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      बांग्लादेश के लिए सत्याग्रह में पीएम मोदी ने हिस्सा लिया था? हम क्या जानते हैं

      नरेंद्र मोदी ने कहा कि एक युवा कार्यकर्ता के रूप में, उन्होंने बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन के लिए आयोजित रैलियों में भाग लिया था.

      By - Mohammad Salman |
      Published -  27 March 2021 6:00 PM
    • बांग्लादेश के लिए सत्याग्रह में पीएम मोदी ने हिस्सा लिया था? हम क्या जानते हैं

      बांग्लादेश (Bangladesh) की आज़ादी के 50 साल पूरे होने पर राष्ट्रीय दिवस (National Day) के अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि बांग्लादेश पहुंचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने 26 मार्च, 2021 को कहा कि उन्होंने बांग्लादेश की आज़ादी के लिए सत्याग्रह (Satyagraha) किया था, इस दौरान वो गिरफ़्तार हुए थे और जेल (jail) भी गए थे. पीएम मोदी के इस बयान ने एक राजनैतिक विवाद को जन्म दे दिया है. विपक्षीय दल उनके इस बयान की सत्यता पर सवाल उठा रहे हैं.

      प्रधानमंत्री मोदी ने ढाका के अपने दो दिवसीय यात्रा के दौरान अपने भाषण में कहा, "बांग्लादेश की आज़ादी के लिए संघर्ष में शामिल होना मेरे जीवन के पहले आंदोलनों में से एक था. मेरी उम्र 20-22 साल रही होगी जब मैंने और मेरे साथियों ने बांग्लादेश की जनता की आज़ादी के लिए सत्याग्रह किया था. आज़ादी के समर्थन में तब मैंने गिरफ़्तारी भी दी थी और जेल जाने का अवसर भी मिला था."

      बांग्लादेश की आजादी के संघर्ष में शामिल होना, मेरे जीवन के पहले आंदोलनों में से एक था।

      मैंने और मेरे साथियों ने बांग्लादेश के लोगों की आजादी के लिए सत्याग्रह किया था।

      बांग्लादेश की आजादी के लिए जितनी तड़प इधर थी उतनी ही तड़प उधर भी थी।

      - पीएम @narendramodi pic.twitter.com/z9mU4FGQ2D

      — BJP (@BJP4India) March 26, 2021

      कांग्रेस नेता शशि थरूर सहित कई प्रमुख राजनेताओं ने पीएम मोदी के इस दावे पर सवाल उठाया है.

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      शशि थरूर ने ट्वीट करते हुए कहा, "अंतर्राष्ट्रीय शिक्षा: हमारे पीएम बांग्लादेश को भारतीय "फ़ेक न्यूज़" का स्वाद दे रहे हैं. यह बेतुकापन है हर कोई जानता है कि बांग्लादेश को किसने मुक्त किया."

      International education: our PM is giving Bangladesh a taste of Indian "fake news". The absurdity is that everyone knows who liberated Bangladesh. https://t.co/ijjDRbszVd

      — Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) March 26, 2021

      थरूर ने बाद में माफ़ी मांगते हुए ट्वीट किया कि मोदी ने इंदिरा गांधी के योगदान को स्वीकार किया है.

      I don't mind admitting when I'm wrong. Yesterday, on the basis of a quick reading of headlines &tweets, I tweeted "everyone knows who liberated Bangladesh," implying that @narendramodi had omitted to acknowledge IndiraGandhi. It turns out he did: https://t.co/YE5DMRzSB0 Sorry!

      — Shashi Tharoor (@ShashiTharoor) March 27, 2021


      Modi goes to Bangladesh & claims that he participated in Bangladesh's Freedom Struggle at the age of 20-21 & was even arrested 🙄

      Modi will soon claim he participated in WW 1, WW 2 & Battle of Plassey

      RT if you agree that Modi is the World's Biggest FEKUpic.twitter.com/QFkreN5EM3

      — Srivatsa (@srivatsayb) March 26, 2021

      पुरस्कार, पुस्तक पुष्टि करते हैं कि मोदी बांग्लादेश सत्याग्रह का हिस्सा थे- बीजेपी

      नरेंद्र मोदी के बयान पर उठाए गए सवालों के जवाब में, बीजेपी के कई सदस्यों ने जून 2015 में स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी को बांग्लादेश द्वारा दिए गए एक प्रशस्ति पत्र और पीएम मोदी द्वारा लिखी गई एक पुस्तक के बारे में ट्वीट किया, जिसमें कहा गया कि उन्होंने आंदोलन में भाग लेने पर तिहाड़ जेल में जाने के बारे में लिखा है.

      Was Prime Minister Modi part of satyagrah organised by Jana Sangha for recognition of Bangladesh?

      Yes, he was.

      A citation awarded by Bangladesh to Vajpayee ji speaks of the rally.

