सोशल मीडिया पर एक वायरल तस्वीर यह दावा कर रही है कि कैंसर को बिना दवा के ठीक किया जा सकता है। तस्वीर के मुताबिक नोबेल पुरस्कार विजेताओं ने कहा कि कैंसर को जीवनशैली में बदलाव के साथ बिना किसी दवा के ठीक किया जा सकता है। यह दावा भ्रामक है।
इस तस्वीर का श्रेय हैदराबाद के डॉ. शहीद बेग को दिया जा रहा है।
हैदराबाद स्थित फिजियोथेरेपिस्ट और वैकल्पिक मेडिकल प्रैक्टिश्नर डॉ. शाहिद बेग का दावा है कि नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. ओटो वारबर्ग, डॉ. फरीद मुराद और डॉ. योशिनोरी ओहसुमी ने अपने शोध के माध्यम से साबित किया कि कैंसर को बिना दवा के ठीक हो सकता है, भले ही वह किसी भी स्टेज पर हो।
तस्वीर के 3 दावे हैं:
दावा 1:
डॉ. वारबर्ग के अध्ययन, जिसमें कहा गया है कि कैंसर कोशिकाएं ऑक्सीजन के साथ वातावरण में जीवित नहीं रह सकती हैं, का इस्तेमाल करते हुए तस्वीर कहती है कि ऑक्सीजन के स्तर को बढ़ाने के लिए नियमित व्यायाम अनिवार्य होना चाहिए।
फ़ैक्ट चेक
डॉ वारबर्ग ने कभी नहीं कहा कि कैंसर कोशिकाएं ऑक्सीजन के बिना वातावरण में जीवित नहीं रह सकतीं। उनके अध्ययन में कहा गया है कि वे ऑक्सीजन मौजूद होने पर भी उनमें एनारोबिक ग्लाइकोलाइसिस होते हैं। एनारोबिक ग्लाइकोलाइसिस एक चयापचय मार्ग है जिसमें ग्लूकोज पाइरूवेट की बजाय लैक्टेट में टूट जाता है। यह आमतौर पर ऑक्सीजन की उपस्थिति में पाइरुवेट में टूटता है। सेल को काम करने के लिए ऊर्जा की जरुरत होती है, जिसके लिए वह ग्लूकोज पाइरूवेट में टूट जाता है।
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वारबर्ग द्वारा देखे गए एनारोबिक ग्लाइकोलाइसिस में, ग्लूकोज मॉलेक्युल,यहां तक कि ऑक्सीजन की उपस्थिति में भी, ऐसा व्यवहार करते हैं जैसा कि वे ऑक्सीजन की अनुपस्थिति में करेंगे,जहां वे लैक्टेट में परिवर्तित होते हैं, कोशिकाएं किण्वन द्वारा ऊर्जा बनाती हैं। इससे कैंसर कोशिकाओं की वृद्धि होती है। यह दावा कि व्यायाम से शरीर में अधिक ऑक्सीजन प्रवेश करेगा और कैंसर कोशिकाओं में कमी होगी, वैज्ञानिक रूप से समर्थित नहीं है और भ्रामक है।
दावा 2:
डॉ. मुराद के नोबेल विजेता अध्ययन का कहना है कि धमनियों में रुकावट को कच्ची सब्जियों और फलों को खाने से हटाया जा सकता है क्योंकि उसमें नाइट्रस ऑक्साइड होता है। तस्वीर का दावा है कि बहुत सारी सब्जियां और फल खाने से धमनियों में रुकावटों को दूर किया जा सकता है और स्वस्थ कोशिकाओं को बेहतर रक्त की आपूर्ति हो सकेगी।
फ़ैक्ट चेक
कैंसर के उपचार में नाइट्रिक ऑक्साइड की भूमिका काफी अस्पष्ट है। 2016 में किए गए एक अध्ययन में कहा गया है कि नाइट्रिक ऑक्साइड ट्यूमर को दबाने वाला और कैंसर को बढ़ावा देने वाले एजेंट के रूप में कार्य कर सकता है।
तस्वीर रक्त प्रवाह और धमनी में रुकावटों के बारे में बात करती है जबकि कैंसर पर उसी के प्रभाव की चर्चा नहीं की जाती है।
दावा 3:
