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रोज़मर्रा

कैसे एक महिला ने डेटिंग ऐप 'बम्बल' पर बुना लूट का ताना-बाना

'बम्बल' पर 'मैच' होने वाले पुरुषों को ड्रग्स देकर लूटने वाली महिला को पकड़ने के लिए पुणे के दो पुलिसकर्मियों ने डेटिंग ऐप पर दर्जनों प्रोफाइल बनाकर किस तरह सुराग निकाले और आरोपी महिला को अपने जाल में फंसाया. पढ़ें यह रिपोर्ट

By - Yogesh Sadhwani | 5 Dec 2022 4:42 PM IST

कोरोना महामारी की पहली लहर के बाद जब सरकार ने लॉकडाउन में थोड़ी ढील देनी शुरू की तो तमाम लोगों की तरह क़रीब 20 साल के यूनिवर्सिटी छात्र अमित* का मन भी घर से निकलकर बाहर की दुनिया देखने को बेताब था. कुछ दिन पहले ही डेटिंग एप 'बम्बल' पर 'मैच' हुए शिखा और अमित में वर्चुअल बातचीत शुरू हुई थी. अमित को शिखा की बातें 'बम्बल' पर 'मैच' होने वाली बाक़ी महिलाओं की तुलना में काफ़ी दिलचस्प और दोस्ताना लगीं. आख़िरकार, उन्होंने इस वर्चुअल बातचीत को असल जीवन में ले जाने के लिए पुणे के एक प्रसिद्ध कैफ़े में मिलने का फ़ैसला किया.

कैफ़े में, अमित अपनी पसंदीदा फ़िल्मों के बारे में शिखा से बात कर रहा था और शिखा उसकी बातों में पूरी दिलचस्पी ले रही थी. इस बीच, अमित को महसूस हुआ कि शिखा ने उसे अब तक अपने बारे कुछ ख़ास नहीं बताया था. जैसे ही शाम आगे बढ़ी, अमित ने शिखा से पूछा कि क्या उन्हें और खाना मंगवाना चाहिए. शिखा ने अमित के घर पर सुकून से बैठकर डिनर करने की इच्छा जताई. ये सुनकर अमित थोड़ा हैरान ज़रूर हुआ लेकिन वो शिखा को इंकार नहीं कर सका. अमित का घर कैफ़े से क़रीब 20 किलोमीटर की दूरी पर था. रास्ते में अमित को प्यास लगी तो शिखा ने अपने बैग से पानी की एक बोतल निकाल कर अमित की तरफ बढ़ा दी. अमित को पानी का स्वाद थोड़ा अजीब लगा लेकिन उसने इसे नज़रंदाज़ करते हुए पानी पी लिया.

बहरहाल, दोनों घर पहुंचे और डिनर ऑर्डर किया. दोनों ने अपना डिनर शुरू ही किया था कि अमित को चक्कर आने लगा. कुछ देर में, अमित को महसूस हुआ कि अब वो डिनर टेबल पर नहीं बैठ सकता और उठकर बेडरूम चला गया.

अमित अपने बेडरूम पहुंचते ही बेहोश हो गया.

कुछ घंटो के बाद, रात क़रीब 10:45 बजे, बाहर से लगातार आते शोर से अमित की नींद खुली. अर्द्ध बेहोशी की हालत में जब वह दरवाजा खोलने के लिए बढ़ा तो उसने देखा कि शिखा वॉशरूम जाने की जल्दी में थी. बाहर दरवाजे पर अमित का एक पुराना दोस्त खड़ा था जो कुछ सामान मांगने के लिए आया था. जब तक अमित का दोस्त दरवाजे पर रहा, शिखा वॉशरूम से बाहर नहीं आई. वह अमित के दोस्त के जाने के बाद ही बाहर आई और उससे अनुरोध किया कि वह उसे ऐसी जगह पर छोड़ दे जहां घर वापस जाने के लिए सार्वजनिक परिवहन आसानी से मिल जाए.

अमित अब भी नींद में था लेकिन ये सोच कर कि शायद शिखा को घर पर कोई ज़रूरी काम होगा, वह शिखा को उसकी बताई हुई 4 किलोमीटर दूर एक जगह पर छोड़ कर घर वापस आ गया.

घर आकर अमित ने अपना फोन ढूंढना शुरू किया, जोकि उसे नहीं मिला. तभी उसे पता चला कि सोने की दो अंगूठियां और एक सोने की चेन जो उसने पहनी हुई थी, लापता थी. सच्चाई को समझने में थोड़ा समय लगा - अमित को इस बात का ज्ञान हो गया था कि वह अपनी 'बंबल डेट' से लुट गया.

पहला सुराग

पिंपरी-चिंचवड थाने के कांस्टेबल प्रशांत सेड ने जब अमित को फ़ोन किया तब तक उसे 'बम्बल डेट' से लुटे हुए एक महीना हो गया था. उसके पास अब भी शिखा के बारे में बहुत कम जानकारी थी. दरअसल, घटना के तुरंत बाद अमित शिकायत करने से भी कतरा रहा था, लेकिन अपने पिता के दबाव में उसने ठाणे में एक शिकायत दर्ज करवा दी.

पिंपरी-चिंचवड पुलिस कमिश्नरेट की क्राइम ब्रांच से जुड़े कांस्टेबल सेड और सहायक पुलिस निरीक्षक अंबरीश देशमुख, अनसुलझे मामलों की एक लिस्ट खंगाल रहे रहे थे, जब उनका ध्यान एक ऐसे अनसुलझे केस पर गया, जहां ऑनलाइन डेटिंग ऐप मिली एक महिला द्वारा एक युवक को लूटा गया था.

