉक्टरों व नर्सों के लिए मास्क की कमी हो रही थी। अख़बारों के मुताबिक देश में N95 मास्क की कमी थी क्योंकि सामान्य आबादी इन मास्कों को पहन रही थी।।

हालांकि अप्रैल से कई देशों और स्वास्थ्य संगठनों ने मास्क पहनने को लेकर अपने रुख़ में बदलाव किया, जब उन्होंने पाया कि SARS-CoV-2 के लक्षण न दिखने पर भी वायरस फ़ैल सकता है। आज दुनियाभर में कोरोना के लक्षण न दिखने वाले रोगियों की संख्या अधिक है।

भारत में मुंबई और दिल्ली पहले शहर थे जहां मास्क पहनना अनिवार्य किया गया। यह ज़रूरी नहीं था कि N95 मास्क ही पहना जाये। सार्वजनिक स्थानों पर कपड़ों से बने मास्क भी पहनने की इजाज़त थी। गृह मंत्रालय ने 14 अप्रैल को देश भर में मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया।

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भारत से पहले वेनेजुएला, वियतनाम, चेक गणराज्य के अलावा कई अफ्रीकी और एशियाई देशों ने सार्वजनिक रूप से मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया था।

अमेरिका में रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र ने 24 अप्रैल को सार्वजनिक स्थानों में मास्क पहनना अनिवार्य कर दिया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 5 जून को अपने रुख़ में बदलाव किया, जिसमें पहले कहा था कि लोगों को सार्वजनिक स्थानों में तीन परतों वाला फैब्रिक मास्क पहनना चाहिए। हालांकि कोरोना के लक्षण पर लोगों को मेडिकल मास्क पहनना चाहिए। पहले कहा गया था कि केवल लक्षण दिखने पर ही मास्क पहनना चाहिए।

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