सोशल मीडिया पर वायरल मेसेज में फ़र्ज़ी दावा किया जा रहा है कि लोग कोविड-19 (COVID-19) की वजह से नहीं मर रहे हैं बल्क़ि '5जी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन' (5G radiation) से मर रहे हैं. वायरल हो रहा यही मैसेज आगे कहता है कि कोविड-19 वायरस नहीं बल्कि एक बैक्टीरिया है.
आपको बता दें कि यह वायरल मैसेज कई गलत दावे करता है.
बूम ने पड़ताल में पाया कि 5G टेक्नोलॉजी रेडियो वेव्स (Radio Waves) पर विकसित एक प्रणाली है और कोरोनावायरस एक वायरस यानी विषाणु है. हमारी पड़ताल में कहीं भी कोई साक्ष्य नहीं मिला जिससे यह साबित होता है कि यह बिमारी 5G टेक्नोलॉजी से फैलती है.
क्या इन पक्षियों की मौत का कारण 5G टेस्टिंग है? फ़ैक्ट चेक
हमनें सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ पंजाब (Central University of Punjab, Bathinda) के एसोसिएट प्रोफ़ेसर और मैथमैटिकल बायोलॉजी (Mathematical Biology) के क्षेत्र में रिसर्च कर रहे डॉ फ़ेलिक्स बास्त से संपर्क किया जिन्होंने इन दावों को एक एक कर ख़ारिज किया है.
वायरल मैसेज कुछ यूँ है: "BREAKING NEWS दुनिया की बड़ी खबर, इटली ने किया मृत कोरोना मरीज का पोस्टमार्टम, हुआ बड़ा खुलासा इटली विश्व का पहला देश बन गया है जिसनें एक कोविड-19 से मृत शरीर पर अटोप्सी (पोस्टमार्टम) किया और एक व्यापक जाँच करने के बाद पता लगाया है कि वायरस के रूप में कोविड-19 मौजूद नहीं है, बल्कि यह सब एक बहुत बड़ा ग्लोबल घोटाला है। लोग असल में "ऐमप्लीफाईड ग्लोबल 5G इलैक्ट्रोमैगनेटिक रेडिएशन (ज़हर)" के कारण मर रहे हैं। इटली के डॉक्टरों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के कानून का उल्लंघन किया है, जो कि करोना वायरस से मरने वाले लोगों के मृत शरीर पर आटोप्सी (पोस्टमार्टम) करने की आज्ञा नहीं देता ताकि किसी तरह की वैज्ञानिक खोज व पड़ताल के बाद ये पता ना लगाया जा सके कि यह एक वायरस नहीं है, बल्कि एक बैक्टीरिया है जो मौत का कारण बनता है, जिस की वजह से नसों में ख़ून की गाँठें बन जाती हैं यानि इस बैक्टीरिया के कारण ख़ून नसों व नाड़ियों में जम जाता है और यही मरीज़ की मौत का कारण बन जाता है। कृप्या ये जांच करें सोशल मीडिया पोस्ट"
नीचे व्हाट्सएप्प पर वायरल मैसेज का स्क्रीनशॉट है.
ऑक्सीजन टैंकर पर लगे रिलायंस स्टीकर का वीडियो फ़र्ज़ी दावे के साथ वायरल
फ़ैक्ट चेक
दावा: लोग कोविड-19 नहीं 5G के कारण मर रहे हैं
विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) और भारतीय संचार मंत्रालय (Communication Ministry) ने इस बात की पुष्टि की है कि यह बिमारी एक वायरस से हो रही है. संक्रमण किसी मोबाइल तरंग से नहीं बल्क़ि इन्फेक्टेड व्यक्ति के छींकने, खांसने और बात करने से फैलता है. यहां पढ़ें.
बूम से बात करते हुए सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ़ पंजाब के एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ फ़ेलिक्स बास्त ने कहा, "यह बिलकुल फ़र्ज़ी है कि लोग 5G से मर रहे हैं. यह टेक्नोलॉजी रेडियो वेव्स [Radio Waves] पर आधारित है. रेडियो वेव्स एलेक्ट्रोमग्नेटिक स्पेक्ट्रम [Electromagnetic Spectrum] में सबसे कमज़ोर वेव्स होती हैं. इससे ताक़तवर तो सूरज की किरण [Visible Spectrum] होती है."
इस मामले में एक और तर्क दिया जाता है की यह तरंगे हमारी प्रतिरोधक क्षमता (immune system) को कमज़ोर कर देती हैं जिससे हमें कोविड-19 का खतरा बढ़ जाता है, फ़ेलिक्स बास्त कहते हैं, की इस दावे का कोई आधार नहीं है क्योंकि 5G हानिरहित वेव्स हैं. उससे तीव्र तो आप घर से बाहर निकलते हैं तो सूरज की किरणे जो हैं वो होती हैं.
"कई देश ऐसे हैं जहां अब तक 5G टेक्नोलॉजी मौजूद नहीं है पर कोविड-19 ने वहां कहर बरसाया है," उन्होंने आगे कहा.
कोरोनावायरस 5G टेक्नोलॉजी से नहीं फ़ैल रहा है. इस दावे को ख़ारिज करते हुए विश्व स्वास्थ संगठन ने एक वीडियो भी रिलीज़ किया था. नीचे देखें.
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दावा: कोविड-19 एक बैक्टीरिया है
विश्व स्वास्थ संगठन ने पुष्टि की है कि यह एक विषाणु है. विश्व स्वास्थ संगठन ने भी इस दावे को ख़ारिज किया है कि यह बिमारी एक बैक्टीरिया से होती है. WHO के अनुसार, इस बिमारी के इलाज़ के रूप में एंटी-बायोटिक्स (anti-biotics) कारगर नहीं हैं. यह एक वायरस से होने वाला संक्रमण है और एंटी-बायोटिक्स बैक्टीरिया के ख़िलाफ काम करते हैं.
हालांकि WHO ने यह पुष्टि की है कि इस संक्रमण [COVID-19] के प्रभाव में यदि कोई अन्य बैक्टीरियल इन्फेक्शन होता है तो स्वास्थकर्मियों द्वारा एंटी-बायोटिक्स का इस्तेमाल किया जा सकता है. अब तक कोविड-19 का कोई पुख़्ता इलाज़ मौजूद नहीं है.
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दावा: WHO ने पोस्ट मोर्टेम पर लगाईं है रोक
विश्व स्वास्थ संगठन यानी WHO कोविड-19 संक्रमण से मर रहे लोगों के पोस्ट मोर्टेम को नहीं रोकता है. सितम्बर 2020 में संगठन ने कोविड-19 मृतकों के पोस्ट मोर्टेम को लेकर सेफ़्टी प्रोसीज़र्स और गाइडलाइन्स जारी की थीं.
भारत में कई मामलों में कोविड-19 मरीज़ों के पोस्ट मोर्टेम किये गए हैं. यहां और यहां पढ़ें.