"यह एक दिलचस्प मामला लग रहा था," देशमुख ने डिकोड को बताया, इतने सालों में उनकी यूनिट ने ड्रग्स के कई गैंग्स का भंडाफोड़ किया था और हत्यारों को भी पकड़ा था, लेकिन उनमें से किसी ने भी पहले कभी 'बम्बल' के बारे में नहीं सुना था.

ऐसा नहीं था कि उन्हें डेटिंग ऐप्स के बारे में जानकारी नहीं थी लेकिन बम्बल नाम क्राइम ब्रांच यूनिट के लिए नया था. उन्होंने देखा कि इस महिला के पुरुषों को फंसाने के तरीके को समझने का एकमात्र तरीका ऐप पर अपनी प्रोफाइल बनाना था.

प्रशांत सेड और देशमुख ने 'बम्बल' के बारे में रिसर्च की और अपनी प्रोफाइल बनाई.

क़रीब 30 साल के मध्यम कद काठी वाले 5 फुट 5 इंच लम्बे देशमुख ने शर्ट और पैंट पहने हुए अपनी एक फ़ोटो अपनी प्रोफाइल के साथ अपलोड की. देशमुख अक्सर राउंड पर निकलने के दौरान यह ड्रेस पहनते हैं. वहीं, लंबे चौड़े कद काठी वाले प्रशांत ने अपनी प्रोफाइल पर कैजुअल शर्ट और डेनिम पहने हुए एक फ़ोटो अपलोड की.

हालांकि, अभी भी कोई भी जांच शुरू करने के लिए उनके पास बहुत ही कम जानकारी थी. पीड़ित अमित उस महिला को 'शिखा' के नाम से जानता था. पुलिसकर्मी यह मानकर चल रहे थे कि 'शिखा' महज़ एक फ़र्ज़ी नाम हो सकता है. शिखा से जुड़ा एकमात्र लिंक था अमित का उसकी प्रोफाइल का लिया गया स्क्रीनशॉट, जो संयोगवश अमित के गूगल फ़ोटोज़ पर सेव हो गया था. ये अट्रैक्टिव और फ्रेंडली दिखती एक नाटी-मोटी महिला की फ़ोटो थी. इस फ़ोटो में, जींस और लाल टॉप पहने मुस्कुराती शिखा ने अपने बॉब कट बाल बड़े करीने से एक साइड पार्टिंग के साथ सेट किये हुए थे.

इस जानकारी के आधार पर प्रशांत और देशमुख ने अगले कुछ दिन उस महिला की तलाश में ऐप पर कई प्रोफाइल खंगालते हुए बिताए. लगभग 100 प्रोफाइल पर लेफ़्ट स्वाइप करने के बाद, आख़िर उन्हें वह महिला दिख गयी. वह अभी भी 'बम्बल' पर शिखा के नाम से ही थी और प्रोफाइल पर फ़ोटो भी वही थी जिसका अमित ने स्क्रीनशॉट लिया था. पुलिसकर्मियों ने शिखा के प्रोफाइल पर राईट स्वाइप किया और कुछ घंटे और फिर कुछ दिन तक पूरे धीरज के साथ उसके जवाब का इंतजार किया. लेकिन शिखा ने उनकी प्रोफाइल पर राईट स्वाइप नहीं किया- और कोई मैच नहीं हुआ. पुलिसकर्मियों ने महसूस किया कि उन्होंने ख़ुद की जो प्रोफाइल जो बनाई थीं, उसमें केवल उनकी एक फोटो थी पर कोई बायो नहीं था. उन्हें इस बात का अंदाजा बहुत जल्द हो गया कि उनके प्रोफाइल पर आरोपी महिला की रूचि जगाने के लिए प्रोफाइल बेहद 'सादा' है.

इस केस पर काम शुरू किये हुए प्रशांत और देशमुख को लगभग एक हफ़्ता हो चला था. अब तक उनके हाथ कोई बड़ा सुराग हाथ नहीं लगा था. पुलिस ने बम्बल को भी मदद के लिए संपर्क किया लेकिन ऐप मैनेजमेंट टीम की ओर से उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. अमित ने शिखा से मिलने तक सिर्फ़ बम्बल ऐप पर ही ऑनलाइन बातचीत की थी, इसलिए उनके फोन को ट्रैक करके उसका पता ढूंढ निकालने का सवाल नहीं उठता था.

डिकोड ने इस मामले पर टिप्पणी के लिए बम्बल से संपर्क किया. फ़िलहाल अब तक उन्होंने कोई स्टेटमेंट नहीं दिया है.

तब, प्रशांत और देशमुख के दिमाग में एक नया आईडिया आया.

अगले कुछ दिनों तक इन दोनों ने अपने ऐसे मुखबिरों की लिस्ट बनायी जिनकी 'फ्लैशी' लाइफस्टाइल थी. जो अपनी रोज़मर्रा ज़िन्दगी में 'चमकीले' कपड़े और गोल्डन ज्वेलरी वाले अपने फ़ोटो सोशल मीडिया पर पोस्ट करते थे.

20 साल के आसपास के ये मुखबिर प्रशांत और देशमुख को सालों से जानते थे और उन्हें अपनी फ़ोटोज़ देने के लिए मना लेना कोई मुश्किल काम नहीं था. पिंपरी चिंचवड क्षेत्र में, जहां क्राइम ब्रांच यूनिट तैनात थी, ऐसे कई पुरुष थे जो गोल्डन ज्वेलरी पहनकर, समाज में शोशाबाज़ी करने का शौक़ रखते थे. वास्तव में, यह इलाक़ा एक दर्जन से ऊपर 'गोल्डमैन' पुरूषों के लिए जाना जाता था, जो किलो के हिसाब से ज्वेलरी पहनना पसंद करते थे. वो अपनी गाड़ियों को भी गोल्डन रंग से पेंट करवाते थे. लोकल मीडिया में अक्सर अपनी गोल्डन ज्वेलरी का दिखावा करते इन पुरुषों की फ़ोटोज़ नज़र आती रहती थी.

