सोशल मीडिया पर वायरल पोस्ट्स के ज़रिये दावा किया जा रहा है कि इतिहासकार राना सफ़वी ने 'रक्षाबंधन' को 'मुग़लों द्वारा इज़ाद किया गया त्यौहार' बताया है | यह ख़बर 'लाइव मिंट' न्यूज़ पेपर की क्लिपिंग के साथ वायरल हो रही है | क्लिपिंग में दिख रहे शीर्षक से ही वायरल खबर प्रेरित है, ऐसा मालुम होता है |
आपको बता दें कि यह दावा झूठ है और लाइव मिंट द्वारा प्रकाशित ख़बर एक गलती का नतीजा थी जिसे वर्ष 2018 में ही सुधार दिया गया था |
बूम ने राना सफ़वी से बात करके जाना कि ये दावें बेबुनियाद थे | सफ़वी ने इन वायरल दावों को सिरे से नकारते हुए कहा कि मिंट के लिए आर्टिकल ज़रूर उन्होंने लिखा था, पर वो शीर्षक उनके द्वारा नहीं दिया गया था | "यह कॉपी एडिट करने वाले की गलती थी जिसे बाद में सुधार दिया गया था," उन्होंने बूम को बताया |
बूम ने मिंट के पत्रकार से बात करके पता लगाया कि यह डेस्क की गलती थी जिसे तुरंत सुधार दिया गया था | हालांकि प्रिंट हो चुके अख़बारों में यह गलती नहीं बदली जा सकी थी |
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यह दावा ट्विटर पर तब शुरू हुआ जब ट्रूइंडोलोजी (True Indology) नामक एक हैंडल ने ट्वीट किया: यह 'प्रख्यात इतिहासकार' कहती हैं की मुग़लों ने राखी का ईजाद 18 वीं सदी में किया था | ये सफ़ेद झूठ मौजूदा हर साक्ष्य का विरोध करते हैं | हर कोई जिसके पास आधारभूत शिक्षा होगी, वो इन झूठ पर हंसेगा | पर भारत में ऐसे लेखकों को सरकार बढ़ावा देती है |"
इस कैप्शन के साथ लाइव मिंट की क्लिपिंग भी शेयर की गयी है |
(अंग्रेजी कैप्शन: This "eminent historian" declares that Mughals invented Rakhi in 18th century. Such blatant lies contradict every available primary source. Anyone having elementary knowledge would laugh at these factually incorrect lies. But in India such authors are promoted by establishment"
ऐसी ही कुछ पोस्ट्स नीचे देखें और इनके आर्काइव्ड वर्शन यहाँ, यहाँ और यहाँ देखें |
This "eminent historian" declares that Mughals invented Rakhi in 18th century.
— True Indology (@TIinExile) August 3, 2020
Such blatant lies contradict every available primary source. Anyone having elementary knowledge would laugh at these factually incorrect lies. But in India such authors are promoted by establishment pic.twitter.com/r6A4lJgscz
This is how Congress has tampered & distorted Indian History with the help of crony twistorians like Rana Safvi since 1940s pic.twitter.com/oEBWNI8hiF
— Rishi Bagree 🇮🇳 (@rishibagree) August 3, 2020
हिन्दू पोस्ट नामक एक फ़ेसबुक पेज ने भी इस वायरल दावे को छापते हुए सफ़वी पर हिन्दू विरोधी होने का और अफ़वाहें फैलाने का आरोप लगाया है | लेख यहाँ पढ़ें |
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फ़ैक्ट चेक
बूम ने जब गूगल पर सर्च किया तो हमें ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं मिली जिसमें राना सफ़वी के वायरल बयान के बारे में लिखा गया हो |
हमनें जब सफ़वी की ट्विटर प्रोफाइल खंगाली तो हमें उनके द्वारा कई लोगो के ट्वीट पर दिए गए स्पस्टीकरण मिले जहाँ वह बताती हैं कि उन्होंने 1885 में दिल्ली में मुग़लों के दरबारी मुंशी फैज़ुद्दीन द्वारा लिखे एक पाठ या 'टेक्स्ट' का अनुवाद किया था | यहाँ और यहाँ देखें |
इसके अलावा उन्होंने सुधार किया गया लेख भी पोस्ट किया था | नीचे देखें |
My apologies for hurting your sentiments dear "anonymous historian" but this story was a misprint by @livemint. It was corrected on my insistence.
