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रोज़मर्रा

गीतांजलि श्री की रचना 'रेत समाधि' को मिला अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार

डेज़ी रॉकवेल (Daisy Rockwell) द्वारा अनुवादित रेत समाधि (Tomb of Sand) पहला हिंदी उपन्यास है जिसे बुकर से सम्मानित किया गया है.

By - Mohammad Salman | 27 May 2022 8:17 AM GMT

हिंदी लेखिका गीतांजलि श्री के उपन्यास 'रेत समाधि' (Ret Samadhi), अंग्रेज़ी अनुवाद 'टूंब ऑफ सैंड' (Tomb of Sand) को प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय बुकर प्राइज़ (International Booker Prize) से सम्मानित किया गया है. यह किसी भी हिंदी उपन्यास के लिए पहला बुकर पुरस्कार है. इसका हिंदी से अंग्रेज़ी अनुवाद मशहूर अनुवादक डेज़ी रॉकवेल ने किया है.

अंतर्राष्ट्रीय बुकर प्राइज़ हर साल अंग्रेज़ी में अनुवादित और इंग्लैंड/आयरलैंड में प्रकाशित किसी एक अंतरराष्ट्रीय भाषा की किताब को दिया जाता है. इस पुरस्कार की शुरूआत साल 2005 में हुई थी. विजेता को पुरस्कार स्वरुप 50 हजार पाउंड यानी लगभग 50 लाख रुपये की राशि दी जाती है. इसे किताब के मूल लेखक और अनुवादक के बीच आधा-आधा बांटा जाता है.

'रेत समाधि' की कहानी

'रेत समाधि' एक 80 वर्षीय महिला की कहानी है जो अपने पति की मौत के बाद अवसाद में चली जाती है. आखिरकार, वह अपने अवसाद पर काबू पाती है और विभाजन के दौरान अपने अतीत का सामना करने के लिए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है. यह कहानी पाकिस्तान की यात्रा करने, साथ ही साथ विभाजन के अपने किशोर अनुभवों के अनसुलझे आघात का सामना करने और एक माँ, एक बेटी, एक महिला, एक नारीवादी होने के अर्थ का पुनर्मूल्यांकन करने पर ज़ोर देती है.

मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था - गीतांजलि श्री

लन्दन में बीती रात हुए समारोह में बुकर प्राइज़ जीतने के बाद गीतांजलि श्री ने कहा कि "मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह कर सकती हूं. कितनी बड़ी बात है, मैं हैरान, प्रसन्न, सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूं."  

निश्चित तौर पर, गीतांजलि श्री की 'रेत समाधि' को मिले बुकर प्राइज़ ने हिंदी का कद ऊंचा किया है.उन्हें बुकर सम्मान मिलने के बाद सोशल मीडिया पर बधाइयों का तांता लगा हुआ है. देश दुनिया की तमाम हस्तियां उन्हें बधाई दे रही हैं.

'रेत समाधि' गीतांजलि श्री का पांचवां उपन्यास है. उनका पहला उपन्यास 'माई' है, जिसका अंग्रेजी अनुवाद 'क्रॉसवर्ड अवॉर्ड' के लिए भी नामित हुआ था. फिर सांप्रदायिकता पर केन्द्रित उनका दूसरा उपन्यास 'हमारा शहर उस बरस' नब्बे के दशक में प्रकाशित हुआ. तीसरा उपन्यास 'तिरोहित' है जो स्त्री समलैंगिकता पर आधारित है और चौथा उपन्यास 'खाली जगह' है.

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