करीब 6 साल पुरानी एक तस्वीर जिसमें कुछ मुस्लिम विद्यार्थी एक लाइब्रेरीनुमा जगह पढ़ाई कर रहें है और उनके ठीक सामने अथर्ववेद की एक प्रति रखी हुई है इस फ़र्ज़ी दावे के साथ वायरल है की मुस्लिम हिन्दुओं के वेदों को मिलावटी तरह से दोबारा लिख रहे हैं |
बूम ने पाया की यह तस्वीर 2014 में द हिन्दू अखबार के एक फ़ोटोग्राफर ने हैदराबाद में ली थी | यह तस्वीर अल महादुल आली अल इस्लामी सेमिनरी में ली गयी थी | हमनें इस इंस्टिट्यूट के डिप्टी डायरेक्टर ओस्मान आबेदीन से संपर्क किया जिन्होंने इन दावों को फ़र्ज़ी बताते हुए कहा दूसरे धर्मग्रंथो की पढ़ाई उनके पाठ्यक्रम का हिस्सा है |
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वायरल पोस्ट में शेयर की गयी तस्वीर में एक लाइब्रेरीनुमा जगह में कुछ मुस्लिम युवा किताबें पढ़ते नज़र आते हैं | उनमें से कुछ लिख भी रहे हैं |
तस्वीर के साथ एक कैप्शन में दावा किया गया है 'देखो और ध्यान दो और क्या हो रहा है हमारे देश में हमारे धर्म ग्रंथों में मिलावट करने का कार्य जोरों से चल रहा है,,,,आने वाली 20 साल बाद हमारी अगली पीढ़ियां ये मिलावटी वेद ,पुराण , उपनिषद पढ़ेंगे। ,,,जिसमें लिखा होगा चरित्र निर्माण बेकार की बात है | ब्रह्मचर्य एकदम फालतू जैसा टॉपिक है । धर्म और अधर्म जैसी कोई चीज नहीं । चार्वाक जैसी नीतियां अत्यंत लाभकारी है ,,,संस्कार जैसी कोई चीज नहीं होती । आदि आदि फालतू बातें मिलेंगी ,,,,यह सब बाकायदा अच्छी और सुद्रढ संस्कृत में मिलेंगी | बिल्कुल उसी प्रकार जिस प्रकार मैकाले और मैक्स मूलर ने हमारी मनुस्मृति आदि को मिलावट करके दूषित किया" (Sic)|
वायरल पोस्ट्स नीचे देखें | इनके आर्काइव्ड वर्शन यहाँ, यहाँ और यहाँ देखें |
यही दावे ट्विटर पर भी वायरल हैं |
देखो और ध्यान दो और क्या हो रहा है हमारे देश में 🤔🤨
— प• रामेन्द्र शर्मा🇮🇳 (@RaamendraSharm3) July 22, 2020
हमारे धर्म ग्रंथों में मिलावट करने का कार्य जोरों से चल रहा है 🙄
आने वाली 20 साल बाद हमारी अगली पीढ़ियां ये #मिलावटी वेद ,पुराण , उपनिषद पढ़ेंगे
और बोलेंगे की👇
धर्म और अधर्म जैसी कोई चीज नहीं#हिन्दू_विरोधी_गतिविधियाँ pic.twitter.com/7lX2nN1FEB
देखो और ध्यान दो और क्या हो रहा है हमारे देश में 🤔🤨🤨🤨🤨🤨हमारे धर्म ग्रंथों में मिलावट करने का कार्य जोरों से चल रहा है,,,, 🙄🙄🙄
— Rï†wïk §ïñgh ।धर्मार्थम् हिंसा परमो धर्मः। (@RAJPOOT_HUNK) July 21, 2020
आने वाली 20 साल बाद हमारी अगली पीढ़ियां ये #मिलावटी वेद ,पुराण , उपनिषद पढ़ेंगे। ,,,
जिसमें लिखा होगा चरित्र निर्माण बेकार की बात है🦹 pic.twitter.com/ZJk8zxfC7C
फ़ैक्ट चेक
बूम ने इस तस्वीर के साथ रिवर्स इमेज सर्च किया और द हिन्दू (न्यूज़ पेपर) की वेबसाइट पर एक आर्टिकल पाया जिसमें यही तस्वीर प्रकाशित थी |
2 अप्रैल, 2014 को प्रकाशित इस लेख में छपी इस तस्वीर के साथ कैप्शन में लिखा है 'अल महादुल आली अल इस्लामी के छात्र वेदों का अध्ययन इस्लाम और हिंदू धर्म में सामान्य विशेषताओं को समझने के लिए करते हैं। इस इंस्टिट्यूट में हैदराबाद में अन्य धर्मों की 1000 से अधिक पुस्तकें हैं। फोटो: जी_रामकृष्ण' |
इसके बाद हमनें अल महादुल आली अल इस्लामी इंस्टिट्यूट हैदराबाद के डिप्टी डायरेक्टर ओस्मान आबेदीन से संपर्क किया | उन्होंने इन वायरल दावों को बकवास करार दिया |
"वायरल हो रहे यह सारे दावे फ़र्ज़ी और बेबुनियाद हैं | किसी ने फ़ेसबुक पर यह बकवास डाल दिया है," आबेदीन ने बूम को बताया |
"यह तस्वीर करीब 6 साल पुरानी है जिसमें कुछ लोग पढ़ रहे हैं | मुझे ज्यादा तो याद नहीं पर वायरल दावें गलत हैं," उन्होंने आगे कहा |
"हमारे इंस्टिट्यूट में एक 'स्टडीज ऑफ़ रिलिजन' नाम का डिपार्टमेंट है | इसमें हम भारत और दुनिया भर के धर्मों को पढ़ते हैं | जैसे क्रिश्चियनिटी और जुडेस्म | यह अनुसंधान क्रियाविधि या रिसर्च मेथोडोलोजी है की सूचना प्रथम सोर्स से लेना चाहिए न की दूसरे या तीसरे सोर्स से | मिसाल के तौर पर समुदायों के बीच गलतफहमियां इसलिए पनपी हैं क्योंकि लोगों ने धर्म ग्रंथों को नहीं पढ़ा | या तो पढ़ा नहीं है या गलत सन्दर्भ में आधा अधूरा पढ़ा है | ऐसा नहीं होना चाहिए | हम भारत में पहले इंस्टिट्यूट हैं जहाँ वेद, उपनिषद, भगवतगीता, गुरु ग्रन्थ साहेब और बाइबिल, सभी हैं | हम हमारे यहाँ आने वालों को वास्तविक किताबों से पढ़ कर हिन्दुइस्म को समझने का कहते हैं," उन्होंने आगे समझाया |
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"कुछ समय पहले तक हमारे यहां संस्कृत के एक शिक्षक भी थे," उन्होंने कहा | "वेद नई बात नहीं है, कोई इन्हें कैसे बदल सकता है? लाइब्रेरी तभी सम्पूर्ण होती है जब वहां सारे सोर्स हों | हमारे पास करीब 1,500 बुक्स हैं जो वास्तविक लेखकों की हैं," उन्होंने बूम से कहा |
बूम ने द हिन्दू के रिपोर्टर जे.एस इफ़्तेख़ार से बात को जिन्होंने 2014 में यह रिपोर्ट की थी ।
इफ़्तेख़ार ने बूम को बताया कि तस्वीर पाठशाला को लाइब्रेरी की है जहाँ हिंदूइस्म और सिखिस्म कि कई किताबें थी । "यह एक तरह का धार्मिक-तुलना का विषय था," इफ़्तेख़ार ने कहा ।