"अपनी पहली कोशिश से हम इस नतीजे पर पहुंचे थे कि आरोपी महिला अच्छे परिवारों के अमीर पुरुषों को ही निशाना बनाती है. क्योंकि उसने अमित की ज्वेलरी भी चुराई थी, इसलिए हमने सोचा कि वह उन्हीं पुरुषों पर राइट स्वाइप करती होगी जो प्रोफाइल में अमीर दिखते होंगे. इसलिए हमने नयी प्रोफाइल इस तरह से बनायी जिनमें अमीर दिखने वाले पुरूषों ने काफ़ी ज्वेलरी पहनी हुई थी, " देशमुख ने डिकोड को बताया.

हमारी नज़र में 'शिखा' के रूप में पहचान रखने वाली महिला ने हमारी चार प्रोफाइलों में से एक पर राइट स्वाइप किया. यह प्रोफाइल क़रीब 30 साल के एक मुखबिर की थी, जिसने फ़ोटो में सोने की कई चेन, अंगूठियां और सोने का एक मोटा कंगन पहना हुआ था.

प्रशांत और देशमुख का आईडिया काम कर गया था और उन्होंने गहरी सांस ली – आख़िरकार उनके हाथ इस केस पर लगे ताले को खोलने की चाबी लग गयी थी. उन्हें यह महसूस हुआ कि 'मैच' होने के बावजूद, जब तक महिला बातचीत शुरू नहीं करती, तब तक उससे संपर्क करने का कोई और रास्ता नहीं है.

"बम्बल के बारे में हमारी समझ धीरे-धीरे बढ़ रही थी. इस बार मिली नई जानकारी यह थी कि अगर 24 घंटों के अंदर महिला राइट स्वाइप हुए पुरुष से बात शुरू नहीं शुरू करती तो पुरुष एक छोटी फ़ीस देकर वेटिंग टाइम बढ़ा सकता है. इसी उम्मीद पर, कि शायद आरोपी महिला हमारे बिछाये जाल में फंस जाये, हमने राइट स्वाइप हुए अपने फ़र्ज़ी प्रोफ़ाइल पर अगले तीन दिनों के लिए फीस भर दी. लेकिन उस महिला वापस स्वाइप नहीं किया. अब हम फिर से स्टार्टिंग लाइन पर खड़े थे," देशमुख ने कहा.

और यह केस फिर से एक बंद ताले के पीछे कैद होता नज़र आ रहा था.

एक नया टर्न, और फिर एक रोड ब्लॉक

जांच के दौरान पता चला कि प्रशांत और देशमुख इकलौते नहीं हैं जो इस केस पर काम कर रहे थे. लोकल पुलिस स्टेशन और एक अन्य क्राइम ब्रांच यूनिट भी ऐसे ही किसी केस को सुलझाने की कोशिश कर रही थी. लेकिन अब तक, किसी भी पुलिस टीम को इस केस में कोई भी सफ़लता हाथ नहीं लगी थी.

काफ़ी सोच-विचार के बाद, इस बार प्रशांत और देशमुख ने इस केस में एक ट्रेडिशनल अप्रोच अपनाने का फैसला किया.

उन्होंने तय किया वो उन यूज़र्स के फोन डेटा की जांच करेंगे जो उन जगहों पर एक्टिव थे, जहां पीड़ित आरोपी महिला से मिली थी. "हमने ऐसे ही केस पर काम कर रहे एक दूसरी क्राइम ब्रांच यूनिट से बात की और उन्होंने बताया कि उन्हें पास मोबाइल फोन यूज़र्स का 'डंप डेटा' था लेकिन हफ़्तों से कोई नया लिंक हाथ नहीं लगा था. इस यूनिट के साइबर क्राइम हेड ने भी बम्बल को उस प्रोफ़ाइल के बारे में जानकारी शेयर करने के लिए लिखा था, लेकिन अभी तक डेटिंग ऐप से कोई जवाब नहीं आया था, देशमुख ने बताया''

एपीआई अंबरीश देशमुख और कांस्टेबल प्रशांत सेड को इस बात का एहसास हो चला था कि इस बार उनका सामना किसी शातिर चार्जशीट क्रिमिनल से नहीं बल्कि एक ऐसे तेज़ तर्रार शख्सियत से था जो बहुत समझदारी के साथ, रडार के नीचे रहते, डेटिंग ऐप्स को सुरक्षा कवच की तरह इस्तेमाल कर रहा था.

और इस बार उन्हें 'बम्बल' की 'पॉसिबल मैच' को फ़िल्टर करने में मदद करने वाली 'उम्र, स्थान और डेटिंग वेरिएशन' सेटिंग का इस्तेमाल करना फ़ायदेमंद लगा.

एक नई शुरुआत के साथ, वो रोज़ाना बम्बल पर कुछ दर्जन प्रोफाइल पर तब तक स्वाइप करते रहे जब तक आरोपी महिला कि दूसरी प्रोफाइल तक नहीं पहुंच गए. इस नई प्रोफाइल में आरोपी 'शिखा' की फ़ोटो के साथ दूसरा नाम था और प्रोफाइल के बायो में लिखा था - 'लेस्बियन'.

