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रोज़मर्रा

'हॉकी के जादूगर' मेजर ध्यानचंद के जादू की पूरी दुनिया थी दीवानी

1936 के बर्लिन ओलंपिक खेलों में जर्मनी के साथ हॉकी के फ़ाइनल का वो रोमांचक मुक़ाबला आज भी लोगों के ज़हन में ताज़ा है जिसमें अकेले ध्यानचंद ने 3 गोल दागे थे.

By - Devesh Mishra | 29 Aug 2021 7:46 PM IST

हाल ही में संपन्न हुए टोक्यो ओलंपिक 2021 के खेलों ने देश के अंदर ग़ज़ब का रोमांच पैदा किया था. देश की महिला एवं पुरुष दोनों हॉकी टीमों के लिये पूरे देश ने प्रार्थनायें की सोशल मीडिया सहित तमाम जगहों में उनके उत्साहवर्धन में कोई कसर नहीं छोड़ी. ये सबके लिये आश्चर्य की बात थी कि भारतीय पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल बाद ओलंपिक में शानदार प्रदर्शन कर कोई पदक जीता था.

और तो और देश की महिला हॉकी टीम के शानदार प्रदर्शन ने भी लोगों को पदक की उम्मीद दिलाई थी. महिला टीम ने भी सेमीफ़ाइनल तक का सफ़र तय किया था. लेकिन क्या आपको पता है कि देश का राष्ट्रीय खेल कहे जाने वाले हॉकी में एक वक्त हमारा ऐसा जलवा था कि कोई भी विदेशी टीम हमारे आस पास तक नहीं फटकती थी.

एक ऐसा कप्तान, एक ऐसा महान खिलाड़ी, एक ऐसा जादूगर हमारी टीम का नेतृत्व किया करता था जिसके बारे में कहा जाता है कि हॉकी बॉल उसकी महबूबा थी, वो जब तक मैदान में मौजूद होता गेंद हमेशा उसकी स्टिक से चिपकी रहती थी. जी हाँ हम बात कर रहे हैं हॉकी के महान जादूगर मेजर ध्यानचंद की. आज मेजर ध्यानचंद का जन्मदिन है और उन्हीं के नाम पर राष्ट्रीय खेल दिवस भी है आइये आपको उनके बारे में कुछ रोचक और महत्वपूर्ण बातें बताते हैं.

आज Major Dhyanchand का birthday यानि National Sports Day है  

मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त को साल 1905 में इलाहाबाद में हुआ था. उनके जन्मदिन को देशभर में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है. और आज के ही दिन खेल में बेहतरीन प्रदर्शन करने वाले खिलाड़ियों को सर्वोच्च खेल सम्मान मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार (पहले इसे राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार के रूप में जाना जाता था) के अलावा अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार दिए जाते हैं.

मेजर ध्यानचंद ब्रिटिश-कालीन भारतीय सेना में एक सिपाही की हैसियत से 1922 में भर्ती हुए लेकिन अपनी खेल प्रतिभा के दम पर वे सूबेदार से लेफ़्टिनेंट फिर कैप्टन और अंत में भारतीय सेना में मेजर तक बने.

1928 में एम्सटर्डम के ओलिंपिक खेलों में ध्यानचंद भारत की ओर से सबसे ज्यादा गोल करने वाले खिलाड़ी थे. उस टूर्नामेंट में ध्यान चंद ने 14 गोल किए थे. वहां के एक स्थानीय समाचार पत्र में लिखा था, 'यह हॉकी नहीं बल्कि जादू था. और ध्यानचंद हॉकी के जादूगर हैं'.

ऐसा कहा जाता है कि हॉलैंड में लोगों ने उनकी हॉकी स्टिक तुड़वा कर देखी कि कहीं उसमें चुंबक तो नहीं लगा है. जापान के लोगों को अंदेशा था कि उन्होंने अपनी स्टिक में गोंद लगा रखी है. और कमोबेश जर्मनी के लोग भी कहा करते कि ध्यानचंद की स्टिक में कुछ तो है.

1932 के ओलंपिक फाइनल में भारतीय टीम ने अमेरिका को 24-1 से हराया था. उस मैच में ध्यानचंद ने 8 गोल किए और उनके भाई रूप सिंह ने 10 गोल किए थे. उस टूर्नामेंट में भारत की ओर से किए गए 35 गोलों में से 25 गोल दो भाइयों की जोड़ी ने किए थे.

1936 में आयोजित हुए बर्लिन ओलंपिक में हॉकी टीम के कप्तान मेजर ध्यानचंद थे जिनका मुक़ाबला फ़ाइनल में जर्मनी की ही टीम के साथ था. भारत ने जर्मनी को उस मैच में 8-1 के भयानक अंतर से हराया और ख़ास बात ये कि इस मैच में तीन गोल अकेले ध्यान चंद ने किए.

कहा जाता है कि हाफ़ टाइम तक भारत सिर्फ़ एक गोल से आगे था. इसके बाद ध्यान चंद ने अपने स्पाइक वाले जूते और मोज़े उतारे और नंगे पांव खेलने लगे इसी मैच में जर्मनी के गोलकीपर की हॉकी ध्यान चंद के मुँह पर इतनी ज़ोर से लगी कि उनका दांत टूट गया था.

मेजर ध्यान चंद ने 1928, 1932 और 1936 ओलिंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व किया. तीनों ही बार भारत ने ओलिंपिक में गोल्ड मेडल जीता.

दुनिया के सबसे महान हॉकी खिलाड़ियों में से एक मेजर ध्यान चंद ने अतंरराष्ट्रीय हॉकी में लगभग 400 गोल दागे. अपने 22 साल के हॉकी करियर में उन्होंने अपने खेल से पूरी दुनिया को कई बार हैरान किया.

मेजर ध्यानचंद के बारे में कहा जाता है कि बर्लिन ओलंपिक में उनके खेल से हिटलर इतना प्रभावित हुआ था कि उन्हें अपने साथ डिनर के लिये बुलाया. वहाँ उनसे उन्हें जर्मन सेना में बड़े पद का और जर्मन हॉकी टीम के साथ खेलने का ऑफ़र दिया. लेकिन मेजर ध्यानचंद ने मुस्कुराते हुए कहा "हिंदुस्तान ही मेरा वतन है और मैं उसी के लिए आजीवन हॉकी खेलता रहूंगा."

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