सोशल मीडिया पर आए दिन तमाम तरह के जिहाद ट्रेंड करते रहते हैं. ऐसा ही एक दावा सोशल मीडिया पर पिछले समय से खूब वायरल है जिसमे कहा जा रहा है कि यूनियन पब्लिक सर्विस कमिशन (UPSC) के पाठ्यक्रम में इस्लामिक स्टडी नामक विषय होने से मुस्लिम समुदाय के अभ्यर्थियों को विशेष लाभ मिल रहा है जिस कारण वह परीक्षा में बड़ी संख्या में उत्तीर्ण हो रहे हैं. इससे हिन्दू अभ्यर्थियों के साथ भेदभाव हो रहा है.
पोस्टों में आगे मांग की गई है कि इस्लामिक स्टडी (Islamic Study) पाठ्यक्रम में शामिल है तो वैदिक संस्कृत साहित्य, रामायण, गीता और महाभारत को भी शामिल किया जाए अन्यथा इस्लामिक स्टडी को भी पाठ्यक्रम से हटाया जाए.
बूम ने पाया कि वायरल दावा झूठा है.
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फ़ेसबुक पर एक यूज़र Anita Singh ने पोस्ट शेयर करते हुए लिखा 'अगर "इस्लामिक स्टडी से IAS" बना जा सकता है...तो स्टडी ऑफ वेद ,रामायण, गीता, उपनिषद को भी UPSC की परीक्षा में शामिल किया जाए...सनातन धर्म से इतनी नफरत क्यो..??हर एक सनातनी सोशल मीडिया पर इस आवाज को बुलंद करें'.
इसके अलावा फ़ेसबुक पर यह दावा विभिन्न तस्वीरों के साथ व्यापक स्तर पर वायरल है.
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ट्विटर पर भी यह दावा पिछले कुछ सालों से काफ़ी वायरल रहा है.
फ़ैक्ट चेक
बूम ने UPSC की आधिकारिक वेबसाइट को खंगाला और पाया कि सोशल मीडिया पर किया जा रहा दावा पूरी तरह से झूठा है. हमने UPSC परीक्षा अधिसूचना की भी जाँच की जो फ़रवरी 2022 में जारी की गई थी और इस अधिसूचना में इस्लामिक स्टडी वैकल्पिक विषय के रूप में पाठ्यक्रम में शामिल नहीं है.
UPSC परीक्षा तीन चरणों में आयोजित की जाती है - प्रारंभिक, मुख्य और साक्षात्कार. केवल पहले दो चरणों को पास करने वाले उम्मीदवार ही अंतिम चरण के लिए पात्र होते हैं और अंतिम चरण में साक्षात्कार होता है.
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प्रारंभिक परीक्षा के पाठ्यक्रम के हिस्से के रूप में शामिल विषय सामान्य जागरूकता, इतिहास, आर्थिक और सामाजिक विकास, जलवायु परिवर्तन, लॉजिकल रीज़निंग, भारतीय राजनीति और शासन संविधान, सामान्य विज्ञान, रीडिंग कॉम्प्रीहेन्शन और भूगोल हैं. इस विषयों के दो पेपर 200 अंकों के और दो घंटे की अवधि में होते हैं.
मुख्य परीक्षा के पाठ्यक्रम में कुल सात विषय शामिल हैं. इनमें से पांच विषय सभी उम्मीदवारों के लिए अनिवार्य हैं, जबकि छठा और सातवां उनकी पसंद का हो सकता है. इन वैकल्पिक विषयों में भी इस्लामिक अध्ययन का कोई उल्लेख नहीं है. यह नीचे दी गई तस्वीर में स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है.
अत: अल्पसंख्यक समुदाय के अभ्यर्थियों के द्वारा सोशल मीडिया पर उम्मीदवारों द्वारा अपनी सिविल सेवा परीक्षाओं में इस्लामिक स्टडीज को चुनकर आईएएस अधिकारी बनने का दावा पूरी तरह से गलत है.