सोशल मीडिया पर एक दिल दहला देने वाली तस्वीर वायरल हो रही है. तस्वीर में नदी के किनारे अधनंगे व्यक्ति की लाश (Dead body) है, जिसके पैर को एक कुत्ता नोचते हुए दिख रहा है. तस्वीर को शेयर करते हुए हाल फ़िलहाल का बताया जा रहा है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) की आलोचना की जा रही है.
बूम ने पाया कि इस वायरल तस्वीर का बीते दिनों में कोरोना (Coronavirus) और ऑक्सीजन (Oxygen) की किल्लत से होने वाली मौतों से कोई संबंध नहीं है. तस्वीर क़रीब 9 साल पुरानी है.
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गौरतलब है कि बीते दिनों में उत्तर प्रदेश और बिहार के कई ज़िलों में गंगा किनारे बड़ी तादाद में लावारिश लाशें पायीं गयीं हैं. इस दौरान मन विचलित करने वाली कई तस्वीरें सामने आईं, जिनमें लावारिश को कुत्ते नोचते हुए नज़र आये. वायरल तस्वीर उसी पृष्ठभूमि में शेयर की जा रही है.
कांग्रेस पार्टी की छात्र इकाई एनएसयूआई के राष्ट्रीय सोशल मीडिया इंचार्ज आज़ाद ने ट्विटर पर तस्वीर शेयर करते हुए लिखा, "विश्वगुरु बनाने की चक्कर में बेहरूपिया 'सिस्टम' ने देश को कहां से कहां तक पहुंचा दिया।"
तस्वीर मन विचलित कर सकती है. अतः हमने तस्वीर को धुंधला कर दिया है. वायरल पोस्ट यहां देखें.
पोस्ट का आर्काइव वर्ज़न यहां देखें
एक अन्य यूज़र ने पीएम मोदी की समुंदर किनारे कूड़ा बीनते तस्वीर के साथ इस तस्वीर को पोस्ट करते हुए कैप्शन में लिखा, "समुंदर किनारे का कचरा दिख गया था, गंगा किनारे पड़ी लाशें नहीं दिखतीं?"
पोस्ट यहां और आर्काइव वर्ज़न यहां देखें
यह तस्वीर फ़ेसबुक पर भी इसी दावे के साथ वायरल है.
जानिए अल-अक्सा मस्जिद से जोड़कर वायरल दावे का सच
फ़ैक्ट चेक
बूम ने वायरल तस्वीर के साथ किये जा रहे दावे की वास्तविकता जानने के लिए तस्वीर को रिवर्स इमेज पर सर्च किया. इस दौरान हमें यह तस्वीर फ़ोटो एजेंसी गेट्टी इमेजेज़ पर मिली.
तस्वीर के डिस्क्रिप्शन में बताया गया है कि उत्तर प्रदेश के वाराणसी में 19 अप्रैल, 2012 को एक अज्ञात शव मिला. हिंदुओं का मत है कि वाराणसी में गंगा नदी के तट पर अंतिम संस्कार करने पर मृत व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस तस्वीर का क्रेडिट फ़ोटोग्राफर देबाज्योति दास को दिया गया है.
बूम ने अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए फ़ोटोग्राफर देबाज्योति दास से संपर्क किया जिन्होंने यह तस्वीर क्लिक की थी.
दास ने बूम को बताया कि तस्वीर साल 2011-12 के दौरान क्लिक की गई थी. दास ने बूम को बताया, "तस्वीर किसी भी तरह से कोविड-19 से संबंधित नहीं है. यह वाराणसी में महामारी से सालों पहले क्लिक की गई थी. मैं एक स्वतंत्र फ़ोटोग्राफर हूं और नमामि गंगे परियोजना के लिए अपने शोध के हिस्से के रूप में यह शॉट लिया था."