उड़ीसा (Odisha) के एक अस्पताल में मन विचलित कर देने वाली दो तस्वीरें हालिया घटना के रूप में वायरल हैं. यह तस्वीरें लाश को तोड़-मरोड़कर (Woman body broken) बोरी में भरते हुए दिखाती हैं. वायरल पोस्ट में कहा गया है कि अस्पताल में एम्बुलेंस की सुविधा न होने के कारण पिता और पुत्र ने एक औरत की लाश को तोड़-मरोड़कर बोरी में भर दिया, ताकि आसानी से गांव ले जाया जा सके.
बूम ने पाया कि हालिया घटना के रूप में शेयर की गई यह तस्वीरें क़रीब 5 साल पुरानी यानी साल 2016 से हैं.
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फ़ेसबुक पर पटेल यामीन नामक यूज़र ने तस्वीरें शेयर करते हुए कैप्शन में लिखा कि "#हृदयविदारक_तस्वीर जो आप देख रहे हैं यह तस्वीरें दुनिया में सबसे ज्यादा, आलीशान मन्दिरों वाले #उड़ीसा की है, इस औरत की लाश को तोड़ मरोड़ कर इसलिए बोरी में डाला जा रहा है ताकि पिता और पुत्र, #लाश को कंधे पर ढोकर आसानी से गांव ले जा सके क्योंकि हॉस्पिटल में एंबुलेंस उपलब्ध नहीं है,ये #डिजिटल इंडिया है,गायों के लिए एम्बुलेंस इंसानो के लिए कुछ नही."
नोट- आर्टिकल में लाश के दृश्य और विवरण हैं.
पोस्ट का आर्काइव वर्ज़न यहां देखें.
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फ़ैक्ट चेक
बूम ने संबंधित कीवर्ड की मदद से गूगल पर खोज की तो कई मीडिया रिपोर्ट्स में उन्हीं दोनों पुरुषों की तस्वीर एक महिला की लाश को बांस के डंडे पर ले जाते हुए पाया.
रिपोर्ट में दोनों पुरुषों के चेहरे और कपड़े वायरल तस्वीरों में के साथ मेल खाते हैं.
हिंदी वेबसाइट वन इंडिया की 26 अगस्त 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक़ ओडिशा के बालासोर में स्थित सोरो रेलवे स्टेशन पर मालगाड़ी की चपेट में आने से 80 साल की विधवा सालामनी बेहेरा की मौत हो गई। जिसके बाद उनकी लाश को सोरो कम्यूनिटी सेंटर ले जाया गया.
पुलिस ने पंचनामा करके लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया. लेकिन पोस्टमार्टम के लिए ले जाने के लिए एम्बूलेंस की उचित व्यवस्था नहीं की गई. लाश को पोस्टमार्टम हाउस तक ले जाने के लिए कम्यूनिटी सेंटर के कर्मचारियों ने वृद्धा के लाश की हड्डियों को कमर से तोड़ दिया फिर उसे कपड़े में लपेटकर और बांस पर टांगकर ले गए.
इंडियन एक्सप्रेस ने सोरो जीआरपी के सहायक उप-निरीक्षक प्रताप रुद्र मिश्रा के हवाले से अपनी रिपोर्ट में लिखा कि उन्होंने एक ऑटो-रिक्शा चालक को शव को रेलवे स्टेशन पर ले जाने के लिए कहा, ताकि इसे ट्रेन से बालासोर के लिए लगभग 30 किमी दूर भेजा जा सके. "लेकिन ऑटो चालक ने 3,500 रुपये मांगे, जबकि हम ऐसे मामलों के लिए 1,000 रुपये से अधिक खर्च नहीं कर सकते. मेरे पास और कोई विकल्प नहीं था. इसलिए सोहो सीएचसी के कुछ ग्रेड चार कर्मचारियों को इसे ले जाने के लिए कहा गया."