उन्होंने एक नए मुखबिर का नया प्रोफ़ाइल बनाने का फ़ैसला किया. पुलिस ने प्रोफ़ाइल को "सादगीपूर्ण, दिखावा करने वाला नहीं, बाइ-सेक्सचुअल" के रूप में वर्णित किया. और 'पार्टनर सर्च' सेटिंग में बदलाव करते हुए ऐसी प्रोफाइल बनायी जिसपर 'सभी' तरह के 'सेक्सचुअल ओरिएंटेशन' वाले लोग स्वाइप कर सकें.

दोनों पुलिसकर्मियों की यह तरकीब काम कर गई. इस नई प्रोफाइल द्वारा जब आरोपी महिला की दूसरी प्रोफाइल पर राइट स्वाइप किया गया तो उधर से भी वापस राइट स्वाइप हुआ. और बातचीत शुरू होने के आसार को देखते हुए पुलिसकर्मियों ने राहत की सांस ली.

बातचीत की शुरुआत हंसी-मज़ाक के साथ हुई. हालांकि, पुलिस यहजानने के लिए बेचैन हो रही थी कि क्या महिला मिलने के लिये या फिर फोन और व्हाट्सएप पर बात करने के लिए रूचि रखती है या नहीं. क्योंकि अब तक बातचीत हाय-हेलो और कैजुअल बातों पर अटकी हुई थी. लेकिन जब फ़र्ज़ी प्रोफाइल द्वारा मांगने पर उस महिला ने अपना मोबाइल नंबर शेयर किया तो पुलिसकर्मी हैरत में पड़ गए. कुछ ही घंटो में पुलिस ने पता लगा लिया कि मोबाइल नंबर फ़र्ज़ी है. उन्होंने कई बार 'बम्बल' पर शिखा से फ़र्ज़ी नंबर के बारे में पूछा और मिलने के लिए कहा तो 'शिखा' ने अचानक से बात करना ही बंद कर दिया और मिलने की बात पर भी रूचि नहीं दिखाई.

देशमुख और प्रशांत लगभग एक महीने से इस केस पर काम कर रहे थे और मामले को सुलझाने के क़रीब भी नहीं पहुंचे थे. उनके पास अभी भी आरोपी महिला के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं थी.

व्यक्तिगत त्रासदी और सफलता

इस सब के बीच, देशमुख के पिता का निधन हो गया और उसे उनका अंतिम संस्कार करने के लिए महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर अमरावती में अपनी फैमिली के पास जाना पड़ा. यह 11 जनवरी, 2021 की बात थी.

एक हफ़्ते बाद, देशमुख को अपने कॉलेज के एक सहपाठी का फोन आया. उसे एक 'निजी मामले' में उसकी मदद की ज़रूरत थी.

उसके एक शादीशुदा दोस्त प्रसाद* को एक ऐसी महिला ने ठग लिया था जिसे वह एक डेटिंग ऐप पर मिला था. दोनों ने ऐप पर 'मैच' होने के बाद मुंबई-पुणे हाईवे पर स्थित एक होटल में साथ बनाने का प्लान बनाया था और यह कांड वहीं हुआ.

देशमुख ने बताया, "आरोपी के काम करने का तरीक़ा हमारे केस की आरोपी महिला से मेल खाता था. मैंने अपने सहपाठी से उस महिला की फ़ोटो भेजने और पीड़ित से मुझे कनेक्ट कराने के लिए कहा," दोस्त ने कॉल कटने के कुछ ही मिनटों में देशमुख को महिला की फ़ोटो भेज दी. यह वही महिला थी और यहां भी उसने खुद की 'शिखा' के रूप में पहचान रखी थी.

कॉन्स्टेबल प्रशांत को प्रसाद* के साथ बात करने के बाद ये विश्वास हो गया कि यह मामला हूबहू अमित* जैसा ही है. चेन्नई रहने वाले, क़रीब 30 साल के करियर और एजुकेशन कंसलटेंट प्रसाद* की शिखा से बम्बल पर मुलाकात तब हुई जब वो किसी मीटिंग के लिए पुणे गया था. वे एक होटल की कॉफी शॉप में मिले और शिखा ने जल्द ही बातचीत को एक कमरे तक ले जाने की इच्छा जताई. उसके बाद दोनों उसी होटल में प्रसाद* के पहले से बुक किये कमरे में गए.

होटल के नियम के मुताबिक़, रिसेप्शन काउंटर पर होटल के कर्मचारी ने महिला का पहचान पात्र मांगा जो उसने दिया. कमरे में पहुंचकर शिखा ने प्रसाद को एक बोतल से कोल्ड ड्रिंक पिलाई – प्रसाद को इस बात का ध्यान नहीं था कि कोल्ड ड्रिंक की बोतल पहले से ही शिखा के पास थी या उसने होटल से ही ऑर्डर की थी.

कोल्ड ड्रिंक पीते ही प्रसाद को चक्कर आने लगा और कुछ मिनटों के बाद वो बिस्तर पर गिर कर बेहोश हो गया.

प्रसाद ने प्रशांत को बताया, "मैं अगले दिन ही उठा. जब मैं उठा, तो 90,000 रुपये की एक सोने की चेन, 25,000 रुपये की एक सोने की अंगूठी, मेरा 20,000 रुपये का मोबाइल फोन और 15,000 रुपये नकद गायब थे." शातिर शिखा क़रीब डेढ़ लाख रुपये का कीमती सामान और नकदी लूट कर फरार हो गयी थी .

प्रशांत और देशमुख को लगा कि अब वो शिखा को पकड़ने के काफ़ी क़रीब आ गए हैं. होटल के रिसेप्शन में जमा पहचान पात्र एक मजबूत सुराग था. लेकिन उन्हें अंदाज़ा नहीं था कि शातिर शिखा पहले से ही इसकी तैयारी करके गई थी.

