मंगलवार रात 12.05 बजे, लोकसभा ने राज्यसभा में विधान-सम्बन्धी अगले चरण के लिए भूमिका बनाते हुए विवादास्पद नागरिकता (संशोधन) बिल, 2019 (सी.ए.बी) के पक्ष में 311 मतों और इसके ख़िलाफ़ 80 मतों के साथ पारित किया।
बिल को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने सोमवार को पेश किया। क्योंकि यह बिल 1955 से प्रस्तावित नागरिकता क़ानूनों में बदलाव लाता है और धार्मिक आधार पर भारतीय नागरिकता प्रदान करने के लिए प्रस्तावित हुआ है, विपक्ष और नागरिक समाज की ओर से कड़े विरोध का सामना कर रहा है। बिल के अनुसार, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफग़ानिस्तान से छह धार्मिक अल्पसंख्यक, धार्मिक उत्पीड़न का सामना करने वाले शरणार्थियों को अवैध आप्रवासियों के रूप में नहीं माना जाएगा एवं उन्हें भारतीय नागरिकता प्राप्त करने में भी तेजी आएगी।
It is well known that those minorities who chose to make Pakistan, Bangladesh and Afghanistan their home had to constantly live in the fear of extinction.
— Amit Shah (@AmitShah) December 9, 2019
This amended legislation by Modi govt will allow India to extend them dignity and an opportunity to rebuild their lives.
"यह बिल इस देश के अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ .001% भी नहीं है", शाह ने कहकर उन्होंने इस बिल को सदन में पेश किया। बिल पर सात-घंटे की बहस के दौरान थोड़ी अव्यवस्था देखी गयी | स्वतंत्रता-युग से विभिन्न शख़्सियत - सावरकर, अंबेडकर, गांधी और जिन्ना की विचारधारा पर चर्चा की गई और फासीवाद के साथ तुलना की गयी | हैदराबाद से एआईएमआईएम के सांसद असददुद्दीन ओवैसी ने सदन में सीएबी की एक प्रति भी फाड़ दी |
प्रधानमंत्री और सरकार के अन्य सदस्यों द्वारा बिल पारित होने को सराहा गया।
Delighted that the Lok Sabha has passed the Citizenship (Amendment) Bill, 2019 after a rich and extensive debate. I thank the various MPs and parties that supported the Bill. This Bill is in line with India's centuries old ethos of assimilation and belief in humanitarian values.
— Narendra Modi (@narendramodi) December 9, 2019
Congratulations to the entire nation on the passage of Citizenship (Amendment) Bill 2019 in Lok Sabha. Under the stewardship of PM @narendramodi and HM @amitshah the nation is fulfilling our ancient traditions of supporting the oppressed.
— Piyush Goyal (@PiyushGoyal) December 9, 2019
कांग्रेस के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तेलंगाना राष्ट्रीय समिति और वामपंथी मोर्चे के सदस्यों ने बिल के पारित होने का विरोध किया, और राज्यसभा में भी ऐसा करेंगे, ऐसी उम्मीद है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन और आंध्र प्रदेश के वाईएसआर कांग्रेस, ओडिशा के बीजू जनता दल और तमिलनाडु के AIADMK जैसे कुछ असंबंधित क्षेत्रीय दलों ने इस बिल का समर्थन किया। दिलचस्पी की बात है, अब कांग्रेस-सहयोगी और भाजपा की पूर्व सहयोगी, शिवसेना ने बिल पारित करने के पक्ष में मतदान किया। सरकार को राज्यसभा में पास करने के लिए इन दलों के समर्थन पर भरोसा करने की उम्मीद है, जहाँ भाजपा के पास सदन में 250 में से केवल 83 सीटें हैं।
सदन द्वारा तय समयावली के अनुसार, बिल को सोमवार को ही लोकसभा में पेश करने, बहस करने और पारित करने के लिए निर्धारित किया गया था। हालाँकि इस विधेयक को फरवरी 2016 में संसद में पेश किया गया था जो इस वर्ष मई में 16 वीं लोकसभा की समाप्ति पर समाप्त हो गया। केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पिछले सप्ताह बिल को मंजूरी दी गई थी।
बूम ने लिखा जो आपको जानने की जरूरत है |
यह बिल किस बारे में है?
