हम आज ऐसे दौर से गुज़र रहे हैं जब तमाम विश्व एक महामारी से जूझ रहा है | सड़के, दफ़्तर, मनोरंजन स्थल - सभी सुनसान पड़े हैं क्यूंकि लोग अपने घरों के अंदर हैं | हर देश ने अलग-अलग निर्धारित समय सीमा तक लॉकडाउन की घोषणा कर रखी है | भारत में लॉक-डाउन की अवधी को 14 अप्रैल से बढाकर तीन मई कर दिया गया है | अपने घरों के भीतर रहते हुए पुरे देश को फ़िलहाल एक महीना हो चूका है |
ऐसे समय में मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी हो जाता है | इसी सिलसिले में बूम ने मनोचिकित्सक डॉ सागर मुंदड़ा से कोरोना वायरस और मेन्टल हेल्थ से जुड़ी कुछ बातें की | बातचीत के अंश नीचे दिए इंटरव्यू में पढ़ें |
सवाल: लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर कोरोनावायरस का क्या असर रहेगा? क्या लॉकडाउन ख़त्म होने के बाद पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर (PTSD) के केसेस में बढ़ोतरी होगी? मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ने की क्या संभावनाएं हैं?
डॉक्टर सागर: मानसिक स्वास्थ से जुड़ी समस्याएँ निश्चित तौर पर बढ़ीं हैं | स्वास्थ्य और पैसों से जुड़ी चिंताएँ, लॉकडाउन के दौरान अकेले फ़ंसे लोगो में अवसाद, दैनिक दिनचर्या ना होने की वजह से उत्पन्न निंद्रा विकार (sleep disorders) - ऐसे केस तो बढ़ेंगे ही साथ ही पोस्ट ट्रॉमेटिक डिसऑर्डर्स (PTSD) समय के साथ धीरे धीरे सामने आएँगे | ऐसे हालातों में इन चीज़ों की जानकारी रखना बेहद महत्वपूर्ण है | ऐसी किसी भी समस्या के लक्षण दिखाई देने पर सबसे पहले मनोचिकित्सक से संपर्क करना ज़रूरी है | साथ ही 'पॉज़िटिव अफ़रमेशन ट्रेनिंग' तथा 'माइंडफ़ुलनेस मैडिटेशन' ऐसे दौर में काफ़ी फ़ायदेमंद साबित होंगे |
सवाल: ये बहुत ही मुश्किल दौर है | आम नागरिक तो फिर भी अपने घरों की चारदीवारी के अंदर हैं मगर स्वास्थ्य कर्मचारीयों को तो कभी ना ख़त्म होने वाली शिफ़्टस में काम करना पड़ रहा है | आप लोग इस दौर का सामना कैसे कर रहें हैं?
डॉक्टर सागर: यह वाकई मुश्किल घड़ी है... कई दिक्कतें है - हेल्थ सिस्टम पर ज़रूरत से ज़्यादा बोझ है | ये बोझ आम समय में भी रहता है | अब ये काफ़ी ज़्यादा बढ़ गया है | पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स (PPE) की कमी है | कई दफ़ा मरीज़ों के रिश्तेदार डॉक्टर्स के साथ अभद्रता कर बैठते हैं और ये एक बहुत बड़ी समस्या है जिसका डॉक्टर्स को अक्सर सामना करना पड़ता है | अगर एक औसत मान ले तो लगभग 20 प्रतिशत डॉक्टर्स किसी ना किसी मानसिक समस्या से जूझ रहे होते हैं | इन समस्याओं का सामना सब अपनी अपनी तरह से कर रहे हैं | कुछ डॉक्टर्स है जो मेडिटेशन का सहारा लेते हैं | जो भी थोड़ा समय उन्हें इस व्यस्त दिनचर्या में मिलता है, वो उसी में मेडिटेशन कर लेते हैं |
अपने दोस्तों और परिवारजनों से बातचीत करते रहना इस दौर में बहुत ज़रूरी है | आपके अगले वार्ड में जो डॉक्टर हो, उनसे बातचीत का दौर चलते रहना चाहिए | देखिये, ये जंग जैसी परिस्थति है | आप बाज़ी तभी मार सकते हैं जब आप अपने सहयोगी सिपाही को अपना परिवार मान लें |
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सवाल: डॉक्टर्स एक घातक बीमारी से जूझ रहे हैं । ऐसी स्थितियों में आप अपने साथ-साथ अपने अधीनस्त कर्मचारियों को कैसे प्रेरित करते हैं? क्या विभाग के अधिकारियों के लिए परामर्श सत्रों (counselling sessions) का आयोजन किया जा रहा है?
डॉक्टर सागर: ये ऐसा वक़्त है जब खुद को प्रेरित करना ही प्रेरणा का मुख्य स्नोत हो सकता है | इससे बड़ी क्या प्रेरणा होगी की आप लोगों की जान बचाने में जुटे हैं | रही बात ऐसे काउंसलिंग सेशंस की जो डाक्टरों या नर्सों को दी जा रही हो, तो मैंने फ़िलहाल इसके बारे में कुछ नहीं सुना है |
सवाल: स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं द्वारा नोवेल कोरोनावायरस से संक्रमित रोगियों के साथ काम करने या इससे जुड़ी सबसे बुनियादी समस्याएँ क्या हैं?