(फ़ोटो : केस पर संवाददाता सम्मेलन में अपनी टीम के साथ सहायक पुलिस निरीक्षक अंबरीश देशमुख व कांस्टेबल प्रशांत सेड)

होटल के पास शिखा के आधार कार्ड की जो कॉपी थी वो शिखा की अपनी नहीं थी. वो महाराष्ट्र के एक दूसरे शहर में रहने वाली किसी दूसरी महिला की थी. आधार पर लगी फ़ोटो भी आरोपी के चेहरे से मेल नहीं खाती थी. होटल ने माना कि उस वक़्त उन्होंने ये चेक नहीं किया था क्योंकि उन्हें इस जोड़े के बारे में कुछ भी 'संदिग्ध' नहीं लगा था.

फिर भी, ये पुलिस के लिए एक अहम लिंक था. उन्हें विश्वास था कि आधार कार्ड आरोपी महिला की किसी जान पहचान की महिला का हो सकता है.

द एक्स

आधार कार्ड पर मौजूद पता प्रशांत और देशमुख को पुणे से 200 किलोमीटर दूर एक दूसरे शहर में, करीबन 25-30 साल की एक फ़ोटोग्राफर महिला तक ले गया. पहले तो उस महिला ने शिखा को पहचानने से इनकार कर दिया और कहा, उसे नहीं पता कि उस महिला के पास उसका आधार कार्ड कैसे पहुंचा. जब पुलिसकर्मियों ने उससे डिटेल में सवाल करने शुरू किये, तो उसने हार मान ली और सच का ख़ुलासा कर दिया.

महिला ने पुलिस को बताया कि वह सालभर पहले 3 साल तक वह और आरोपी महिला एक लेस्बियन रिलेशनशिप में थे और पुणे में दोनों साथ रहते थे. रिश्ता टूटने के बाद, फ़ोटोग्राफर वापस अपने शहर आ गयी. उसने बताया कि आरोपी का असली नाम शिखा या अन्य कोई नाम नहीं, बल्कि सयाली है.

देशमुख ने बताया, "उस महिला की कहानी दर्दनाक थी, सयाली न सिर्फ़ उसके साथ बुरा व्यवहार करती बल्कि मारपीट तक करती थी. उसके बुरे बर्ताव से तंग आकर इस महिला ने सालों पहले सयाली से रिश्ता तोड़ लिया था और तब से उसके किसी कांटेक्ट में नहीं थी. उसने ये भी दावा किया कि आरोपी ने उसका कैमरा और कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज़ भी उससे छीन लिए थे."

और फिर, एक ग़लती

हालांकि, पुलिस को अब तक आरोपी महिला के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी हो गई थी, लेकिन अब तक वे उसे पकड़ने के क़रीब नहीं पहुंच पाए थे. फ़ोटोग्राफर कभी सयाली के परिवार के घर नहीं गयी थी और उसके पास ऐसी कोई ठोस जानकारी नहीं थी जिससे पुलिस आरोपी का पता ट्रैक कर सके. हालांकि, जिस अंतिम पीड़ित से वे लोग बात कर रहे थे, उसे विश्वास था कि सयाली ने उससे एक बार फ़ोन पर बात की थी.

यह पुलिस के लिए नया लिंक था. अब तक, सभी पीड़ितों ने केवल 'बम्बल' के कॉल फीचर से ही सयाली के साथ बात की थी. अगर दो लोग 'मैच' करते है और उन्होंने बम्बल इंस्टॉल किया हुआ है, तो वे ऐप के जरिए ही एक-दूसरे से कॉल पर बात कर सकते हैं. इस तरह यूज़र्स को एक-दूसरे से बात करने के लिए फ़ोन नंबर शेयर करने की ज़रुरत नहीं होती.

कॉन्स्टेबल ने डिकोड से बात करते हुए कहा, "अगर हमें उसका सेलफ़ोन नंबर पहले मिल जाता तो हम इस केस को बहुत दिन पहले ही सुलझा लेते. लेकिन वह फ़ोन कॉल का उपयोग करने में लापरवाह या मूर्ख नहीं थी, जिससे उसे आसानी से ट्रेस किया जा सकता." इस सब के दौरान, बार-बार पूछने के बावजूद 'बम्बल' की ओर से न कोई मदद आयी और ना ही हमारे किसी ईमेल का जवाब मिला.

इस नई जानकारी के साथ कॉन्स्टेबल प्रशांत ने नए पीड़ित के कॉल रिकॉर्ड का विश्लेषण किया. कई घंटों तक डेटा खंगालने के बाद, पुलिस को जब आरोपी की कॉल का ट्रेस नहीं मिला, जबकि पीड़ित का दावा था कि उसके फ़ोन पर आरोपी का कॉल आया था. कॉन्स्टेबल ने कहा, "पीड़ित शायद एक नियमित कॉल और बम्बल ऐप से मिली कॉलों के बीच में कन्फ्यूज्ड था. कोई नतीजा न निकलने पर हम फिर से खाली हाथ थे." प्रशांत ने कहा.

पुणे निवासी क़रीब 30 साल के प्रशांत सेड एक पुलिस कांस्टेबल हैं लेकिन पिछले कुछ सालों में उन्होंने साइबर क्राइम में गहरी दिलचस्पी ली है. साइबर क्राइम की ज़्यादा से ज़्यादा शिकायतों में प्रशांत ने देखा था कि आरोपी क्राइम में किसी न किसी तकनीकी पहलू का इस्तेमाल करते थे. ऐसे क्राइम को सुलझाने के लिए उन्होंने एल्गोरिदम की जानकारी के साथ साथ इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी की बेसिक चीज़ें सीखी थीं जिससे उन्हें मदद मिल सके. क्राइम ब्रांच में 10 सालों से ज़्यादा काम करते हुए प्रशांत ने इंवेस्टगेशन स्किल्स अपने से सीनियर इन्वेस्टिगेटर्स को कई पेचीदा मामलों की बारीकी से जांच करते देख-देख कर तराशे थे.