— Rana Safvi رعنا राना (@iamrana) August 3, 2020
And this story is from an1865 urdu account.
I suggest you read both carefully.https://t.co/aRUnn40nem https://t.co/dYqNTVIi3m pic.twitter.com/kUXn2aBRz9
गौरतलब बात ये है कि केवल शीर्षक के गलत होने पर ख़बर फ़र्ज़ी दावों के साथ वायरल हो गयी जबकि लेख एक ही है ।
गलत हैडिंग: हाऊ मुग़ल दिल्ली गेव बर्थ टू रक्षा बंधन
सही हैडिंग: हाऊ द मुग़ल कोर्ट एम्ब्रेस्ड रक्षा बंधन
इसके अलावा बूम की बात 'मिंट' के पत्रकार अजय श्रीवत्सन से भी हुई | श्रीवत्सन मिंट का वह भाग देखते थे जो ऐतिहासिक मुद्दों पर लेख प्रकाशित करता था | उन्होंने बताया कि यह डेस्क की गलती थी इसमें राना सफ़वी कि कोई ज़िम्मेदारी नहीं है | हालांकि इस गलती को कुछ ही घंटों में सुधार दिया गया था और स्पस्टीकरण भी जारी किया गया था पर तब तक छप चुके अख़बारों में यह गलती प्रिंट हो चुकी थी | अख़बारों में यह गलती नहीं बदली जा सकी थी |
श्रीवत्सन ने ट्वीट कर स्पस्टीकरण भी दिया है |
I was overseeing these short columns for Mint when an unforseen error occured. It was immediately corrected and the corrected version has already been shared. But I am adding this just to set the record straight. pic.twitter.com/0Rdwy8mYyh
— ajai sreevatsan (@ajaxiom) August 3, 2020
इसके बाद हमनें राना सफ़वी से संपर्क किया | "मैंने 2018 में मिंट के लिए कुछ लेख लिखे जब मैं फ्रीलांस कर रही थी और मिंट दिल्ली के इतिहास पर सीरीज़ कर रहा था | चूँकि इतिहासकार होने के साथ साथ मैं अनुवाद भी करती हूँ, तो मैंने अपनी किताब 'सिटी ऑफ़ माय हार्ट' में चार उर्दू एकाउंट्स का अनुवाद किया था | उनमें से एक है बज़्म-ए-आखिर जो 1885 में मुंशी फैज़ुद्दीन ने लिखे थे," उन्होंने बूम को बताया |
"इसमें सलोना त्यौहार (रक्षाबंधन) का ज़िक्र है | जो लेख में मैंने लिखा है उसमे फैज़ुद्दीन, आलमगीर II और एक हिन्दू महिला के बारे में लिखते हैं कि कैसे आलमगीर II ने हिन्दू महिला से राखी बंधवाई और तब से यह प्रथा मुग़लों में शुरू होकर तब तक चलती रही जब बहादुर शाह ज़फ़र को देश निकाला दिया गया," उन्होंने आगे कहा |
"मैंने केवल अनुवाद किया है और कोई भी ऐसा दावा नहीं किया कि मुग़लों ने रक्षाबंधन को 'इज़ाद' किया है | मैंने किसी भी तरह से - ना ही किसी इशारे में और ना ही दावा करते हुए - कहा कि मुग़लों ने रक्षाबंधन ईजाद किया है | मेरा काम दोनों समुदायों को जोड़ने की ओर होता है, बांटने की ओर नहीं | हाँ, मुग़लों ने रक्षाबंधन अपनाया जरूर है," राना सफ़वी ने कहा |