सोशल मीडिया पर एक वायरल पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि विश्व जनसांख्यिकी अनुसंधान संस्थान की एक भविष्यवाणी के अनुसार, 2041 तक भारत की कुल जनसंख्या में मुसलमानों की संख्या 84% हो जाएगी.
बूम ने अपने फैक्ट चेक में पाया कि यह दावा झूठा है. हमने पाया कि विश्व जनसांख्यिकी अनुसंधान नाम की ऐसी कोई संस्था नहीं है. वायरल पोस्ट में मौजूद आंकड़े हाल के दशकों में धार्मिक समूहों के बीच विकास और प्रजनन दर में आई गिरावट को दर्शाते हैं.
इस पोस्ट में 1948 से लेकर 2041 तक भारत में हिंदू और मुस्लिम आबादी से संबंधित कुछ कथित आंकड़े दिए गए हैं. इसमें 'विश्व जनसांख्यिकी अनुसंधान संस्थान' के हवाले से विभिन्न वर्षों में हिंदू और मुस्लिम आबादी के प्रतिशत के साथ आंकड़ों की एक श्रृंखला मौजूद है.
इस झूठे दावे में कहा गया है कि 2030 के आम चुनावों में भारत का पहला मुस्लिम प्रधानमंत्री चुना जाएगा. इस पोस्ट में राष्ट्र निर्माण की सहायता के नाम पर यह मैसेज कम से कम दस अन्य लोगों को भेजने का आग्रह भी किया गया है.
पोस्ट का आर्काइव लिंक.
फैक्ट चेक
बूम ने दावे की पड़ताल के लिए गूगल पर 'वर्ल्ड डेमोग्राफिक रिसर्च इंस्टीट्यूट' और 'विश्व जनसांख्यिकी अनुसंधान संस्थान' सर्च किया. हमने पाया कि इस तरह का कोई संस्थान अस्तित्व में नहीं है.
इसके आगे बूम ने इस दावे की जांच के लिए भारत की जनगणना और प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा जारी आंकड़ों की मदद ली.
जनसांख्यिकीय अनुसंधान करने वाले अमेरिकी थिंक-टैंक प्यू रिसर्च सेंटर की 2021 की रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक भारत की कुल आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी केवल 18% होगी.
रिपोर्ट में कहा गया, "अनुमान है कि 2050 तक भारत की आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी लगभग 77 प्रतिशत, मुस्लिमों की 18 प्रतिशत और ईसाइयों की हिस्सेदारी 2 प्रतिशत होगी."
इस फर्जी पोस्ट में 2011 में मुसलमानों की जनसंख्या का प्रतिशत 22.6 और हिंदुओं की जनसंख्या का प्रतिशत 73.2 बताया गया है. हमने पाया कि यह दावा भी गलत है.
2011 की जनगणना के अनुसार, देश में मुसलमानों की जनसंख्या 17.22 करोड़ यानी कुल आबादी का 14.2 प्रतिशत है वहीं हिंदुओं की जनसंख्या 96.63 करोड़ यानी कुल आबादी का 79.8 प्रतिशत है.
इन आंकड़ों की मानें तो कुल संख्या के हिसाब से देश में हिंदू सबसे बड़ा धार्मिक समुदाय है. 1951 में स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना के समय भारत की आबादी करीब 36 करोड़ थी. इसमें 84% से ज्यादा लोग (लगभग 30 करोड़) हिंदू समुदाय से थे, वहीं सिर्फ 3.5 करोड़ (9.8%) आबादी मुस्लिम समुदाय से थी.
2011 तक आते-आते यह हिंदू आबादी बढ़कर 96.6 करोड़ और मुस्लिम आबादी बढ़कर लगभग 17.2 करोड़ हो गई. 1951 में भारत की कुल आबादी में हिंदुओं की हिस्सेदारी 84% थी जो 2011 में घटकर लगभग 78% हो गई. इस गिरावट के बावजूद हिंदुओं की यह संख्या देश की आबादी का बहुमत हिस्सा है. आपको बताते चलें कि भारत में 2021 में होने वाली जनगणना अभी तक नहीं हुई है.
भारत में धार्मिक समूहों के बीच प्रजनन दर में गिरावट
भारत में हिंदू आबादी की तुलना में मुस्लिम आबादी का तेजी से बढ़ने का अनुमान किया गया है. यानी जो 2010 में 14.4% थी वह 2050 तक बढ़कर 18% से अधिक हो जाएगी. हालांकि 2015 में आई प्यू रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार , "2050 तक भारतीय आबादी का तीन-चौथाई (76.7%) से अधिक हिस्सा हिंदुओं का होगा. भारत में हिंदुओं की संख्या अभी भी दुनिया के पांच सबसे बड़े मुस्लिम देशों (भारत, पाकिस्तान, इंडोनेशिया, नाइजीरिया और बांग्लादेश) की कुल आबादी से अधिक होगी."
इसके अतिरिक्त, पिछले तीन दशकों में हिंदुओं की अपेक्षा मुसलमानों की वृद्धि दर में काफी गिरावट आई है. 1981-1991 में जो दर 32.9% थी वह 2001-2011 में घटकर 24.6% हो गई. इस अवधि में हिंदुओं की वृद्धि दर 22.7% से घटकर 16.8% हो गई.
इसी तरह, सभी धार्मिक समूहों के बीच कुल प्रजनन दर (TFR) में कमी आई है. लेकिन भारतीय मुस्लिम महिलाओं के बीच यह गिरावट ज्यादा देखी गई, जो 1992 में प्रति महिला 4.4 बच्चों से घटकर 2019-21 में 2.36 हो गई है. इसी अवधि के दौरान हिंदुओं में यह दर प्रति महिला 3.3 बच्चों से घटकर 1.94 हो गई. यह भारत के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा धर्म-वार उपलब्ध कराए गए नवीनतम आंकड़े हैं.
इन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला है कि विकास और प्रजनन दर धर्म से नहीं बल्कि शिक्षा और आय के स्तर से जुड़े हुए हैं. जिन राज्यों में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और सामाजिक-आर्थिक विकास का स्तर ज्यादा है, वहां सभी धार्मिक समुदायों में TFR कम है.
भारत में मुस्लिम आबादी के 'विस्फोट' को लेकर इस तरह के दावे अक्सर देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा करने के लिए किए जाते हैं. इससे पहले पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया ने धार्मिक समुदायों की जनसंख्या के आंकड़ों बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने को लेकर चिन्हित किया था.
इन्होंने भी इस बात पर जोर दिया था कि विकास तथा प्रजनन दर शिक्षा और आय के स्तर जैसे फैक्टर से प्रभावित होते हैं. जिस राज्य में शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास का स्तर ऊंचा है उस राज्य में आम तौर पर सभी धार्मिक समूहों के बीच कुल प्रजनन दर (TFR) में कमी देखी जा सकती है.