सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने ऐतिहासिक फ़ैसला सुनाते हुए राजद्रोह कानून (Sedition Law) के इस्तेमाल पर रोक लगा दी है. देश की सर्वोच्च अदालत ने बुधवार को सभी पक्षों को सुनने के बाद अंतरिम आदेश देते हुए कहा कि IPC की धारा 124A के तहत राजद्रोह कानून को तब तक के लिए स्थगित किया जाता है जब तक केंद्र सरकार इस कानून पर पुनर्विचार नहीं कर लेती.
इस मामले में अगली सुनवाई जुलाई के तीसरे सप्ताह में होगी तब तक इस कानून के तहत कोई नए मुकदमे दर्ज नहीं किये जा सकते.
क्या है राजद्रोह कानून उर्फ़ SEC 124A ?
औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत में यह कानून 1870 में लागू किया गया था. इसका मुख्य उद्देश्य ब्रिटिश राज से विद्रोह करने वालों को कुचलना था. कुल 152 साल का इतिहास समेटे ये कानून शहीद भगत सिंह, बाल गंगाधर तिलक, महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरू सहित तमाम स्वतंत्रता सेनानियों के ख़िलाफ़ इस्तेमाल किया गया. और अब आजाद भारत में भी 75 साल से जारी है.
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यह कानून राजद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित करता है जिसमें 'किसी व्यक्ति द्वारा भारत में कानूनी तौर पर स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित (शब्दों द्वारा), संकेतों या दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है. राजद्रोह गैर-जमानती अपराध है. राजद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है.
बेंच ने आदेश में क्या कहा
1. भारत के चीफ़ जस्टिस (CJI) एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि धारा 124 ए के तहत लगाए गए आरोपों के संबंध में सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाए. कोर्ट ने आगे कहा कि हम उम्मीद करते हैं कि इस कानून के तहत केंद्र व राज्य सरकारें कोई भी नई FIR, जारी जांच और अपील को आगे बढ़ाने से परहेज करेंगी. बेंच ने आगे कहा सरकारें इस कानून के तहत कोई भी कठोर कदम उठाने से बचें.
2. अगर इस दौरान कोई भी नया मुकदमा दर्ज़ किया जाता है तो उपयुक्त पक्ष उचित राहत के लिए अदालतों का दरवाजा खटखटाने के लिए स्वतंत्र हैं और अदालतों से अनुरोध है कि वे मामले की जांच करें और इस आदेश की छाया में मामले पर विचार करें.
3. कोर्ट ने यह भी कहा कि जो लोग पहले से ही आईपीसी की धारा 124A के तहत जेल में हैं, वे जमानत के लिए संबंधित अदालतों में राहत हेतु दरवाजा खटखटा सकते हैं. इस बीच केंद्र सरकार इस कानून के उपयोग के संबंध में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को दिशानिर्देश जारी कर सकती है.
यह आदेश अगली सुनवाई तक प्रभाव में रहेगा.
कैसे पहुंची बेंच इस आदेश तक
बेंच ने यह देखने के बाद आदेश पारित किया कि केंद्र सरकार का रुख भी इस औपनिवेशिक प्रावधान पर "पुनर्विचार और पुन: परीक्षा की आवश्यकता का है, इसका मतलब है कि सरकार न्यायालय द्वारा व्यक्त किए गए प्रथम दृष्टया दृष्टिकोण से सहमत है कि 124A IPC की कठोरता वर्तमान सामाजिक परिवेश के अनुरूप सम्मत नहीं है क्योंकि ये कानून उस समय लाया गया था जब देश औपनिवेशिक शासन के अधीन था.
इसी को ध्यान में रखते हुए न्यायालय ने आदेश दिया कि भारत सरकार इस कानून पर पुनर्विचार करे.
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क्या रहा केंद्र सरकार का पक्ष
1. इससे पहले मामले पर केंद्र सरकार की ओर से सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखते हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सरकार या न्यायालय देशद्रोह कानून पर रोक नहीं लगा सकती क्योंकि कॉगज़ीनेबल (संज्ञेय) अपराध होने के बाद उन्हें दर्ज करने से रोकना उचित नहीं होगा. आखिरकार इस कानून को पाँच सदस्यीय संवैधानिक पीठ द्वारा जायज़ माना गया था. संज्ञेय अपराध वे गंभीर अपराध होते हैं जिनमें कार्यवाही शुरू करने के लिए कोर्ट से आदेश नहीं नहीं लेना होता है अथवा किसी को भी बिना वॉरन्ट के गिरफ़्तार किया जा सकता है.
2. आगे भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को सूचित किया कि केंद्र द्वारा एक प्रस्तावित मसौदा निर्देश को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है, जिसके अनुसार एक जिम्मेदार अधिकारी (पुलिस अधिकक्ष के स्तर का) की संतुष्टि व जांच करने के बाद ही मुकदमा दर्ज़ हो. और ये सब न्यायिक समीक्षा के दायरे में रहेगा.
3. लंबित मामलों के संबंध में सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वे प्रत्येक मामले की गंभीरता के बारे में सुनिश्चित नहीं हैं इनमें से कुछ लंबित मामले आतंकवाद से जुड़े हो सकते हैं और कुछ मनी लॉन्डरिंग से संबंधित हो सकते हैं और क्योंकि लंबित मामले कोर्ट में चल रहे हैं इसीलिए हमें कोर्ट पर भरोसा रखना चाहिए.
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राजद्रोह के कुल कितने मुकदमे दर्ज़ हैं
कोर्ट द्वारा जब पूछा गया कि देश में राजद्रोह के कुल कितने मामले दर्ज़ हुए है. इसके जवाब देते हुए याचिककर्ता के वकील कप्पिल सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि वर्तमान में देश में लगभग 13 हज़ार लोग राजद्रोह कानून के तहत जेल में हैं.
The week की रिपोर्ट ने केंद्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि 2014 और 2019 के बीच राजद्रोह कानून के तहत कुल 326 मामले दर्ज किए गए और सिर्फ़ 6 को ही दोषी पाया गया. इनमें सबसे ज्यादा असम में 54 मामले दर्ज किए गए. दर्ज मामलों में से मात्र 141 मामलों में आरोपपत्र दाखिल किए गए.