सोशल मीडिया पर वायरल एक पोस्ट में दावा किया जा रहा है कि 26 जनवरी को आयोजित किसान परेड के दौरान गिरफ़्तार किये गए किसानों को दिल्ली हाईकोर्ट ने छोड़ने का आदेश दिया है.
बूम ने दिल्ली पुलिस के पीआरओ चिन्मय बिस्वाल से संपर्क किया, जिसमें उन्होंने वायरल दावे को फ़र्ज़ी बताया.
गौरतलब है कि बीते महीने 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर किसानों ने ट्रैक्टर परेड आयोजित की थी. इस दौरान लालकिला और आईटीओ पर किसानों के एक समूह और सुरक्षाकर्मियों के बीच झड़प हो गई थी. दिल्ली पुलिस ने 44 एफ़आईआर दर्ज की थी और हिंसा फ़ैलाने के आरोप में 122 लोगों को गिरफ़्तार किया था. इसी पृष्ठभूमि में पोस्ट वायरल हो रहा है.
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वायरल पोस्ट में लिखा है, "दिल्ली हाईकोर्ट ने दिल्ली पुलिस द्वारा पकड़े गए सभी किसान साथियों को छोड़ने का आदेश दिया. किसान एकता ज़िंदाबाद. अन्नदाता की जय हो."
फ़ेसबुक पर प्रम रसोड़ा नामक एक यूज़र ने पोस्ट शेयर शेयर करते हुए लिखा, "किसान मजदूर एकता ज़िंदाबाद." इस पोस्ट को अब तक क़रीब 6 हजार लाइक्स और 3 हजार बार से ज़्यादा शेयर किया जा चुका है.
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फ़ैक्ट चेक
बूम ने वायरल पोस्ट की सच्चाई जानने के लिए मीडिया रिपोर्ट्स खंगाली. इस दौरान हमें ऐसी कोई रिपोर्ट नहीं मिली, जिसमें वायरल दावे को वास्तविक पाया गया हो.
इसके उलट, हमें लाइव लॉ पर 2 फ़रवरी की एक रिपोर्ट ज़रूर मिली, जिसमें कहा गया है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने 'ग़ैरकानूनी तौर पर गिरफ़्तार' किसानों की रिहाई संबंधी याचिका ख़ारिज कर दी.
हालांकि, लाइव लॉ वेबसाइट पर 12 फ़रवरी की एक रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली हाईकोर्ट ने किसान आंदोलन में शामिल दो पूर्व सेना के जवान 84 वर्षीय गुरमुख सिंह और 66 वर्षीय जीत सिंह को ज़मानत दे दी. लेकिन इस रिपोर्ट में, बड़े पैमाने पर ही किसानों की गिरफ़्तारी के बारे में कहीं भी ज़िक्र नहीं किया गया.
बूम ने दिल्ली पुलिस के पीआरओ चिन्मय बिस्वाल से संपर्क किया, जिसमें उन्होंने स्पष्ट शब्दों में वायरल दावे को नकार दिया.उन्होंने बताया कि "दिल्ली हाईकोर्ट की तरफ़ से हमें ऐसा कोई आदेश प्राप्त नहीं हुआ है. यह अफ़वाह है, वायरल पोस्ट का दावा फ़ेक है. अभी इस मामले की जांच चल रही है."
आरएसएस के बचाव कार्य की यह तस्वीर 2013 केदारनाथ त्रासदी की है