2008 से लेकर 2016 तक हिंदी पट्टी की लगभग हर टीवी स्क्रीन पर अपनी कड़क दमदार आवाज़ और दिलों में छाप छोड़ देने वाली एक्टिंग के साथ सुरेखा सिकरी दिखाई दे जाती थीं. कलर्स टीवी के पॉपुलर शो 'बालिका वधू' की टिपिकल 'दादी सा' और आयुष्मान ख़ुराना अभिनीत 'बधाई हो' की समझदार, संवेदनशील 'अम्मा' सुरेखा सिकरी (Surekha Sikri) अब इस दुनिया में नहीं रहीं.
बॉलीवुड में समानांतर सिनेमा की मशहूर और दिग्गज अदाकारा सुरेखा का शुक्रवार 16 जुलाई 2021 को सुबह दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया है. वो 75 साल की थीं और पिछले दिनों उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ था.
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सुरेखा का जन्म 19 अप्रैल 1945 को दिल्ली में हुआ था. 1971 में सुरेखा ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा (NSD) से ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी की थी. सुरेखा के पिता एयरफोर्स में थे और माँ टीचर थीं. उन्होंने ने हेमंत रेगे से शादी की थी. इस शादी के उनके एक बेटा है जिसका नाम राहुल सिकरी है. सुरेखा के पति हेमंत का 20 अक्टूबर 2009 में हार्ट फेल होने की वजह से निधन हो गया था.
शानदार करियर
सुरेखा सिकरी ने 1978 में 'किस्सा कुर्सी का' से अपने अभिनय करियर की शुरुआत की थी. उन्हें गोविंद निहलानी की फिल्म 'तमस', श्याम बेनेगल की फ़िल्म 'मम्मो', और 'बधाई हो' के लिए 3 बार नैशनल अवॉर्ड (National Award) से भी नवाज़ा गया था. सिनेमा के बड़े पर्दे पर अपने अभिनय की छाप छोड़ने के बाद सुरेखा ने टीवी सीरियल्स के छोटे पर्दे पर भी अपनी हनक बरकरार रखी.
अपने लगभग 50 साल के ऐक्टिंग करियर में सुरेखा ने कई बेहतरीन फ़िल्में कीं जिनकी खूब तारीफ़ हुई. समानांतर सिनेमा की कई सारी फ़िल्मों में उन्होंने दमदार रोल किया. किस्सा कुर्सी का, तमस, सलीम लंगड़े पे मत रो, मम्मो, नसीम, सरदारी बेगम, सरफरोश, दिल्लगी, हरी भरी, जुबैदा, काली सलवार, रघु रोमियो, रेनकोट, तुमसा नहीं देखा, हमको दीवाना कर गए, बधाई हो, शीर कोरमा और घोस्ट स्टोरीज जैसी मशहूर फिल्मों में उन्होंने शानदार काम किया था.
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दमदार आवाज़
फ़िल्मों के अलावा सुरेखा ने छोटे पर्दे पर भी अपने अभिनय का जादू खूब बिखेरा. जल्द ही टीवी सीरियलों की दुनिया का जाना पहचाना नाम बन गईं सुरेखा सिकरी. बालिका वधू, एक था राजा एक थी रानी, परदेस में है मेरा दिल, सात फेरे, बनेगी अपनी बात, कसर, कहना है कुछ मुझको, जस्ट मोहब्बत जैसे कई मशहूर सीरियलों में भी उन्होंने काम किया था. इन सीरियलों ने सुरेख़ा सीकरी को घर घर में ग़ज़ब पहचान दिलाई.
सुरेखा ने अपने अभिनय काल में समानांतर सिनेमा की ही ज़्यादातर फ़िल्में की थीं. सामाजिक मुद्दों पर बनीं फ़िल्मों में उनका अभिनय कमाल का रहा फिर चाहे वो दंगों की विभीषिका दर्शाती हो या जातीय शोषण हो या फिर जेंडर जस्टिस का सवाल हो.
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गोविंद निहलानी, श्याम बेनेगल, सईद मिर्ज़ा जैसे दिग्गज निर्देशकों की फ़िल्मों में सुरेखा के काम को खूब पसंद किया गया. उर्दू स्टूडियो के लिये फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की एक नज्म 'मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न माँग' को पढ़ते हुए सुरेखा की संवाद अदायगी का ठहराव और गहराई बहुत ख़ूबसूरती से दिखायी देता है.