प्रशांत पीड़ित के सेल फोन रिकॉर्ड के डेटा के डिटेल्स की एक बार फिर से बारीकी से जांच करना शुरू किया. हर फ़ोन नंबर को देखकर वापस सोर्स पर जाकर उससे मैच किया. लेकिन पीड़ित के बताये गए समय पर हुई किसी भी कॉल से सयाली से बात करने का अब तक कोई सुराग नहीं मिला था.

लेकिन एक दिन बाद, उनके सामने सफलता बाहें फैलाये खड़ी थी. प्रशांत ने पीड़ित के नंबर पर सात सेकेंड की कॉल देखी थी, जबकि पीड़ित का कहना था कि उस समय पर उसने सयाली से बात नहीं की. हालांकि, वह उस कॉल या नंबर को नहीं पहचान पाया था. प्रशांत फ़ोन उठा कर वो नंबर डायल कर सकते थे, लेकिन इसके बजाय, उन्होंने सेल फ़ोन प्रोवाइडर से नंबर का डिटेल लेने का फ़ैसला किया. मोबाइल फ़ोन कंपनी से डिटेल्स का इंतज़ार करते अचानक प्रशांत को याद आया कि उन्होंने यह नंबर कहीं और भी देखा है.

प्रशांत ने जल्दी से अपने डेस्क पर बिखरे कागज़ो के ढेर में वो कागज़ ढूंढ निकाला जिस पर वो नंबर लिखा था - और ये वही नंबर था जिससे पीड़ित को 'रहस्यमय' कॉल मिली थी. और ये नंबर सिर्फ़ उस नंबर से बस एक डिजिट अलग था जिसे सयाली ने पुलिस मुखबिर की फ़र्ज़ी प्रोफाइल के साथ शेयर किया था.

बिंगो! उनकी अथक मेहनत रंग ला रही थी.

शातिर सयाली ने आख़िरकार, एक ग़लती कर ही दी थी. और प्रशांत ने वो ग़लती पकड़ ली थी.

प्रशांत ने बताया, "जब मैंने कॉल डेटा रिकॉर्ड पर उस नंबर को देखा तो मुझे एक झटका लगा. यह नंबर जाना पहचाना लग रहा था पर उस वक़्त मैं ये लिंक जोड़ नहीं पाया था," उन्होंने बताया कैसे उनके काम की लाइन में, वाहन नंबर या उनके जांच के रडार पर रहने वाले लोगों के सेलफ़ोन पर ध्यान रखना ज़रूरी होता है. कभी-कभी, प्रशांत उन नम्बरों को याद करके रख लेते है. उदाहरण के तौर पर उन्होंने डिकोड को बताया, जिस केस पर वो इस वक़्त काम कर रहे है, उस आरोपी की गाड़ी का नंबर उन्हें याद है और अगर कभी वो गाड़ी उन्हें सड़क पर दिख जायेगी तो वे एकदम पहचान लेंगे."

"बहुत ज़ोर देने पर भी पीड़ित को आरोपी से उस समय हुई बातचीत याद नहीं आयी. उसे केवल इतना याद था कि एक कॉल आया था लेकिन फ़ोन की दूसरी तरफ से कोई आवाज़ नहीं आयी थी. आरोपी महिला ने ग़लती से अपने रेगुलर फ़ोन से डायल कर दिया होगा और ग़लती का एहसास होते ही तुरंत फ़ोन काट दिया होगा," प्रशांत ने बताया.

बस, फिर क्या था ! एक के बाद एक करके सारे लिंक अब खुद ही जुड़ते चले जा रहे थे. सेलफ़ोन प्रोवाइडर ने पुलिस को एड्रेस दिया जिस पर यह पोस्टपेड नंबर रजिस्टर्ड था. पुलिस ने सीक्रेट सर्विलांस शुरू कर दिया ताकि पहले स्पष्ट हो जाए कि असल में यह सयाली के घर का पता है.

कुछ घंटों के बाद, प्रशांत ने आरोपी को एक स्कूटी पर पीछे बैठे हुए बिल्डिंग से निकलते देखा. पुलिस रूल के हिसाब से, किसी महिला को गिरफ़्तार करने के लिए महिला पुलिसकर्मी का साथ होना ज़रूरी होता है. ऐसे में, अगले दिन महिला पुलिसकर्मियों के साथ आई सर्विलांस टीम ने सयाली को उसके घर से गिरफ़्तार कर लिया.

एक हसीना, 16 शिकार

27 साल की सयाली ने बहुत पहले कॉलेज छोड़ कर कॉल सेंटरों और ग्राहक सेवा कंपनियों में छोटे मोटे काम करने शुरू कर दिए थे. वह अपनी मां और भाई के साथ पुणे में एक पॉश, अपर मिडिल क्लास एरिया के एक अपार्टमेंट बिल्डिंग के टॉप फ्लोर पर रहती थी. पुलिस के मुताबिक़, यह फ्लैट कोई आम फ्लैट नहीं था. सयाली के परिवार ने बिल्डिंग की टॉप फ्लोर पर कब्जा किया हुआ था और उनके फ्लोर के कमरे टेढ़े-मेढ़े और अजीब ढंग से बने हुए थे.