      PM Modi, in a book authored in 1978, also wrote about going to Tihar during Bangladesh satyagrah! https://t.co/nihrAIjjD7 pic.twitter.com/d0iTELWlpN

      — Amit Malviya (@amitmalviya) March 26, 2021

      क्या जनसंघ ने बांग्लादेश के लिए सत्याग्रह आयोजित किया था?

      हमने अटल बिहारी वाजपेयी को दिए गए प्रशस्ति पत्र की खोज की और पाया कि जून 2015 में, बांग्लादेश ने वाजपेयी को प्रतिष्ठित 'लिबरेशन वॉर ऑनर' से सम्मानित किया था. दिवंगत दिग्गज भाजपा नेता तब अस्वस्थ थे ऐसे में नरेंद्र मोदी ने इस कार्यक्रम में भाग लिया और वाजपेयी की ओर से प्रशस्ति पत्र प्राप्त किया.

      प्रशस्ति पत्र वाजपेयी को एक उच्च सम्मानित राजनीतिक नेता के रूप में सम्मानित करता है और 1971 में बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के समर्थन में उनकी सक्रिय भूमिका को स्वीकार करता है. इसमें यह भी उल्लेख है कि भारतीय जनता पार्टी के पुराने संस्करण जनसंघ ने 1 से 11 अगस्त के बीच सत्याग्रह किया था जो 12 अगस्त, 1971 को एक रैली के साथ संपन्न हुआ था. यह सत्याग्रह भारतीय संसद के सामने आयोजित हुआ था और इसमें कई समर्थकों ने भाग लिया था.

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      हमें भारत सरकार के विदेश मंत्रालय द्वारा पोस्ट किया गया प्रशस्ति पत्र मिला. नीचे पढ़ें.

      हमने 1971 के अख़बारों की ख़बरों के आर्काइव को देखा, जिसमें जनसंघ द्वारा आयोजित सत्याग्रह पर कई अख़बारों की रिपोर्ट मिली. द इकोनॉमिक टाइम्स द्वारा प्रकाशित और टाइम्स ऑफ इंडिया आर्काइव में उपलब्ध एक तस्वीर वाजपेयी को 1971 के अगस्त में एक रैली को संबोधित करते हुए दिखाती है, जिसमें भारत सरकार द्वारा बांग्लादेश को तत्काल मान्यता देने की मांग की गई थी. वाजपेयी तब जनसंघ के अध्यक्ष थे.

      यहां देखें.

      हमें वायर एजेंसी एसोसिएटेड प्रेस के आर्काइव में 2 अगस्त, 1971 और 12 अगस्त, 1971 से सत्याग्रह के दृश्य को दिखाते वीडियो फ़ुटेज भी मिले.


      इसके अतिरिक्त, द टाइम्स ऑफ इंडिया ने 12 अगस्त 1971 से एक आर्काइव प्रकाशित किया, जिसमें "बांग्लादेश सत्याग्रह को मान्यता दें" के आख़िरी दिन दस हजार जनसंघ के कार्यकर्ताओं की दिल्ली में गिरफ़्तारी की रिपोर्ट है.

      मीडिया रिपोर्ट्स और और विज़ुअल्स से पता चलता है कि बांग्लादेश की मान्यता के लिए जनसंघ द्वारा एक रैली आयोजित की गई थी. इसमें उसके हजारों स्वयंसेवकों और समर्थकों ने भाग लिया था. बूम स्वतंत्र रूप से सत्यापित नहीं कर सका कि पीएम मोदी उस का हिस्सा थे या नहीं.

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      बांग्लादेश मुक्ति आंदोलन में अपनी भागीदारी पर पीएम मोदी के पिछले संदर्भ

      यह पहला मौक़ा नहीं है जब पीएम मोदी ने कहा है कि उन्होंने बांग्लादेश को मान्यता दिलाने के लिए आंदोलन में भाग लिया है.

      भारत के प्रधानमंत्री के रूप में चुने जाने के एक साल बाद 2015 में मोदी ने जब अटल बिहारी वाजपेयी को दिए गए प्रशस्ति पत्र प्राप्त करने के लिए बांग्लादेश का दौरा किया, तो उन्होंने जनसंघ द्वारा बांग्लादेश के लिए आयोजित रैलियों के बारे में बात की, जो किसी भी तरह के आंदोलन में घर से बाहर उनकी पहली भागीदारी थी. इस समारोह में मोदी ने पुरस्कार स्वीकार करते हुए कहा कि उन्होंने अपने जीवन में देर से राजनीति में कदम रखा, तो एक युवा के रूप में वो कुछ छात्र गतिविधियों का हिस्सा थे.