इस विधेयक का उद्देश्य पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफग़ानिस्तान से आने वाले छह धार्मिक समूहों को शरण देना, प्राकृतिक तरीके से भारतीय नागरिकता प्राप्त करवाना है:
- हिन्दू
- जैन
- सिख
- बौद्ध
- ईसाई
- पारसी
इन समूहों को ये प्रावधान विस्तारित किए जाएंगे जो भारत में धार्मिक उत्पीड़न का सामना करके आये है और यदि वे 31 दिसंबर 2014 को या उससे पहले भारत में प्रवेश करते हैं तो उन्हें अवैध अप्रवासी नहीं माना जाएगा। अगर विधेयक एक अधिनियम बनता हैं, इन समूहों को विदेशी होने पर भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के लिए बारह वर्षों के बजाय छह वर्ष का ही वक़्त लगेगा ।
बिल के विवरण और कारण का उद्देश्य:
"पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश के संविधान प्रदान करते हैं एक विशिष्ट राज्य धर्म। नतीजतन, हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों से संबंधित कई व्यक्तियों को उन देशों में धर्म के आधार पर उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। उनमें से कुछ को अपने दिन-प्रतिदिन के जीवन में ऐसे उत्पीड़न के बारे में भी आशंका है, जहां उनके धर्म का अभ्यास करने, प्रचार करने का अधिकार बाधित और प्रतिबंधित है। ऐसे कई व्यक्ति भारत में शरण लेने के लिए भाग आये हैं और भारत में रहना जारी रखा है, भले ही उनके यात्रा दस्तावेज समाप्त हो गए हों या उनके पास अधूरे या कोई दस्तावेज न हों।"
बिल के विरोधी कह रहे हैं कि संवैधानिक रूप से, किसी को धर्म के आधार पर और विशेष रूप से प्रमुख गैर-मुस्लिम धर्मों के चयनात्मक उल्लेख के कारण संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 के तहत कानून भेदभाव नहीं किया जा सकता है। नाम लेकर इस्लामी-बहुसंख्यक पड़ोसियों का उल्लेख करने के लिए भी आलोचनाएं आ रही हैं, औरयह भी कहा जा रहा हैं की प्रताड़ना के शिकार लोगों के कल्याण के लिए एक सच्चा बिल ऐसे शरणार्थियों के उद्गम या धर्म को नहीं देखेगा, जैसा कि संसद में उल्लेख किया गया है और बिल में विभिन्न संशोधनों के माध्यम से उठाया गया है; जिसका अंत में मतदान होना है।
संविधान के छठी अनुसूची के तहत असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों को छोड़कर, जहाँ आदिवासी आबादी की चिंताओं को ध्यान में रखते हुए इनर लाइन परमिट की आवश्यकता होती हैं, भारत के सभी हिस्सों में यह बिल लागू किया जाएगा। शाह ने लोकसभा को यह भी बताया कि मणिपुर को कैब के प्रावधानों से बाहर रखा जाएगा। इसके तहत, असम और त्रिपुरा में कुछ क्षेत्रों को छोड़कर, लगभग सभी पूर्वोत्तर कैब से बाहर रखा जाएगा।
इस बिल का उद्देश्य विदेशी नागरिकता अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करने वाले विदेशियों के ओसीआई कार्डों को रद्द करने के प्रावधान के साथ ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्यक्रम पर सरकारी नियंत्रण को कड़ा करना है। हालांकि, बिल ऐसे विदेशियों के लिए ऐसी स्थिति में खुद का प्रतिनिधित्व करने का मौका देने का प्रावधान करता है।
कैब और एन.आर.सी का संयोजन
सी.ए.बी में गृह मंत्रालय द्वारा असम में लागू एन.आर.सी को अपडेट करने वाले कदम के बारे में लिखा हैं | एन.आर.सी का समापन असम में 31 अगस्त को हुआ था | एनआरसी ने उन भारतीय नागरिकों की एक सूची तैयार की जो दिखा सकते थे कि उनके पास कानूनी अधिकार थे। 24 मार्च, 1971 से पहले उनके भारतीय नागरिकता के आधिकारिक मान्यता प्राप्त दस्तावेज। इस दौरान देखा गया की 19 लाख लोग जो एनआरसी से बहार थे उनमे कई हिंदु थे, और इस प्रकार उन्हें विदेशी घोषित किया गया। भारतीय नागरिकों के रहने के लिए सी.ए.बी का अनुमान लगाया जा रहा है। असम से एन.आर.सी से बाहर रखे गए बंगाली हिंदुओं की संख्या जारी करने की उम्मीद है।
सीएबी भविष्य में एनआरसी के साथ काम कर सकता है, क्योंकि शाह ने कहा कि अवैध प्रवासियों को निष्कासित करने के लिए 2024 तक पूरे भारत में एक एनआरसी लागू किया जाएगा, और इस तरह के फैसलों को प्रभावित करने में सीएबी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। लेकिन इस तरह के अभ्यास समय में कितने पीछे जाएंगे? या नागरिकों को अपनी कटऑफ तारीखों के लिए अपनी नागरिकता का पता लगाने के लिए किन दस्तावेजों को दिखाने की आवश्यकता होगी? जब देश की एनआरसी प्रक्रिया प्रभावी हो जाती है तो इन सवालों का अधिक विवरण के साथ उत्तर दिया जाएगा।
भारत में अभी कितने शरणार्थी हैं?
केंद्र सरकार ने समय और फ़िर से यह सुनिश्चित किया है कि इस तरह की गिनती को बनाए रखने में कठिनाई का हवाला देते हुए, भारत में शरणार्थियों की उपस्थिति का कोई आधिकारिक डेटा नहीं है।
13 फरवरी, 2019 को राज्यसभा में, तत्कालीन राज्य गृह मंत्री किरेन रिजिजू ने सदन को निम्नलिखित लिखित जवाब दिया:
किसी भी विश्वसनीय सर्वेक्षण के अभाव के कारण, पिछले तीन वर्षों के दौरान अफग़ानिस्तान और पाकिस्तान से आए सिख और हिंदू शरणार्थियों के सटीक आंकड़े उपलब्ध नहीं है।
इसी तरह की प्रतिक्रिया मंत्री द्वारा 12 दिसंबर, 2018 को राज्यसभा में दी गई थी, जिसमें कहा गया था कि भारत में अवैध आप्रवासियों और शरणार्थियों की संख्या पर नज़र रखना संभव नहीं है, क्योंकि वे "गुप्त और अशिष्ट तरीके से" देश में प्रवेश करते हैं। इस प्रतिक्रिया को यहां पढ़ा जा सकता है।
हालांकि संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग 2018 में भारत में 'पीपल ऑफ़ कंसर्न' (लोग जिनपर ध्यान देने की आवश्यकता हैं) की संख्या 2,07,848 बताता है:
11,957 शरण चाहने वाले
195,891 शरणार्थी
सरकार ने 10 जुलाई, 2019 को राज्यसभा को यह भी बताया कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफग़ानिस्तान के उपरोक्त छह समुदायों के कुल 2,447 कानूनी आप्रवासियों को नागरिकता प्रदान की गई है। इसे यहाँ पढ़ा जा सकता है।
बिल यहां पाया जा सकता है।