प्रशांत ने डिकोड को बताया, "हम इस मामले में ज़्यादा नहीं पड़ना चाहते थे. बस इतना ही समझ पाए कि वहां किसी तरह का प्रॉपर्टी विवाद था, जिसकी वजह से परिवार ने छत पर अपने मन मुताबिक़ कमरे बना लिए थे और घर के रूप में इस्तेमाल कर रहे थे."

(27 वर्षीय सयाली ने कॉलेज छोड़ दिया और फिर अपना समय कॉल सेंटरों और ग्राहक सेवा कंपनियों में छोटा-मोटा काम करने में बिताया)

उनका एक प्राइवेट परिवार था जो ज़्यादा किसी से घुलता मिलता नहीं था. इस संवाददाता द्वारा की गयी पूछताछ दौरान, सालों से इस इलाक़े में रहने वाले कुछ पड़ोसी और दुकानदार सयाली के बारे में कुछ ज़्यादा जानकारी नहीं दे पाए. उनमें से कुछ को बस इतना याद था कि सयाली के पिता एक डॉक्टर थे और क़रीब 10 साल पहले अचानक दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था. सयाली का भाई भी एक कॉल सेंटर में काम करता था.

डिकोड ने सयाली के परिवार और वकीलों से कांटेक्ट करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने इस केस के बारे में कुछ भी कहने से इंकार कर दिया.

भारत में कोविड -19 महामारी के प्रकोप के दौर में, एक मोबाइल फ़ोन नेटवर्क प्रोवाइडर के कॉल सेंटर पर काम करती सयाली की नौकरी चली गयी थी. उसने इस बारे में अपने परिवार को नहीं बताया था. पुलिस ने कहा कि उसकी मां उसके पिता के निधन के बाद डिप्रेशन का शिकार हो गयी थी और उन्हें कई दवाएं रेग्युलर दी जाती थीं, जिनमें कुछ मीडियम पोटेंसी की नींद की गोलियां भी थीं.

सयाली ने अपनी मां की इसी दवा के पर्चे का इस्तेमाल करके ये गोलियां खरीदनी शुरू की और फिर उनका इस्तेमाल अपनी ऐप डेट्स को ड्रग करके बेहोश करने में किया.

इनमें से कुछ दवाएं 'शेड्यूल एच' दवाएं थीं जिन्हें प्रोटोकॉल को फॉलो किए बिना नहीं खरीदा जा सकता था. केमिस्ट के लिए हर बार इन्हे बेचने के समय, मात्रा और ख़रीद की तारीख़ के साथ दवा के पर्चे पर स्टाम्प लगाना ज़रूरी था.

"सयाली को सिस्टम का ग़लत इस्तेमाल करना अच्छी तरह से आता था. वह पुणे में जनरल पोस्ट ऑफिस के पास के एक केमिस्ट का इस्तेमाल करती जो जानते थे कि उसकी माँ डिप्रेशन की मरीज़ है. चूंकि, वह एक रेग्युलर कस्टमर थी, केमिस्ट उसके दवा के पर्चे पर हर बार स्टाम्प लगाने पर ध्यान नहीं देते थे. इस बात का फ़ायदा उठाकर सयाली ने उस पर्चे का इस्तेमाल अपने शिकारों की ड्रिंक्स को स्पाइक करने वाली नींद की गोलियों को ख़रीदने के लिए बार-बार इस्तेमाल करके किया," एपीआई देशमुख ने बताया.

पूछताछ के दौरान, सयाली ने ख़ुलासा किया कि वह आमतौर पर विवाहित पुरुषों या शिक्षित पुरुषों को निशाना बनाती थी. वह जानती थी कि पुरुषों के ये दोनों समूह पुलिस के सामने शिकायत दर्ज करवाने में शर्मिंदगी महसूस करेंगे. उसका यह आंकलन सही था.

पुलिस की जानकारी में 16 केस आये, जहां सयाली ने बम्बल पर पुरुषों से मुलाकात की और उन्हें लूट लिया. लेकिन पुलिस सभी पीड़ितों को आगे आने और शिकायत दर्ज करने के लिए मनाने में नाकाम रही. अपनी गिरफ़्तारी के बाद, सयाली शुरू में अपने पीड़ितों के डिटेल्स देने से आनाकानी करती रही. प्रशांत और देशमुख ने उसके कॉल रिकॉर्ड का बारीकी से स्टडी किया था. उन्होंने उन तारीख़ों की पहचान की जिन पर वह कई घंटों तक एक ही जगह पर रही थी. इस जांच से उन्होंने उसके घर का पता हटा दिया. "हम समझ गए कि यदि वह कई घंटों तक एक ही जगह पर थी, तो वह अपने शिकार पर थी. जब उसने सहयोग करने और अन्य पीड़ितों के डिटेल्स शेयर करने से इनकार कर दिया, तो हमने अपने इक्कट्ठा किये डेटा से चिन्हित की हुई जगहों पर खोजबीन करनी शुरू कर दी. अब वह समझ गयी थी कि उसका खेल खत्म हो गया है और फिर उसने कनारी की तरह गाना शुरू कर दिया," देशमुख ने कहा.

सयाली उन्हें उन पतों पर ले जाने के लिए मान गई जहां वह अपने पीड़ितों से मिली थी.

एक केस में पुलिस सयाली के साथ कोरेगांव पार्क में एक आलीशान घर तक पहुंची - ये पुणे का एक पॉश इलाका था जिसमें शहर के कई नामी गिरामी लोग रहते थे. आरोपी ने पुलिस को बताया था कि उसने उस पते पर रहने वाले एक व्यक्ति को लूटा था.

