6 मार्च, 2020 को भारत में कई दक्षिणपंथी ट्विटर यूज़रों ने एक ट्वीट के स्क्रीनशॉट ट्वीट किए, जिसमें 'कसाई हिंदू' शब्द का उल्लेख किया गया था। ट्वीट करने वाले यूज़र के मुताबिक़ वह अल अल जज़ीरा के साथ संवाददाता के रुप में काम करता है और इससे पहले उसने द वायर संस्था के साथ भी काम किया है।
बूम ने दावे की जांच की और पाया कि अकाउंट फ़र्ज़ी है और दोनों ही संस्थाओं ने इस बात से इंकार किया है कि अकाउंट के पीछे व्यक्ति किसी भी तरह से उनसे जुड़ा था।
अकाउंट से खुद को दूर करते हुए, संगठन ने शुक्रवार देर रात एक बयान जारी किया।
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बयान में कहा गया है कि, "अल जज़ीरा मीडिया नेटवर्क, भारत विरोधी और हिंदू विरोधी भावनाओं के प्रचार के रूप में नेटवर्क को बदनाम करने के प्रयासों की कड़े शब्दों में निंदा करता है।"
बयान में आगे कहा गया है, "यह संदेश @dilawarshaikh_ नामक ट्वीटर हैंडल से फैलाया जा रहा है। यह एक फर्ज़ी अकाउंट है और इसका अल जज़ीरा से कोई संबंध नहीं है। दिलावर शेख के नाम से कोई पत्रकार संस्था से जुड़ा हुआ नहीं है।" (पूरा बयान देखने के लिए यहां क्लिक करें)
Al Jazeera condemns vicious attempts to defame the Network as propagating anti-Indian and anti-Hindu sentiments. https://t.co/UgUBuRtFEP
— Al Jazeera PR (@AlJazeera) March 6, 2020
द वायर के संस्थापक एवं संपादक सिद्धार्थ वर्धराजन ने भी ट्वीट का जवाब दिया और पुष्टि की कि दिलावर शेख नाम के किसी व्यक्ति ने कभी संगठन के लिए काम नहीं किया है।
No one of this name has ever worked at The Wire.
— Siddharth (@svaradarajan) March 6, 2020
बूम से बात करते हुए सिद्धार्थ वर्धराजन ने कहा, "दिलावर शेख नाम का कोई भी व्यक्ति या उसकी पोस्ट में दिखाई गई तस्वीर से मिलते-जुलते किसी भी शख़्स ने द वायर के लिए कभी काम नहीं किया है।"
मामले का विश्लेषण
उत्तेजक टिप्पणी करने वाला अकाउंट @Dilawarshaikh_ अब निष्क्रिय है। 25 फ़रवरी, 2020 को एक और थ्रेड के जवाब में, अकाउंट ने उत्तर दिया था। लेकिन 6 मार्च को जब @dilawarshaikh_ ने अपने ही जवाब को रीट्वीट किया तब ट्विटर पर भारतीय दक्षिणपंथियों का ध्यान गया।
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ट्वीट के स्क्रीनशॉट कई अकाउंट द्वारा शेयर किये गए और यह वायरल हो गया।
Hey @AlJazeera
— kudrati mojito (@desimojito) March 6, 2020
Well done, you hire right people. pic.twitter.com/xX8HVE45PA
बूम ने पहले भी कई बार ग़लत जानकारी फैलाने के लिए पाकिस्तानी-कनाडाई लेखक तारेक फतह के ट्वीट का फ़ैक्ट चेक किया है (यहाँ और यहां क्लिक करें )।
"Massacre those who insult #Islam"
— Tarek Fatah (@TarekFatah) March 6, 2020
Meet @DilawarShaikh_ "correspondent of @AlJazeera" in Cardiff, Wales and is "inspired by @RanaAyyub."
Shaikh wants to "start butchering #Hindus," bcoz "only then they [Hindus] will learn a lesson."
His account has been deactivated pic.twitter.com/eaz2S5A0h0
Correspondent at @AlJazeera_World @AlJazeera & inspired by Rana ... thinks hindu call girls are the best.... what else do you expect from a channel that is a veritable arm of ISIS & Al Qaeda? pic.twitter.com/H0d5w1vroK
— Abhijit Iyer-Mitra (@Iyervval) March 6, 2020
ट्विटर पर @dilawarshaikh_ की खोज करने पर कई नाराज यूज़रों के ट्वीट सामने आते हैं जिनमें इस अकाउंट के ख़िलाफ दंडात्मक कार्रवाई की मांग की गई है। ( यहां क्लिक करें )
फ़ैक्ट चेक
@dilawarshaikh_ नाम का अकाउंट अब मौजूद नहीं है, लेकिन बूम गूगल से अकाउंट का कैश (cache) पुनर्प्राप्त करने में सक्षम था। (अर्काइव देखने के लिए यहां क्लिक करें)
अकाउंट के कैश्ड वर्शन से पता चलता है कि इसे सितंबर 2013 में बनाया गया था, फिर भी इसके बायो में कहीं भी यह उल्लेख नहीं किया गया है कि इस यूज़र ने अल जज़ीरा या द वायर में काम किया है।
प्रोफ़ाइल की बारीकी से जांच करने से पता चलता है कि निष्क्रिय होन से पहले अकाउंट सक्रिय रूप से मुस्लिम-विरोधी, उदारवाद विरोधी और हिंदुत्ववादी ट्वीट्स को रीट्वीट कर रहा था।
@desimojito नामक हैंडल द्वारा अकाउंट के बारे में ट्वीट किए गए स्क्रीनशॉट में से एक के बायो में उल्लेख किया गया है कि यह 'राणा अय्यूब से प्रेरित' था फिर बूम को ऐसे ट्वीट मिले जहां अकाउंट, पत्रकार को दिए गए आपत्तिजनक जवाब रीट्वीट कर रहा था।
अकाउंट ने एक ट्वीट को भी रीट्वीट किया जिसमें ग़लत दावा किया गया था कि राणा अय्यूब ने बिहार के एक पुराने वीडियो को दिल्ली में हाल ही में हुए दंगों का वीडियो बता कर शेयर करने की कोशिश की थी। वीडियो में एक मस्जिद को तोड़ते हुए दिखाया गया था। बूम ने पहले ही दिल्ली में साइट पर जाकर उस दावे की जांच की और पाया कि अय्यूब ने जो वीडियो ट्वीट किया था वह वास्तव में हाल ही का है। (दिल्ली के अशोक नगर में मस्जिद का वीडियो फ़र्ज़ी नहीं है)
फ़र्ज़ी अकाउंट ने फ़ैक्टचेक करने वाली वेबसाइट ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापकों में से एक मोहम्मद ज़ुबैर को भी रीट्वीट किया था लेकिन ट्वीट एक ऐसी कहानी के बारे में था जिसमें वामपंथी और नागरिकता संशोधन अधिनियम समर्थक की जांच की गई थी।
जबकि हम रिवर्स इमेज सर्च के माध्यम से अकाउंट की प्रोफ़ाइल इमेज का पता लगाने में सक्षम नहीं थे लेकिन हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि अकाउंट ने अल जज़ीरा और द वायर के कर्मचारी होने के झूठे दावे किए। ट्वीट्स और रीट्वीट के पैटर्न से पता चलता है कि अकाउंट के पीछे व्यक्ति दक्षिणपंथी विचारधारा की ओर झुकाव रखता है और मुस्लिम नहीं लगता है।