सोशल मीडिया पर एक वीडियो इस दावे के साथ वायरल है कि कश्मीर में एक कश्मीरी पंडित (Kashmiri Pandit) ने मुसलमानों को गाय काटने से रोक दिया. वीडियो शेयर करते हुए यूज़र्स दावा कर रहे हैं कि कश्मीर में अब 370 और 35A की ताक़त दिख रही है और एक कश्मीरी पंडित गौ वध (Cow Slaughtering) करने जा रहे मुसलमानों को ख़ुलेआम चेतावनी दे रहा है.
बूम ने वायरल वीडियो में गौ वध का विरोध करने वाले व्यक्ति का पता लगाया. वह श्रीनगर का एक कश्मीरी मुसलमान है और वीडियो इस साल जुलाई में ईद-अल-अज़हा के मौक़े पर रिकॉर्ड किया गया था.
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वायरल वीडियो में व्यक्ति को कहते हुए सुना जा सकता है कि "मैं देखता हूं मौलवी साहब आप यहां 20-22 गाय कैसे काटते हो. यह क्या स्लॉटर हाउस है? इसका लाइसेंस है? गाय काटने का लाइसेंस दिखाओ? मुझे बदबू आती है दो साल से. मौलवी साहब मैं बोल रहा हूं मुझे तकलीफ़ है. 20-22 गाय मैं यहां काटने नहीं दूंगा इस जगह पे."
वीडियो के आखिर में व्यक्ति ख़ुद अपना चेहरा दिखाता है. इस वीडियो को कई दक्षिणपंथी फ़ेसबुक पेजों ने इस दावे से शेयर किया है कि वीडियो बनाने वाला व्यक्ति कश्मीरी पंडित है.
फ़ेसबुक पर वीडियो शेयर करते हुए एक यूज़र ने कैप्शन में लिखा कि "कश्मीर में एक कश्मीरी पंडित कई मुल्लों का मुकाबला करते हुए। मुल्ले मौलवी गाय काटना चाहते हैं लेकिन वह सबको खुलेआम चेतावनी दे रहा है। मोदी होने का मतलब समझ में आया। खासकर उन लोगों को समझ जाना चाहिए जो नोटा नोटा चिल्लाते है ।"
वीडियो यहां देखें.
वीडियो यहां देखें
फ़ेसबुक पर इस वायरल वीडियो को इसी दावे के साथ बड़ी संख्या में शेयर किया गया है.
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Kashmiri Pandit के नाम से वायरल वीडियो का सच
बूम ने विभिन्न फ़ेसबुक पेजों पर पोस्ट किये गए वीडियो का कमेंट सेक्शन चेक किया. ऐसे ही एक पोस्ट में आरिफ़ जान नाम के व्यक्ति ने इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने से बचने की अपील थी. हमने आरिफ़ के फ़ेसबुक पेज की जांच की और 16 सितंबर की उनकी एक पोस्ट पर उसी वीडियो का स्क्रीनशॉट पाया.
आरिफ़ जान ने वायरल वीडियो के स्क्रीनशॉट के साथ पोस्ट में लिखा, "घंटा घर कश्मीर और अन्य सोशल मीडिया साइट इस वीडियो को वायरल कर रहे हैं और इसे धार्मिक और राजनीतिक मुद्दा बना रहे हैं, यह मामला पूरी तरह से अलग था मैं ईद पर जानवरों के वध के ख़िलाफ़ नहीं, वध स्थल का विरोध कर रहा था क्योंकि दारुलालूम मेरे किचन की दीवार के पास था. खून की बदबू को नज़रअंदाज़ करना वास्तव में कठिन था क्योंकि उन्हें 20 से 30 जानवरों को मारना पड़ता है, कोई भी समझ सकता है कि गर्मियों में कितना कठिन था, इस मामले को मस्जिद कमिटी द्वारा हल किया गया था और अब कोई समस्या नहीं है अगर मैंने भावनाओं को ठेस पहुंचाई है तो मैं क्षमा चाहता हूं।"
इसके बाद बूम ने जम्मू और कश्मीर के गांदरबल के निवासी आरिफ़ जान से व्हाट्सएप और फोन पर संपर्क किया. आरिफ़ ने पुष्टि की कि वो एक मुस्लिम है और उन्होंने वीडियो इस साल जुलाई में रिकॉर्ड किया था.
"वीडियो इस साल जुलाई में ईद-उल-अज़हा का है. मुद्दा मूल रूप से स्वच्छता से संबंधित था. मेरे घर की दीवार दारूल उलूम के साथ लगती है. लॉक डाउन के कारण यहां सब कुछ बंद है. वे पिछले दो सालों से यहां जानवर काट रहे हैं और मैं उन्हें ऐसा नहीं करने के लिए कह रहा हूं. मुझे क़ुरबानी से कोई समस्या नहीं है लेकिन बचा हुआ खून बदबू छोड़ जाता है," आरिफ़ जान ने बूम को बताया.
आरिफ़ ने कहा कि जब लोग इस साल ईद-उल-अज़हा पर फिर से जानवरों की क़ुरबानी देने आए, तो उन्होंने आपत्ति जताई और एक वीडियो बनाया. जान ने कहा, "मस्जिद कमेटी ने उसी दिन इस मुद्दे को सुलझा लिया था और क़ुरबानी की जगह को मेरे घर से 200 मीटर की दूरी पर मस्जिद परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया था."
उन्होंने स्पष्ट किया कि उन्हें क़ुरबानी से कोई समस्या नहीं थी, लेकिन जिस स्थान पर जानवरों का वध किया जा रहा था, इससे उनके लिए स्वच्छता संबंधी समस्याएं पैदा हुईं.
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