उत्तर प्रदेश के एक सरकारी स्कूल की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर भ्रामक दावे के साथ वायरल है. इन तस्वीरों को संभल ज़िले के असमोली के प्राइमरी स्कूल इटायला माफी का बताया जा रहा है. दावा किया जा रहा है कि स्कूल की ये तस्वीरें हालिया हैं और सीएम योगी आदित्यनाथ द्वारा प्रदेश को आगे बढ़ाने की दिशा में किये जा रहे काम को दिखाती है.
बूम को स्कूल प्रिंसिपल कपिल मलिक ने बताया कि वायरल तस्वीरें साल 2015 से 2016 के बीच की हैं, और स्कूल के मेन्टेनेन्स का काफ़ी ख़र्च वो ख़ुद उठाते हैं.
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गौरतलब है कि अगस्त में प्रतिष्ठित अमेरिकी अख़बार न्यू यॉर्क टाइम्स ने दिल्ली के स्कूलों और शिक्षा मॉडल पर एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी. इस रिपोर्ट को दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार ने अपने द्वारा उपलब्ध करायी जा रही बढ़िया शिक्षा व्यवस्था के लिए प्रचार का माध्यम बनाया था. जबकि विपक्ष ने आरोप लगाया था कि न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट पेड न्यूज़ का हिस्सा है.
इसी पृष्ठभूमि में पिछले हफ़्ते उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल में मिलने वाले मिड डे मील के दावे से एक तस्वीर शेयर की गई थी और दिल्ली के सरकारी स्कूलों पर कटाक्ष किया गया था. हालांकि, बूम ने अपनी जांच में पाया था कि वायरल तस्वीर 'तिथि भोजन' और 'ऐड ऑन मिड डे मील' के तहत दूसरों की मदद से बच्चों को महीने में 2-4 बार उपलब्ध कराये जाने वाला भोजन की तस्वीर थी. उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूल बताकर वायरल यह तस्वीर भी इसी पृष्ठभूमि में शेयर की जा रही है.
उद्यमी तन्मय शंकर ने तस्वीरों के चार सेट को ट्विटर पर शेयर करते हुए लिखा, "प्राईमरी स्कूल, असमोली, जिला संभल उत्तर प्रदेश का ये कुछ फ़ोटो हैं. योगी सरकार में काम दिखावे के लिए नहीं बल्कि प्रदेश को आगे बढ़ाने के लिए होता है. वो तो ग़नीमत है दिल्ली में ऐसा शायद ही कोई सरकारी स्कूल हो वरना दिल्ली के मालिक NYT में खबर छपवा देते."
ट्वीट का आर्काइव वर्ज़न यहां देखें.
हरियाणा बीजेपी आईटी सेल के पूर्व इंचार्ज अरुण यादव ने इस तस्वीर को ट्वीट किया और कैप्शन दिया, "ये प्राईमरी स्कूल उत्तर प्रदेश के जिला संभल में है. अगर ये दिल्ली की तस्वीर होती तो अंतराष्ट्रीय अखबारों में सुर्खियां बनाई जाती."
ट्वीट का आर्काइव वर्ज़न यहां देखें.
फ़ेसबुक पर वायरल
भगवा क्रांति सेना की राष्ट्रीय अध्यक्षा और विश्व हिन्दू परिषद् नेता साध्वी प्राची ने अपने वेरिफ़ाईड फ़ेसबुक पेज से तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, "चौकिए बिल्कुल नही..ये प्राईमरी स्कूल उत्तर प्रदेश के जिला संभल में है-अगर ये दिल्ली की तस्वीर होती तो सड़ जी विदेशी अखबार में छपवा देते.."
इसी दावे के साथ वायरल अन्य पोस्ट यहां, यहां और यहां देखें.
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फ़ैक्ट चेक
बूम ने वायरल तस्वीरों के सेट को रिवर्स इमेज सर्च पर खोजा तो हमें यह तस्वीरें न्यूज़ वेबसाइट वन इंडिया की अक्टूबर 2016 और अमर उजाला की जनवरी 2017 की रिपोर्ट में मिलीं. जबकि स्कूल के साफ़-सुथरे बरामदे को दिखाती तस्वीर बरेली के स्कूल की है.
मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया है कि यह प्राइमरी स्कूल यूपी में संभल ज़िले के इतायला माफी गांव में है. स्कूल हरियाली, रंग-बिरंगी दीवारें, साफ़-सुथरे कमरे, रसोई और सोलर लाइट्स से सजा हुआ. इस स्कूल को असमोली ब्लॉक का सर्वेश्रेष्ठ स्कूल भी चुना गया है.
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि दोनों मीडिया रिपोर्ट्स अक्टूबर 2016 और जनवरी 2017 की हैं, तब प्रदेश में अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी की सरकार थी.
योगी आदित्यनाथ ने मार्च 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. यानी कि वायरल तस्वीरें उनके शासनकाल के पहले की हैं.
जांच के दौरान हमें लल्लनटॉप के यूट्यूब चैनल पर फ़रवरी 2017 का एक वीडियो मिला जिसमें लल्लनटॉप रिपोर्टर स्कूल प्रिंसिपल कपिल मलिक के साथ पूरे स्कूल का जायज़ा लेते हैं. स्कूल में वो तमाम सहूलियतें मौजूद मिलती हैं जो किसी कान्वेंट स्कूल में मुहैया करायी जाती हैं.
इसके बाद हमने इटायला माफी के ग्राम प्रधान से संपर्क किया जिसमें उन्होंने बताया कि स्कूल का नवीनीकरण और साज-सज्जा 2015-16 के क़रीब हुआ था. उस समय वो गाँव के प्रधान थे. उन्होंने कुछ काम प्रधान निधि से कराया था.
बूम ने प्राइमरी स्कूल के प्रिंसिपल कपिल मलिक से संपर्क किया. हमने उन्हें वायरल तस्वीरें भेजीं स्कूल का नाम दिखाती बिल्डिंग की तस्वीर तस्वीर नवंबर 2015 की हैं. क्लास रूम और गार्डन के साथ गली दिखाती तस्वीर साल 2015 से 16 के बीच की हैं. उन्होंने बताया कि स्कूल क्लास रूम का गलियारा दिखाती उनके स्कूल की नहीं है. स्कूल में नवीनीकरण और मेन्टेनेन्स का काम चलता ही रहता है. जो काम तस्वीर में दिख रहा है वो 2013-15 के बीच हुआ था.
प्रिंसिपल कपिल मलिक ने बताया, "स्कूल के नवीनीकरण, मेन्टेनेन्स, टाइल्स, हरियाली, शौचालय, सीसीटीवी कैमरा तथा बच्चों के लिए नवीन उपकरणों आदि में अब तक क़रीब 20 से 25 लाख रुपये ख़र्च कर चुके हैं. लाख-दो लाख रुपये का काम प्रतिवर्ष करवाते रहते हैं. मेन्टेनेन्स के लिए जो सरकार की ओर से जो फंड मिलता है वह नाकाफ़ी होता है."
उन्होंने आगे बताया कि "मैं स्कूल में साल 2010 में आया था. तब स्कूल की स्थिति बेहद ख़राब थी. क़रीब 46 बच्चों का नामांकन था, जिसमें से 10-15 स्कूल आते. उनमें से भी खाना खाकर चले जाते थे. स्कूल में चहारदीवारी नहीं थी. मैंने उसे ठीक कराया. इसके लिए मुझे कई एफ़आईआर करवानी पड़ी थी. और तमाम काम अपने खर्च से कराये. आज 500 से ज़्यादा बच्चे यहां पढ़ने आते हैं."
प्रिंसिपल कपिल मलिक ने बूम को प्राइमरी स्कूल की साल 2010 की तस्वीर भी भेजी.
स्कूल प्रिंसिपल कपिल मलिक को साल 2019 में राज्य अध्यापक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. जबकि उनके स्कूल को साल 2017 में स्वच्छ विद्यालय पुरस्कार और साल 2016 में उत्कृष्ट विद्यालय पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है.
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