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फैक्ट चेक

क्या 'मास्क' वायरस को मार सकता है? फ़ैक्टचेक

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि COVID-19 के हालिया प्रकोप के ख़िलाफ मुकाबला करने के लिए मास्क पूरी तरह से प्रभावी नहीं हैं।

By - Shachi Sutaria | 17 March 2020 7:13 PM IST

हाल ही में महिंद्रा एंड महिंद्रा ग्रुप के संस्थापक आनंद महिंद्रा ने एक ट्वीट करते हुए दावा किया है कि उन्हें एक मास्क उपहार में मिला है जो "वायरस नष्ट कर देता है।" यह दावा ग़लत है। उनके ट्वीट की कुछ मेडिकल पेशेवरों ने आलोचना की है क्योंकि ऐसा कोई सबूत नहीं मिला है, जिससे पता चले कि मास्क पहनने से वायरस नष्ट हो जाते हैं।

अपने ट्वीट में महिंद्रा ने मास्क की एक तस्वीर ( एन 95 ) शामिल की और एक दोस्त को उसे उपहार में देने के लिए धन्यवाद दिया।

कोरोनावायरस या कोविड-19 का आतंक चारो ओर फैला हुआ है। अब तक दुनिया के 158 देश इससे प्रभावित हो चुके हैं। ऐसे में लोग खुद को बचाने के लिए मास्क का इस्तेमाल कर रहे हैं और जिनके पास मास्क नहीं हैं उनमें एक डर की भावना जाग रही है। मांग बढ़ने के कारण मास्क की कीमतें भी आसमान छू रही है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह भी कहा है कि मास्क किसी भी वायरस को नहीं मारते हैं और इसे केवल उन लोगों द्वारा पहना जाना चाहिए जो जिनमें या तो वायरस के लक्षण दिखाई दे रहे हैं या बीमार हैं।

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महिंद्रा ने आलोचकों का ध्यान आकर्षित किया क्योंकि उनके ट्वीट में कहा गया था कि इसे बार-बार इस्तेमाल कर सकते हैं और धोने योग्य मास्क में "वायरस को कम करने" की क्षमता थी। ये मास्क लिविंगगार्ड नामक कंपनी द्वारा बनाए जा रहे हैं जिसके बोर्ड के सदस्य अशोक कुरियन ने महिंद्रा को यह "प्रदूषण-रोधी" N95 मास्क भेंट किया है।

इस ट्वीट के बाद महिंद्रा निशाने पर आ गए और ट्वीटर यूज़रों ने उनसे अनुरोध किया कि वे ऐसी खबरों को बढ़ावा न दें जो वैज्ञानिक रूप से समर्थित नहीं हैं।

फ़ैक्टचेक

महिंद्रा का दावा है कि मास्क से वायरल मरते हैं लेकिन इसका कोई वैज्ञानिक समर्थन नहीं है। अमेरिका के सेंटर ऑफ डिजिज कंट्रोल एंड प्रेवेंशन के मुताबिक मास्क की प्राथमिक भूमिका मास्क में फ़िल्टर डिज़ाइन के माध्यम से माइक्रोबियल कणों को पारित करने की अनुमति नहीं देना है।

बूम ने भी महिंद्रा को उपहार में मिला मास्क देखा और पाया कि यह N95 मास्क है जिसे लिविंगयार्ड ने बनाया है। कंपनी वायु प्रदूषण से सुरक्षा के लिए मास्क बनाती है और प्रदूषण फैलाने वाले एजेंटों से बचाने के लिए उपयोगी है क्योंकि ये हवा में कणों के आकार के अनुसार बनाए जाते हैं।

वेबसाइट में स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि वे बैक्टीरिया और कवक के फिल्टर पर काम करते हैं लेकिन वायरस का उल्लेख नहीं किया गया है।

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उनके मेडिकल टेक्सटाइल में, कंपनी स्क्रब और कपड़े बनाती है लेकिन विशेष रूप से मास्क का उल्लेख नहीं करती है।

डब्ल्यूएचओ क्या कहता है?

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि स्वस्थ व्यक्तियों को मास्क केवल तभी पहनना जरूरी है जब वे संदिग्ध नोवेल कोरोनावायरस संक्रमण वाले व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं। खांसने या छींकने वाले लोगों को मास्क पहनना चाहिए। इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि मास्क वायरस को मारते हैं।

डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा कि मास्क पहनना तभी प्रभावी होगा जब अकोहल युक्त सैनिटाइज़र या साबुन से समय-समय पर हाथ धोया जाए। डब्ल्यूएचओ ने इस बात पर भी जोर दिया कि मास्क पहनने वाले लोगों को यह भी पता होना चाहिए कि इसे कैसे पहनना है और इसका निपटान कैसे करना है।


वायरस खांसी के माध्यम से उत्पन्न श्वसन बूंदों के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में फैल सकता है। यदि एक संक्रमित व्यक्ति बिना मास्क पहने दूसरे के सामने छींकता या खांसता है तो मुंह से निकलने वाली बूंदे उन व्यक्तियों के मास्क पर भी जा सकती हैं, जिन्होंने उसे पहना हुआ है। और अगर वह व्यक्ति मास्क को छूता है और बाद में अपने चेहरे को छूता है, तो व्यक्ति को वायरस फैलने की संभावना है।

कई मीडिया संगठनों ने बताया है कि मास्क की मांग बढ़ने के कारण, इसकी कीमत आसमान छूने लगी है। इकोनोमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, सर्जिकल मास्क जो 10 रुपये में बेचा जा रहा था, जिसकी कीमत 40 रुपये हो गई है और एन 95 मास्क जो लगभग 150 रुपये में बिकते हैं, उन्हें 500 रुपये तक में बेचा जा रहा है।

भारत सरकार ने अपनी बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक वस्तुओं की सूची में फेस मास्क और सैनिटाइज़र को भी शामिल किया, जैसा कि पीटीआई की रिपोर्ट में बताया गया है।

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