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स्वास्थ

कोविड-19 संक्रमण फिर होने के सीमित सबूत: डब्लू.एच.ओ इंडिया चीफ़

बूम ने री-इन्फ़ेक्शन को समझने के लिए विश्व स्वास्थ संगठन द्वारा हाल ही में नियुक्त इंडिया हेड डॉ रोडरिको ऑफ़्रिन से बात की

By - Saket Tiwari | 8 Sept 2020 6:35 PM IST

बीते महीने 24 अगस्त को हॉन्ग कॉन्ग में दुनिया का पहला आधिकारिक तौर पर प्रमाणित कोविड-19 पुनः संक्रमण यानी री-इन्फ़ेक्शन का मामला सामने आया जिसके बाद सार्स-सीओवी-2 वायरस पर अधिक शोध करने की ज़रूरत महसूस की गयी |

जबकि वैज्ञानिकों ने 33 वर्षीय मरीज़ के अंदर वायरस की अनुवांशिकी का विश्लेषण कर इसे री-इन्फ़ेक्शन कहा, दुनिया भर में कई न्यूज़ रिपोर्ट्स में इस शब्द का इस्तेमाल अस्पष्ट तौर पर किया जा रहा है |

एक व्यक्ति सार्स-सीओवी-2 से ठीक होने के महीनों बाद भी संक्रमित हो सकता है | हालांकि विश्व स्वास्थ संगठन ने यह साफ़ किया है कि इस मामले में अभी और अध्ययन की ज़रूरत हैं ताकि ये पता लगाया जा सके कि इस तरह के संक्रमण पुनः संक्रमण यानी री-इन्फ़ेक्शन हैं या पिछले संक्रमण से ही वायरस के सुराग बाक़ी रह गए थे जिन्होंने व्यक्ति को वापस बीमार किया |

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वहीँ शरीर में पैदा हुई प्रतिरोधक प्रतिक्रिया पर भी अध्ययन करना बाक़ी है कि यह कितनी प्रभावशाली साबित होगी | वैज्ञानिकों के मुताबिक़, री-इन्फ़ेक्शन या पुनः संक्रमण दरअसल समान वायरस के अलग प्रकार (या स्ट्रेन) से संक्रमित होने को कहते हैं | अध्ययनों ने बताया है कि वायरस में होने वाले यह उत्परिवर्तन या म्युटेशन जो लोगों को पुनः संक्रमित कर सकते हैं, कोविड-19 वैक्सीन बनाने की प्रक्रिया को प्रभावित नहीं करेंगे

री-इन्फ़ेक्शन पर विश्व स्वास्थ संगठन के नज़रिये को समझने के लिए बूम ने रोडरिको ऑफ़्रिन से बात की |

ऑफ़्रिन हाल ही में डब्लूएचओ द्वारा भारत के प्रमुख नियुक्त किये गए हैं | वह भारत के डब्लू.एच.ओ प्रतिनिधि डॉ हेंक बेकेडेम के रिटायर होने के बाद नियुक्त हुए हैं | ऑफ़्रिन इससे पहले डब्लू.एच.ओ के साउथ-ईस्ट एशिया रीजनल ऑफ़िस (यानी डब्लू.एच.ओ सीरो) में रीजनल एमर्जेन्सीज़ डायरेक्टर थे जो 11 देशों का एक समावेश है |

डॉ ऑफ़्रिन ने रेकर्रेंस (बचे हुए वायरस ट्रेसेस से संक्रमण) और री-इन्फ़ेक्शन (समान वायरस के दूसरे स्ट्रेन से संक्रमण) के बीच का अंतर समझाते हुए यह भी बताया की सार्स-सी.ओ.वी-2 री-इन्फ़ेक्शन पर साक्ष्य सीमित हैं |

हमारे सवालों पर उनके जवाबों से पता चलता है की विश्व स्वास्थ संगठन री-इन्फ़ेक्शन की संभावना पर देशों के साथ गौर से नज़र रखे हुए हैं और साथ ही अध्ययन भी शुरू हैं |

पुनः संक्रमण क्या है? क्या डब्लू.एच.ओ ने री-इन्फ़ेक्शन पता करने और इसके इलाज़ के लिए कोई गाइडलाइन्स या परिभाषा तैयार की है?