"हमने घर की घंटी बजाई और एक महिला ने दरवाजा खोला. उसे सयाली के बारे में कुछ पता नहीं था. महिला से कुछ फीट पीछे, पजामा और एक टी-शर्ट में घबराया हुआ एक व्यक्ति खड़ा था. उसने हमसे बात करने या आगे आने से इनकार कर दिया. सयाली ने एक नज़र में उस आदमी को पहचान लिया कि वह उसके शिकारों में से एक था. उस व्यक्ति ने सयाली को पहचाने से भी इंकार कर दिया, केस को मजबूत करने के लिए शिकायत दर्ज करने की तो बात बहुत दूर थी." प्रशांतने कहा. कुछ और मामलों में, पुलिस ने पाया कि पुरुष अपार्टमेंट खाली करके वहां से चले गए थे.

देशमुख ने कहा, "हमारे पास, कम से कम 12 पीड़ितों के लावारिस, कीमती सामान पुलिस थाने में हिफाज़त से पड़े हैं." अब तक केवल चार पीड़ित ही सामने आए हैं.

"सयाली अपने शिकार सावधानी से चुनती थी. वह केवल उन पुरुषों से मिलती जो उसे लगता कभी पुलिस स्टेशन जाने और रिपोर्ट करने की हिम्मत नहीं दिखाएंगे. हमारा पहला पीड़ित, भले ही एक गैर शादीशुदा आदमी था, लेकिन वह भी अपराध दर्ज नहीं कराना चाहता था. उसने अपने पिता के ज़ोर देने पर ही दिसंबर 2020 में पुलिस स्टेशन का दरवाजा खटखटाया था. अमित* के पिता का ये मानना था कि इस तरह के गंभीर अपराध को जाने नहीं देना चाहिए, जिसमें उसे भारी मात्रा में नशीला पदार्थ दिया गया हो," देशमुख ने बताया.

सयाली ने पुलिस को एक और दिलचस्प जानकारी दी. उसने अपने कई प्रोफाइल में जिन नामों का इस्तेमाल किया, वे उसके वास्तविक जीवन के दोस्तों के थे.

एक ओर, जहां वह प्लांड तरीके से अपनी 'डेट्स' प्लान करती थी, वहीं दूसरी ओर, उसे अपने घर से दूर पुणे के एक कोने में एक जौहरी ढूंढ लिया था. वह उस जौहरी से एक अमीर परिवार की उस लड़की की तरह मिली जो अपने बीमार पिता के इलाज का पैसा इक्कठा करने के लिए, अपना कीमती सामान बेच रही थी.

"जौहरी भी उसकी मीठी बातों में आ गया. चोरी के गहनों के अलावा, उसने यहां अपने दोस्त के घर से चुराई गई चांदी की एक मूर्ति भी बेची थी. हमने उसके कुछ दोस्तों और उनके परिवारों के बयान दर्ज किए हैं, जिसमें कहा गया है कि डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल कर लोगों को लूटना शुरू करने से बहुत पहले, उसने उनके घरों से चोरियां की थी."

पुलिस ने उसके घर और जौहरी के पास से चोरी का काफी सामान बरामद किया. पुलिस का दावा है कि वह जिस फ़ोन का इस्तेमाल कर रही थी, वह भी एक दोस्त के घर से चोरी करके लायी थी, जहां वह एक समारोह में भाग लेने के लिए गई थी.

पुलिसकर्मी जिन्होंने इस केस को सुलझाया

एक बार जब पुलिस ने उसे अपनी हिरासत में ले लिया, तो तत्कालीन पिंपरी चिंचवड पुलिस प्रमुख कृष्ण प्रकाश ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर पीड़ितों से आगे आकर अपनी शिकायतें दर्ज कराने की अपील की लेकिन ज़्यादा लोग आगे नहीं आये.

प्रशांत और देशमुख, जिन दोनों की उम्र क़रीब 30 साल है, केस की सफलता का क्रेडिट एक दूसरे के साथ बांटते और एकदूसरे की तारीफ़ करते नहीं थकते हैं. केस की एक महत्वपूर्ण अवधि के दौरान, देशमुख अपने पिता के खोने का शोक मना रहे थे और उन्होंने कहा, कांस्टेबल प्रशांत ने उस मुश्किल वक़्त में उनका भरपूर साथ दिया. देशमुख ने डिकोड को बताया, "डेटा डंप को स्टडी करने के लिए प्रशांत हमारे पास सबसे काबिल रिसोर्स है."

दूसरी ओर कॉन्स्टेबल को विश्वास था कि अगर एपीआई ने केस की डिटेल्स पर ध्यान नहीं होता तो वे केस से ही आगे नहीं बढ़ पाते.

पुलिस में 10 साल से ऊपर रहने के बावजूद, सयाली के हिरासत में दिए क़बूलनामे ने उन लोगों को आश्चर्यचकित कर दिया था. शातिर सयाली ने अपने शिकारों को लूटने के बाद भागने की कभी जल्दी नहीं दिखाई - बल्कि उसने अपने अंजाम दिए कारनामों को बेहद तसल्ली से एन्जॉय किया. सयाली ने पुलिसकर्मियों को बताया कि कैसे प्रसाद के होटल के कमरे में बेहोश हो जाने के बाद उसने मिनी बार में से निकालकर कुछ ड्रिंक्स पी, फिर अपने साथ लाये गांजे को फूंका और फिर प्रसाद के सामान को आराम से निकालकर और नकदी इक्कठा करने के बाद होटल के कमरे से बाहर निकली.

"क्या ग़ज़ब का आत्मविश्वास! सुन कर हम बस दंग रह गए!" देशमुख बोले.

(*पीड़ितों के अनुरोध पर कुछ नाम बदले गए हैं)

(ट्रांसलेशन – गायत्री मनचंदा)

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