जब भी खेलों का ज़िक्र होता है तो जीतोड़ मेहनत, सच्ची लगन और कठिन चुनौतियों का सामना कर बेहतर प्रदर्शन करना हर खेल के मुख्य सिलेबस का हिस्सा होता है. लेकिन खिलाड़ियों का एक तबका ऐसा भी है जो इन प्रतिस्पर्धाओं में दोहरी लड़ाई लड़ता है. एक लड़ाई वह अपने प्रतिद्वंद्वी से तो दूसरी समाज से लड़ रहा होता है क्योंकि दिव्यांग होना आज भी समाज के एक बड़े तबके में आपको सामान्य से अलग कर देता है. पैरालंपिक गेम्स ऐसे ही दिव्यांग खिलाड़ियों का जमघट है.
दूसरे देशों की ही तरह, भारत की पैरालंपिक टीम ऐसे ही खिलड़ियों से भरी हुई है, जो इस समय जापान की राजधानी टोक्यो में अपनी नई चुनौतियों से भिड़ रही है. पैरालंपिक खेल 25 अगस्त से शुरू हो कर 5 सितंबर तक चलेंगे. इस बार, भारत के 54 खिलाड़ी पैरालंपिक खेलों में भाग लेंगे. उम्मीद की जा रही है कि इस बार भारत अपना सबसे श्रेष्ठ प्रदर्शन करने में कामयाब होगा.
अभी तक की ताज़ा ख़बर ये है कि भारत अब तक 2 गोल्ड, 4 सिल्वर और 1 ब्रॉन्ज़ के साथ तालिका में 25वें स्थान पर क़ाबिज़ है. जैवलिन थ्रो में सुमित अंतिल ने गोल्ड, शूटिंग में अवनि लेखारा ने गोल्ड, हाई जम्प में निषाष कुमार ने सिल्वर, टेबल टेनिस में भावनाबेन पटेल ने सिल्वर, योगेश कुमार ने डिस्कस थ्रो में सिल्वर जबकि विनोद कुमार ने डिस्कस थ्रो में ब्रॉन्ज़ मेडल अपने नाम किये.
प्रधानमंत्री मोदी सहित स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने खिलाड़ियों के बेहतरीन प्रदर्शन पर उनका उत्साहवर्धन भी किया है.
Paralympic Games के बारे में वो बातें जो आपको जाननी चाहिये
पैरालंपिक खेलों की शुरुआत मुख्यतः द्वितीय विश्वयुद्ध में घायल और स्पाइनल इंजरी के शिकार सैनिकों को फिर से मुख्यधारा में लाने के लिये हुई थी.
1948 में द्वितीय विश्व युद्ध में घायल हुए सैनिकों की स्पाइनल इंजुरी को ठीक करने के लिए स्टोक मानडेविल अस्पताल में काम कर रहे नियोरोलोजिस्ट सर गुडविंग गुट्टमान ने इस रिहेबिलेशन कार्यक्रम के लिए स्पोर्ट्स को चुना था. इन खेलों को तब अंतरराष्ट्रीय व्हीलचेयर गेम्स का नाम दिया गया था.
साल 1948 में पहली बार लंदन में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ, और इसी के साथ ही डॉक्टर गुट्टमान ने दूसरे अस्पताल के मरीजों के साथ इस तरह के एक स्पोर्ट्स कंपीटिशन की भी शुरुआत की.
वर्ष 1960 में रोम में पहले पैरालंपिक खेल हुए जिसमें 23 देशों के 400 खिलाड़ियों ने हिस्सा लिया. वहीं से शुरुआत हुई मॉर्डन पैरालंपिक खेलों की. ब्रिटेन के मार्गेट माघन पैरालंपिक खेलों में गोल्ड मेडल जीतने वाले पहले एथलीट बने.
2004 के एथेंस ओलंपिक में रिकॉर्ड 135 देशों ने पैरालंपिक खेलों में हिस्सा लिया जिसमें 17 नए देश और 19 नए खेलों को शामिल किया गया और 4000 एथलीटों ने हिस्सा लिया. इस बार 304 वर्ल्ड रिकॉर्ड बने और 448 पैरालंपिक रिकॉर्ड बने.
Paralympic Games में भारत
पैरालंपिक खेलों में भारत ने अपना पहला पदक 1972 के हाईडेलबर्ग खेलों में जीता था, ख़ास बात ये कि ये गोल्ड मेडल भी था. उस समय, पुरुषों के 50 मीटर फ्रीस्टाइल में मुरलीकांत पेटकर ने यह उपलब्धि हासिल की थी.
1972 से लेकर अभी टोक्यो में चल रहे मौजूदा पैरालंपिक खेलों से पहले तक भारत ने चार गोल्ड, चार सिल्वर और चार ब्रॉन्ज के साथ कुल 12 मेडल जीते हैं.
प्रदर्शन के लिहाज से भारत का सबसे बढ़िया पैरालंपिक खेल 2016 के रियो खेल में था. इस वर्ष देश को दो गोल्ड, एक सिल्वर और एक ब्रॉन्ज मिला था.
व्यक्तिगत सफलता के मामले में देवेंद्र झाझरिया अब तक के भारत के सबसे सफल पैरालंपिक खिलाड़ी हैं. 2016 में गोल्ड मेडल जीतने से पहले देवेंद्र झाझरिया ने 2004 के एथेंस पैरालंपिक खेलों में भी गोल्ड जीता था.
भारत का दूसरा सबसे बढ़िया प्रदर्शन 1984 में न्यूयॉर्क के पैरालंपिक खेलों में रहा था. उस समय देश को दो सिल्वर और दो ब्रॉन्ज मेडल हासिल हुए थे. इसमें जोगिंदर सिंह बेदी ने एक सिल्वर और दो ब्रॉन्ज सहित कुल तीन पदक प्राप्त किए थे.