      इस दौरान पीएम मोदी ने कहा था कि 1971 में बांग्लादेश सरकार की मान्यता के लिए वाजपेयी के आह्वान पर कई युवा कार्यकर्ता दिल्ली आए थे. "अपने जीवन में पहली बार मैंने गाँव छोड़ दिया और जनसंघ द्वारा बांग्लादेश की मान्यता के लिए सत्याग्रह में भाग लेने के लिए दिल्ली आया और मुझे सत्याग्रह करने का अवसर मिला और यह मेरी पहली राजनीतिक गतिविधि थी ..." पीएम मोदी को 16 मिनट के टाइमस्टैम्प पर सुना जा सकता है

      उन्होंने अगले दिन ढाका विश्वविद्यालय में छात्रों को संबोधित करते हुए उसी घटना को दोहराया.

      हमें आगे इकोनॉमिक टाइम्स में 2015 को प्रकाशित नीलांजन मुखोपाध्याय का एक लेख मिला, जिसमें बताया गया है कि कैसे नरेंद्र मोदी के आपातकाल विरोधी संघर्ष में भागीदारी ने राजनीति में उनके पहले कदम को चिह्नित किया है. मुखोपाध्याय जिन्होंने मोदी की जीवनी लिखी है, लिखते हैं, "आपातकाल विरोधी संघर्ष में भागीदारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राजनीतिक सीवी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था ..." इसके बाद वे इसका वर्णन करते हैं और तिहाड़ जेल मोदी के समय का ज़िक्र करते हैं. मुखोपाध्याय लिखते हैं, '' एक वयस्क के रूप में मोदी की पहली ज्ञात राजनीतिक गतिविधि 1971 में थी, जब वे अटल बिहारी वाजपेयी की अगुवाई में दिल्ली में जनसंघ के सत्याग्रह में शामिल हुए और युद्ध के मैदान में शामिल हुए. लेकिन सरकार ने मुक्ति बाहिनी को खुला समर्थन दिया और मोदी को थोड़े समय के लिए तिहाड़ जेल में रखा गया."

      बूम ने उस लेखक से बात की, जिसने लेख में दी गई जानकारी और अपनी पुस्तक में कहा है कि स्वयं मोदी द्वारा उन्हें प्रदान की गई. उन्होंने कहा, "... वे कोट्स हैं जो उन्हें एट्रिब्यूट किये गए हैं और ये चीजें हैं जो उन्होंने मुझे रिकॉर्ड पर बताई हैं."

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      क्या मोदी ने बंगलादेश सत्याग्रह आंदोलन में भाग लेने के लिए गिरफ़्तार होने के बारे में लिखा था?

      कई भाजपा नेताओं और कुछ पत्रकारों ने 1978 में मोदी द्वारा लिखित एक पुस्तक, 'संघर्ष मा गुजरात' (गुजरात परीक्षण की अवधि में) के कवर को ट्वीट किया. ट्वीट में पुस्तक के पीछे के कवर की एक तस्वीर थी और मोदी के बचपन, शिक्षा और जनसंघ और उसकी गतिविधियों में उनकी भूमिका को दर्शाता वर्णन था.

      उस विवरण में दूसरे आख़िरी पैराग्राफ़ की आख़िरी लाइन में कहा गया है, "अगौ बांग्लादेश सत्याग्रह सम तिहाड़ जेल जय अलेवा चे" जिसका अनुवाद है, "इससे पहले, वह बांग्लादेश सत्याग्रह के दौरान तिहाड़ जेल गए थे."

      बूम ने 'संघर्ष मा गुजरात' पुस्तक की खोज की और नरेंद्र मोदी की वेबसाइट पर उसी का एक पीडीएफ वर्ज़न पाया. पुस्तक का यह ई-संस्करण इस पुस्तक का तीसरा प्रिंट है, जिसे सितंबर 2020 में प्रकाशित किया गया है और इसमें वैसा बैक कवर या ब्लर्ब नहीं है जैसा कि शेयर किए जा रहे ट्वीट्स में है.

      हमने पुस्तक के ई-संस्करण को पढ़ा. हमें किसी भी अध्याय में बांग्लादेश का कोई उल्लेख नहीं मिला. पुस्तक उन घटनाओं के बारे में प्रमुख रूप से बताती है, जिनके माध्यम से जनसंघ ने 1975-77 के बीच आपातकाल की लड़ाई लड़ी थी.

      हमने गुजरात स्थित पत्रकार दीपल त्रिवेदी से भी बात की जिन्होंने पुस्तक के बारे में अहमदाबाद मिरर में प्रकाशित एक लेख लिखा है. त्रिवेदी ने बूम को बताया कि सं'घर्ष मा गुजरात' ने मोदी के बांग्लादेश मुक्ति या उसकी सरकार की मान्यता के लिए आंदोलन में भाग लेने के बारे में कुछ भी उल्लेख नहीं किया है.

      यह स्पष्ट नहीं है कि पुस्तक के पिछले संस्करणों में सत्याग्रह का कोई संदर्भ था.

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