डॉक्टर सागर: कई जगहों पर पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट्स (PPE) नहीं हैं, कई जगहों पर [डॉक्टर्स] एच.आई.वी प्रोटेक्शन किट इस्तेमाल कर रहे हैं... और कई जगहों पर तो सिर्फ़ सर्जिकल मास्क और ग्लव्स ही हैं डॉक्टर्स के पास इस्तेमाल करने के लिए |
दूसरी अहम् बात यह है की कई मरीज़ बहुत डरे हुए हैं और कई बार अगर वो नावेल कोरोना वायरस के लिए अलक्षणी (asymptomatic) हैं तो आसानी से टेस्ट नहीं करने देते हैं | अस्पताल के आइसोलेशन सेंटर में रहने का डर भी डॉक्टरों का काम मुश्किल बना रहा है|
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सवाल: मरीज़ों के बीच काम कर रहे डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य कर्मचारी इस बीमारी से लड़ने के लिए कितने तैयार हैं?
डॉक्टर सागर: स्वास्थय कर्मचारियों को यह मालुम है की वह एक ऐसी बीमारी का मुकाबला कर रहे हैं जिसकी अभी तक कोई वैक्सीन तैयार नहीं हुई है और जो काफ़ी संक्रामक है | वह अपनी पूरी ताक़त लगा रहे हैं ताकि मरीजों के इलाज में बुनियादी बातें ठीक हो और हाल की गाइडलाइन के तहत जितने लोगों का हो सकता है, इलाज़ कर रहे हैं | पर वह काम करते वक़्त ज़्यादा ज़ज़्बाती नहीं हो सकते |
खुद की देखभाल भी बहुत ज़रूरी है | वास्तविक तथ्यों पर आधारित इलाज़ करना ही सबसे सही तरीका है | घर से लम्बे समय तक दूर रहना मुश्किल तो है पर [डॉक्टर्स] मौके की नज़ाकत को देखते हुए वो ये कोशिश कर रहे हैं की ग्राफ़ का कर्व समतल किया जाए और फिर मरीज़ों की सबसे अच्छी देखभाल की जा सके | अगर एक्सपोनेंशियल तरीके से केसेस बढ़ते रहे तो ये मुमकिन नहीं होगा |
सवाल: एक आख़िरी प्रश्न - इन दिनों ऐसी काफ़ी घटनाएं सामने आईं हैं जिनमें उग्र भीड़ ने डॉक्टर्स या स्वास्थय कर्मचारियों पर हमला बोल दिया है | आपको क्या लगता है ऐसा क्यों हो रहा है?
सागर: ये कोई नई चीज़ नहीं है | पिछले कई सालों से डॉक्टरों पर हमलो की कई सारी घटनाएं सामने आई हैं | कोरोनावायरस ने सिर्फ़ इस समस्या को सुर्ख़ियों में ला दिया है | ये हमारे लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है | कई बार जब कोई मरीज़ मर जाता है तब उसके रिश्तेदारों की कुंठा और हताशा डॉक्टरों पर निकलती है | ऐसा (हमले) अक्सर इसलिए होता है क्यूंकि लोगों में हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स और पुलिस के लिए मूलभूत सहानुभूति की कमी है | कई बार हमले इस वजह से भी होते हैं की मरीज़ के रिश्तेदारों को रोग के बारे में ज़्यादा जानकारी नहीं होती है या फिर उन्हें किसी नीम-हाकिम द्वारा भड़काया गया होता है |
ऐसे हमलो के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है की लोगों ने ये धारणा बना रखी है की वह डॉक्टरों पर हमला कर के आराम से बच जाएंगे | अफ़सोस की पुलिस और प्रशासन - दोनों - ऐसे मामलो को ज़्यादा गंभीरता से नहीं ले रहे हैं |
डॉक्टरों पर बढ़ रहे हमलों और दुर्व्यवहार के चलते केंद्र सरकार ने एपिडेमिक डिसीज़ एक्ट में संशोधन करने का निर्णय लिया है। बूम ने इसपर लेख लिखा है जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।
डॉ सागर मुंदड़ा, एम.बी.बी.एस, एम.डी मनोचिकित्सा, पहले भारतीय स्वास्थ्य संगठन के युवा विंग के चेयरमैन रहे है, महाराष्ट्र एसोसिएशन ऑफ़ रेज़िडेंट डॉक्टर्स (मार्ड) के प्रेसिडेंट, और मुंबई के किंग एडवर्ड हॉस्पिटल में मनोचिकित्सक रह चुके हैं | अब वह हेल्थस्प्रिंग क्लीनिक में मनोचिकित्सक सलाहकार हैं | वह मुंबई में रहते हैं|