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फ़ैक्ट चेक

कोरोनावायरस से बचाव संबंधित बाबा रामदेव के दावों का कोई वैज्ञानिक अध्ययन समर्थन नहीं करता

दावें हैं की अपनी सांस को रोक कर रखना कोविड-19 के लिए एक टेस्ट है और सरसों के तेल को नाक पर लगाने से वह वायरस को पेट में ख़त्म कर देता है - इन दावों का अनुसंधानिक कोई समर्थन नहीं है।

By - Shachi Sutaria | 5 May 2020 7:27 AM GMT

योग गुरु बाबा रामदेव ने दो दावें किए हैं| पहला तो यह की 30 सेकंड तक सांस रोकना कोविड-19 के लिए एक स्व - परीक्षण का तरीक़ा हो सकता है और दूसरा यह की सरसों का तेल नाक पर लगाने से वह वायरस को पेट में ले जाता है जहाँ एसिड वायरस को ख़त्म कर देता है। किंतु इन दावों को किसी भी वैज्ञानिक रीसर्च का समर्थन या पुष्टि नहीं मिली है।

रामदेव ने यह दावें आज तक के इ- अजेंडा में 25 अप्रैल 2020 को एक 24 मिनट लंबे वीडियो में किए। इस इंटर्व्यू का वीडियो आप नीचे देख सकते हैं। वीडियो के पाँचवे मिनट में रामदेव कोविड-19 के 'सेल्फ़ - टेस्ट' की बात करते हैं।

वह कहते हैं की अगर एक व्यक्ति किसी भी बीमारी के साथ या बिना 30 सेकंड या 1 मिनट तक अपनी सांस रोक सके और उनकी सांस ना फूले तो वो स्व-परीक्षण कर रहे हैं की वह कोविड-19 से संक्रमित नहीं है। उन्होंने वीडियो में इसका प्रदर्शन करके भी दिखाया।

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वीडियो के छठे मिनट में रामदेव कहते हैं की सरसों के तेल की बूँदे नाक पर लगाने से, वह कोरोनावायरस को रेसपीरेटरी सिस्टम (स्वास प्रणाली) के मार्ग से पेट में धकेल देता है और पेट में मौजूद एसिड वायरस को ख़त्म कर देते हैं।

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रामदेव के यह दावें कई न्यूज़ संगठन जैसे इंडिया टुडे एवं फ़्री प्रेस जर्नल ने रिपोर्ट किए।

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रामदेव बाबा ने यह दोनों ही दावें आज तक के साथ एक इंटर्व्यू में 25 अप्रैल को किए। बूम ने पता लगाया है की दोनो ही दावे वैज्ञानिक रूप से समर्थित नहीं है।

पहला दावा : सांस रोकना कोरोनावायरस के लिए एक टेस्ट है

बूम ने मुंबई के वोकहार्ट अस्पताल के एक पलमोनोलोजिस्ट - डॉक्टर जीनम शाह से यह समझने के लिए सम्पर्क किया की अपनी सांस पर अच्छा नियंत्रण होना, कोरोनावायरस ना होने का सूचक हो सकता है या नहीं। शाह ने कहा "इस थियरी का समर्थन करने के लिए किसी प्रकार की कोई खोज नहीं हुई है| कोरोनावायरस का होना या ना होना केवल आर टी-पी सी आर टेस्ट से पता किया जा सकता है।"

इसी दावे का पर्दाफ़ाश ए एफ पी ने भी किया था जब सोशल मीडिया पर इस कोविड-19 के स्व-परीक्षण की वकालत की जा रही थी। जिन वैज्ञानिकों ने ए एफ पी से बात की उन्होंने कहा की इस सांस लेने की तकनीक से फ़ायब्रोसिस का पता लगाना मुमकिन नहीं है क्यूँकि फ़ायब्रोसिस काफ़ी सालों तक क्रॉनिक एक्सपोजर से होता है और यह कोविड- 19 जितना जल्दी नहीं होता।

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विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार कोविड-19 के लक्षणों में बुखार, सूखी ख़ासी और थकान शामिल है। कुछ पेशंट्स को दर्द, नाक में रूकावट, खारा गला या दस्त भी हुए हैं। पाँच में से एक पेशंट को सांस लेने में मुश्किल होती पायी गयी है।

दूसरा दावा : सरसों का तेल कोरोनावायरस को पेट में धकेल देता है जहाँ पेट के एसिड उसे ख़त्म कर देते हैं।

पेट में गैस्ट्रिक एसिड के रूप में हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड मौजूद होता है किंतु इस बात का कोई सबूत नहीं है की यह सार्स-सीओवी-2 को ख़त्म करते हैं। और तो और सरसों के तेल का कोरोनावायरस पर असर भी अभी तक खोजा नहीं गया है।

डॉक्टर शाह ने कहा की ऐसी कोई भी खोज नहीं हुई है जो सरसों या किसी भी अन्य तेल का सार्स सीओवी-2 पर असर बताए।

एक रीसर्च अध्ययन हुआ तो है जो सरसों के तेल के फ़ायदे बताता है किंतु उसका कोविड-19 पर असर बताने वाली कोई खोज अब तक नहीं हुई है।

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सरसों का तेल पाचन में, कैन्सर का ख़तरा कम करने में, शरीर का तापमान सही रखने में मदद करता है। इसमें एंटीबैक्टीरीयल और एंटीफ़ंगल प्रॉपर्टीज़ होती हैं। यह रेड ब्लड सेल्ज़ को सशक्त बनाता है, कोलेस्ट्रोल ठीक रखता है और डाइबीटीज़ को कम करने में मदद करता है।

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