अफ़ग़ानिस्तान-तालिबान-अमेरिका: नब्बे के दशक से अब तक का सफ़र
कभी सोवियत यूनियन के ख़िलाफ़ लड़ाई में अमेरिका का मोहरा बना तालिबान कैसे उसके ही गले की हड्डी बन गया, जानिए तालिबान का इतिहास इस रिपोर्ट में.
15 अगस्त के दिन जब भारत अपना 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा था, ठीक उसी दिन भारत का मित्र देश अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) तालिबान के नियंत्रण में जा चुका था. तालिबान (Taliban) के जलालाबाद में कब्ज़े के बाद से कुछ ख़बरें आनी शुरू हो गई थीं कि तालिबान राजधानी काबुल (Kabul) की तरफ़ बढ़ रहा है. इससे पहले कि यह ख़बर अफ़वाह में बदलतीं एक और ख़बर सामने आई जिसने दुनिया को हैरत में डाल दिया कि अफ़ग़ानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी (Ashraf Ghani) ने देश छोड़ दिया है. इसी के साथ स्पष्ट हो गया कि अफ़ग़ानिस्तान पर तालिबान का कब्ज़ा हो गया.
इन तेज़ी से बदलते राजनैतिक समीकरणों के बीच करीब एक पखवाड़े के भीतर अफ़ग़ानिस्तान में सब कुछ बदल चुका है. अगस्त 29 को काबुल एयरपोर्ट के बाहर फिर एक धमाका हुआ है जिसमें एक मौत रिपोर्ट की गयी है. ये अगस्त 26 को काबुल एयरपोर्ट (Kabul Airport) के पास हुए उस भीषण ब्लास्ट के बाद है जिसमें करीब 180 लोगों की जान गयी थी.
अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल पर जिस तेज़ी से तालिबान का नियंत्रण हुआ है, इसका अनुमान शायद अफ़ग़ान सरकार, अमेरिका सहित दूसरे देशों को नहीं था. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के बयानों से मालूम चलता है कि पाक-चीन अफ़ग़ानिस्तान के घटनाक्रम से आश्वस्त हैं, वहीं भारत सहित दूसरे देश चिंतित हैं.
राजधानी काबुल समेत अफ़ग़ानिस्तान के ज़्यादातर हिस्सों पर तालिबान का कब्ज़ा हो चुका है. हालांकि, पंजशीर घाटी अब भी तालिबान के कब्ज़े से आज़ाद है. कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि तालिबान के लड़ाके पंजशीर की ओर बढ़ रहे हैं. तालिबान ने शांतिपूर्ण ढंग से पंजशीर पर कब्ज़े की बात कही है.
पंजशीर घाटी राजधानी काबुल के उत्तर में स्थित है. यह हिंदुकुश पहाड़ियों से घिरी हुई है. पंजशीर हमेशा से तालिबान विरोधी ख़ेमे का मुख्य केंद्र रहा है. तालिबान की पिछली सरकार (1996-2001) के दौरान भी यह क्षेत्र उसके नियंत्रण से बाहर था.
शेर-ए-पंजशीर (Lion of Panjshir) और मास्टर ऑफ़ गोरिल्ला वॉर के नाम से मशहूर नॉर्दन अलायन्स के कमांडर अहमद शाह मसूद (Ahmad Shah Massoud) के बेटे अहमद मसूद (Ahmad Massoud) ने तालिबान के ख़िलाफ़ जंग की घोषणा की है. काबुल पर तालिबान के कब्ज़े के बाद से बड़ी तादाद में लोग पंजशीर की ओर रुख़ कर रहे हैं. राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी के देश छोड़ने के बाद ख़ुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित करने वाले उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने तालिबान के ख़िलाफ़ मोर्चाबंदी करने में जुटे हैं. सालेह और मसूद नॉर्दन अलायन्स के सहयोगियों के साथ तालिबान के ख़िलाफ़ एकजुट हो रहे हैं.
नहीं, CNN ने 'मास्क पहनने' और 'शांतिपूर्ण' कब्ज़े के लिए तालिबान की प्रशंसा नहीं की
तालिबान के कब्ज़े के बाद अफ़ग़ान नागरिकों में भय का माहौल है. मौजूद हालात को देखते हुए नागरिक परिवार समेत जल्द से जल्द अपने देश से निकलने की कोशिश कर रहे हैं. हज़ारों अफ़ग़ान नागरिक सोमवार को काबुल के मुख्य एयरपोर्ट पर उमड़ पड़े. इनमें से कुछ सेना के एक विमान के ऊपर चढ़ गए. बताया जा रहा है कम से कम सात लोगों की मौत हो गयी.
अफ़ग़ानिस्तान में फंसे अपने नागरिकों को वापस लाने की प्रक्रिया में तेज़ी लाते हुए भारत ने विमान भेजा है. इसके अलावा भारत ने अफ़ग़ान नागरिकों को शरण देने के लिए नए वीजा प्रावधानों की समीक्षा की है. उधर तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान में भारत को प्रोजेक्ट्स पूरा करने की इजाज़त दी है. हालांकि, किसी भी सैन्य अभियान के लिए चेतावनी भी दी है.