डॉ ओह्सुमी के अध्ययन में ऑटोफैगी की चिंता पर चर्चा की गई है, जहां भूखी रहने पर कोशिकाएं, क्षतिग्रस्त और कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को खा जाती है।
तस्वीर व्याख्या करती है कि उपवास प्रतिरक्षा बढ़ाता है और कैंसर कोशिकाओं को मार सकता है। यह इस प्रकार लोगों को प्रतिरक्षा बढ़ाने के लिए सप्ताह में कम से कम एक बार "उपवास" रखने की सलाह देता है।
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फ़ैक्ट चेक
ऑटोफैगी का अर्थ है आत्म-भोजन। पोषक तत्वों के भूखे होने पर कोशिकाएं क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की खोज करती हैं और उनका उपभोग करती हैं। जबकि उपवास का अध्ययन इसके फायदे जानने के लिए किया गया है, लेेकिन इस सिद्धांत का समर्थन करने के लिए पर्याप्त शोध नहीं है कि सप्ताह में एक बार इसका अभ्यास करना, कार्सिनोजेनिक कोशिकाओं को प्रभावित कर सकता है।
नाइट्रिक ऑक्साइड की तरह, ऑटोफैगी भी पर्यावरण और ट्यूमर के विकास के चरण के आधार पर या तो ट्यूमर को दबा सकती है या बढ़ावा दे सकती है।यह बात 2018 में एक अध्ययन में साबित हुई।
रोगी ऑटोफैगी से हो सकता है कैंसर।
डॉ. बेग का दृष्टिकोण
बूम ने चित्र बनाने के उनके कारणों को समझने के लिए डॉ. बेग से संपर्क किया।
बेग हैदराबाद स्थित एक फिजिओथेरेपिस्ट और वैकल्पिक मेडिकल प्रैक्टिश्नर हैं।
"हमारे देश में 2 लाख से अधिक डॉक्टर हैं, हालांकि वे बीपी जैसे साधारण विकार का इलाज करने में असमर्थ हैं और जीवन भर के लिए दवा की सलाह देते हैं।बीपी को साधारण तकनीक से ठीक किया जा सकता है जैसे कि कच्चा खाना और 10 से 15 मिनट तक चलना। लेकिन कोई भी डॉक्टर आपको नहीं बताता है क्योंकि वे पोषण का अध्ययन नहीं करते थे वे केवल दवा का अध्ययन करते हैं। "
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उन्होंने आगे कहा, "चिकित्सा पेशेवरों से सलाह न लें, जो फार्मा कंपनियों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से नियंत्रित हैं। यदि आपको सही जानकारी की आवश्यकता है तो महान व्यक्तित्वों का अध्ययन करें जो मानवता के लिए काम कर रहे हैं।"
ऑन्कोलॉजिस्ट क्या कहते हैं?
इन सिद्धांतों को समझने के लिए बूम ने मुंबई के पीडी हिंदुजा अस्पताल और एमआरसी के लाहकार ऑनकोसर्जन, मराद लाला से संपर्क किया।
उन्होंनो ऑक्सीजन सिद्धांत के बारे में कहा, "कैंसर एक बहु-चरणीय प्रक्रिया की तरह है और उतनी सरल नहीं है जैसा कि तस्वीर में दिखाई गई है। प्रायोगिक तौर पर उच्च दाब वाले ऑक्सीजन चैंबर का उपयोग किया जा रहा है, लेकिन इसके पूरे सबूत नहीं है।"
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अन्य दो सिद्धांतों के लिए, उन्होंने उल्लेख किया कि कुछ बयानों को संदर्भ से बाहर ले जाया गया है और अध्ययनों की ग़लत व्याख्या की गई है।
डॉ लाला ने कहा, "लोगों को अपने निर्णय लेने से पहले गूगल पर हर चीज़ का संदर्भ देना चाहिए और आगे के इलाज के लिए अपने चिकित्सकों और विशेषज्ञों से परामर्श करना चाहिए।"