डॉ ऑफ़्रिन: जब एक व्यक्ति संक्रमित होता है, ठीक हो जाता है और फिर बिमारी विकसित हो जाती है तो उसे हम रेकर्रेंस कहते हैं जो पुनः संक्रमण से भी हो 'सकता' है | अब तक कोविड-19 से ठीक हुए लोगों में पुनः संक्रमण को लेकर सीमित साक्ष्य हैं |

शोध और वायरस की अनुवांशिकी बनावट का विश्लेषण इन मामलों को पक्की तौर पर पुनः संक्रमण घोषित करने के लिए जरुरी है | यह बेहद जरुरी है कि गाइडलाइन्स बनाने या बड़े पैमाने पर निष्कर्ष निकालने से पहले ऐसे मामलों को पुख्ता किया जाए |

क्योंकि वायरस कि कई जानकारियां हमारे पास नहीं है और महामारी तेजी से उभर रही है, हमें वो करना चाहिए जो हम जानते हैं कि कामगर है जैसे मास्क पहनना, हाथ धोना, शारीरिक दूरी, उनके लिए भी जो ठीक हो गए हैं |

री-इन्फ़ेक्शन के पीछे क्या विज्ञान है?

डॉ ऑफ़्रिन: शोध से पता चलता है कि कोविड-19 के मरीज़ जो असिम्पटोमैटिक इन्फ़ेक्शन, गंभीर बीमार और हलके संक्रमण से प्रभावित हैं, प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेते हैं पर हमें नहीं पता कि यह कितनी देर के लिए रहती है और कितनी मजबूत है |

कई और मानव कोरोना वायरसों और अन्य वायरल बीमारियों पर आधारित सूचना से पता चलता है कि लोग एंटी-बॉडी प्रतिक्रिया वित्सित करते हैं जो कुछ वक़्त के बाद ख़त्म हो जाती है जिससे पुनः संक्रमण संभव होजाता है |

एक व्यक्ति कैसे पुनः संक्रमित होता है?

डॉ ऑफ़्रिन: साधारण तौर पर कई फैलने वाली बीमारियां है जो प्रतिरोधक क्षमता के ख़त्म होने पर वायरस के संपर्क में फिर आने पर होती है या पहले इन्फ़ेक्शन से कोई प्रतिरोध विकसित न होने पर होती हैं | हालांकि, कोविड-19 के पुनः संक्रमण को समझने के लिए बहुत शोध और अध्ययन कि जरुरत है कि कैसे री-इन्फ़ेक्शन होता है |

विश्व में कौनसे देश हैं जहाँ री-इन्फ़ेक्शन के मामले सामने आये हैं? क्या भारत भी, डब्लू.एच.ओ के मुताबिक़, री-इन्फ़ेक्शन के मामले देख रहा है?

डॉ ऑफ़्रिन: इस पर अब भी अध्ययन शुरू हैं तो विश्व में या भारत में अब तक री-इन्फ़ेक्शन पर कोई डाटा नहीं है | यह एक ऐसा क्षेत्र हैं जहाँ शोध की आवश्यकता है और जब भी हो सके या साधन उपलब्ध हों तो री-इन्फ़ेक्शन पहचानने के लिए जीन सिक्वेंसिंग करना चाहिए | जिससे हमें बेहतर समझ आएगा जब इसके साथ ही बीमार व्यक्ति के प्रतिरोधक क्षमता की मजबूती और समयांतराल पर जानकारी मौजूद होगी |

हम इस वायरस और शरीर के वायरस के प्रति प्रतिक्रिया को अब भी समझ रहे हैं |

री-इन्फ़ेक्शन से बचने के लिए क्या किया जाना चाहिए?

डॉ ऑफ़्रिन: प्रतिरोधक क्षमता और इसके समयांतराल को अब भी पूरी तरह से समझना बाक़ी है | हालांकि यह बहुत ज़रूरी है कि अब कोविड-19 के खिलाफ़ उचित बचाव जारी रखें जैसे मास्क पहनना, हाथ धोना, शारीरिक दूरी | यह उनके लिए भी ज़रूरी है जो ठीक हो चुके हैं |

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