आईये नज़र डालते हैं अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान के इतिहास पर
- 1980 के शुरुआती दिनों में अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत यूनियन समर्थित सरकार थी. इस सरकार के ख़िलाफ़ कई मुजाहिदीन समूह लड़ रहे थे. इन्हें कथित तौर पर अमेरिका और पाकिस्तान से समर्थन प्राप्त था
- तालिबान की नींव मुल्ला मोहम्मद उमर ने डाली थी. पश्तो भाषा में मदरसों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स को तालिबान कहते हैं
- अफ़ग़ानिस्तान से सोवियत यूनियन सेना की वापसी के बाद कई मुजाहिदीन आपस में ही लड़ने लगे. साल 1992 में तालिबान ने दूसरे मुजाहिदीन समूहों से लड़ाई शुरू की
- 1994 में तालिबान ने कंधार को अपने नियंत्रण में ले लिया. साल भर में ही उसने हेरात पर कब्ज़ा कर लिया
- 1996 में तालिबान का अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में नियंत्रण हो गया. तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान को इस्लामिक अमीरात घोषित कर दिया
- तालिबान सरकार को मान्यता देने वाले देशों में पाकिस्तान, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात थे
- साल 1998 आते-आते तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान के क़रीब 90 फ़ीसदी हिस्से पर अपना कब्ज़ा जमा लिया
- 1996 से 2001 तक अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का शासन रहा. इस दौरान तालिबान ने पूरे देश में शरिया क़ानून लागू कर दिया
- लड़कियों के स्कूल जाने और महिलाओं को अकेले बाहर निकलने पर पाबंदी लगा दी गई. मर्दों के लिए दाढ़ी रखना अनिवार्य कर दिया गया. क़ानून का उल्लंघन करने वालों को सरेआम सज़ा देने का प्रावधान किया गया
- 9 सितंबर 2001 को एंटी-तालिबान गठबंधन, नॉर्दर्न अलायन्स के कमांडर अहमद शाह मसूद की अल-कायदा द्वारा हत्या कर दी गई. पंजशीर के शेर के रूप में जाने जाने वाले गोरिल्ला वॉर के मास्टर मसूद की हत्या पर आतंकवाद विशेषज्ञों का मानना है कि उनकी हत्या ने 9/11 के हमलों के बाद तालिबान द्वारा ओसामा बिन लादेन को सुरक्षा प्रदान करने का आश्वासन था
- 11 सितंबर 2001 में अलक़ायदा ने अमेरिका में वर्ल्ड ट्रेड सेंटर पर हमला कर दिया जिसमें क़रीब 3 हजार लोगों की मौत हुई. अलक़ायदा सरगना ओसामा बिन लादेन ने हमले के बाद तालिबान शासित अफ़ग़ानिस्तान में शरण ली
- अमेरिका के नेतृत्व में नाटो सेना ने 7 अक्टूबर 2001 को अफ़ग़ानिस्तान पर हमला कर दिया और तालिबान शासन का सफ़ाया कर दिया
- 5 दिसंबर 2001 को जर्मनी के बोन (Bonn) में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के एग्रीमेंट में मुहर लगाई गई. अफ़ग़ानिस्तान में हामिद करज़ई की अगुवाई में अंतरिम सरकार बनी
- साल 2003 में अमेरिका के नेतृत्व में नाटो सेना अफ़ग़ानिस्तान में अंतर्राष्ट्रीय मिशन के तहत सुरक्षा व्यवस्था में लग गई. इस दौरान तालिबान और अमेरिकी सेना के बीच हिंसक झड़पें जारी रहीं
- मार्च 2012 में तालिबान ने शांति वार्ता की तरफ़ क़दम बढ़ाते हुए क़तर में अपना ऑफ़िस खोला. साल 2013 में अफ़ग़ानिस्तान की सुरक्षा नाटो (NATO) सेना से अफ़ग़ान सुरक्षा फ़ोर्स के हाथों में आ गई
- मई 2014 में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अफ़ग़ानिस्तान से साल 2016 तक सेना की वापसी का ऐलान किया. अगस्त 2017 में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अफ़ग़ान युद्ध पर विराम लगाने का संकेत दिया
- फ़रवरी 2019 में क़तर की राजधानी दोहा में तालिबान और अमेरिका के बीच शांति वार्ता बैठक हुई. सितंबर 2019 में तालिबानी हमले में अमेरिकी जवान की मौत के बाद राष्ट्रपति ट्रम्प ने शांति वार्ता रद्द कर दी
- 29 फ़रवरी 2020 को अमेरिका और तालिबान ने शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए. अप्रैल 2021 में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन (Jo Biden) ने सितंबर तक अफ़ग़ानिस्तान से पूरी तरह से सेना वापस बुलाने की घोषणा की
- रिपोर्टों के मुताबिक़ 2001 से अबतक अमेरिका-तालिबान के बीच जंग में 2300 अमेरिकी जवान, 450 यूके जवान मारे गए हैं जबकि 20 हजार से ज़्यादा अमेरिकी जवान घायल हुए हैं. वहीं, लगभग 64 हजार अफ़ग़ान सुरक्षा कर्मियों ने अपनी जान गंवाई है
- अफ़ग़ानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र सहायता मिशन (UNAMA) के अनुसार, 2009 में व्यवस्थित रूप से नागरिक हताहतों का रिकॉर्ड रखने की शुरुआत के बाद से लगभग 111,000 नागरिक मारे गए या घायल हुए हैं
- अमेरिका ने 2001 से 2019 के बीच तालिबान के ख़िलाफ़ जंग में क़रीब 822 बिलियन डॉलर खर्च किया
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