Operation Blue Freedom: 8 दिव्यांगजनों के बुलंद हौसलों की उड़ान
भारतीय सेना की मदद से 8 दिव्यांग ट्रेकर्स के एक दल ने 15000 फ़ीट ऊँची ‘कुमार पोस्ट’ पर पहुँचकर वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया. आइये आपको बताते हैं Team CLAW और Operation Blue Freedom की पूरी कहानी.
मुहम्मद इक़बाल (अल्लामा इक़बाल) की ये पंक्तियाँ आपने शायद सुनी होंगी 'तू शाहीं है परवाज़ है काम तेरा, तिरे सामने आसमाँ और भी हैं'. आइये आपकी मुलाक़ात आज कुछ ऐसे लोगों से करवाते हैं जिनके परवाज़ (उड़ान) के आगे आसमान भी शायद कम पड़ जाये.
Operation Blue Freedom
सियाचिन ग्लेशियर (Siachen Gllacier) का नाम ही कंपकंपी छुड़ा देने के लिए काफ़ी है. तमाम फ़िल्मों और डाक्यूमेंट्री में आप इस क्षेत्र की कठिन परिस्थितियों के बारे में देख और सुन चुके होंगे.
इसी सियाचिन पर्वत की लगभग 15632 फ़ीट ऊँची बर्फीली चोटी को फ़तेह करने के मिशन का नाम है Operation Blue Freedom और इसे सच कर दिखाया 8 दिव्यांगजनों की एक ट्रेकिंग टीम ने. इसके साथ इस टीम ने एक World Record बना दिया है.
दिव्यांगों की ये टीम दुनिया की पहली ऐसी टीम है जिसने शारीरिक चुनौतियों के बावजूद इतनी कठिन परिस्थितियों में ऐसा रिकॉर्ड बनाया है. इस मिशन की शुरुआत 15 अगस्त 2021 को दिल्ली से हुई थी, मौका था भारत का 75th Independence Day.
यह अभियान सियाचिन बेस कैंप से शुरू होकर 'कुमार पोस्ट' पर समाप्त होना था. इस पूरे मिशन में Team CLAW - भारतीय सेनाओं के दिग्गजों (veterans) की टोली - की ट्रेनिंग ने Operation Blue Freedom को शानदार कामयाबी दिलवाई. Team CLAW (Conquer Land Air Water) की स्थापना 2020 में सेना के एक दिव्यांग विशेष बल के मेजर विवेक जैकब ने की थी. यह संगठन विशेष बलों के दिव्यांग जवानों के पुनर्वास पर शोध कर रहा है.
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Operation Blue Freedom की तैयारी
इस वर्ल्ड रिकॉर्ड की कहानी शुरू होती है Team CLAW से. इस संगठन के को-फाउंडर और डायरेक्टर Arun Prakash से बूम ने बात की. Arun ने बताया कि CLAW देश दुनिया के दिव्यांग लोगों को उनके आत्मविश्वास की मदद से एक नया मुक़ाम देना चाहता है. और ठीक इसीलिए इस मिशन का प्लान किया गया था.
उन्होंने कहा कि हमने तय किया था कि दुनिया के सबसे कठिन युद्धक्षेत्र सियाचिन की चोटी को पार कर दिव्यांगजन ये साबित कर देंगे कि हौसला हो तो हर कठिन चढ़ाई को आसानी से पार किया जा सकता है.
अरुण ने बताया कि एक ओपन साइन अप फ़ॉर्म के तहत देश भर के दिव्यांग लोगों से आवेदन मंगाए गये थे जो इस मिशन में जाने के इच्छुक थे. इसके बाद कोई चरणों के मेडिकल और फ़िज़िकल टेस्ट के बाद अंत में 8 लोग इस मिशन के आख़िरी स्टेज तक पहुँचे जिन्हें Leh से आगे की चढ़ाई करनी थी. मिशन में शामिल ये 8 लोग हैं Mahesh Nehra, Akshat Rawat, Major Dwarakesh, Irfan Ahmad Mir, Pushpak Gawande, Havaldar Ajay Kumar, Lobzang chospel और Chhonzim Angmo.
Operation Blue Freedom की शुरुआत
5 दिन में लगभग 60 किलोमीटर का सफ़र तय किया गया था. 7 सितंबर को मिशन की शुरुआत हुई जिसमें सिलसिलेवार 12,15 और 16 किलोमीटर का सफ़र एक-एक दिन में तय करना होता था. 11 सितंबर को टीम मिशन पूरा कर चोटी पर पहुँच चुकी थी.
वरुण का कहना था कि पूरे मिशन का सिर्फ़ एक ही लक्ष्य था कि दिव्यांग लोगों की समाज में जो छवि है उसे बदला जाये, लोगों को ये पता चलना चाहिये कि आत्मविश्वास और सही मार्गदर्शन से किसी भी ऊँचाई को छुआ जा सकता है.
इस पूरे मिशन में भारतीय सेना का योगदान बहुत महत्वपूर्ण था. अरुण कहते हैं कि इंडियन आर्मी (Indian Army) ने सियाचिन के अपने सारे संसाधन उन्हें प्रयोग करने के लिये दिये थे. सियाचिन में आर्मी ट्रेनिंग स्कूल के अलावा बेस कैम्प में मौजूद सारी सुविधायें आर्मी की तरफ़ से मुहैया कराई गई थीं.
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पूरे trek के दौरान भारतीय सेना के दो गाइड और एक डॉक्टर, टीम के साथ ही मौजूद रहे. ज्ञात हो कि अक्टूबर 2019 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी घोषणा की थी कि सियाचिन बेस कैंप से कुमार पोस्ट तक पर्यटकों के ट्रैकिंग के लिए खोल दी जाएगी. इसीलिये भारतीय सेना भी इस मिशन को सफ़ल बनाकर एक संदेश देना चाहती थी.
8 सदस्य दल की अकेली महिला Chhonzin Angmo की कहानी
"मैं हमेशा से चाहता थी कि मैं कुछ ऐसा करूँ जिससे मेरे जैसे बाक़ी दृष्टिबाधित लोगों में भी हिम्मत आये कि हम किसी से कमज़ोर नहीं हैं. हम अगर आत्मविश्वास के साथ कुछ करने की ज़िद ठान लें तो हमारे सपने सच हो सकते हैं," 26 साल की Chhonzin Angmo ने बूम को बताया.
Angmo 8 सदस्यीय इस पर्वतारोही दल की अकेली महिला सदस्य थीं जिन्होने दृष्टिबाधित होते हुए भी अपने आत्मविश्वास और अद्भुत साहस के दम पर देखे गए सपने को पूरा कर के एक विश्व रिकॉर्ड बना दिया.
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर की रहने वाली Angmo कहती हैं कि 8 साल की उम्र में किसी मेडिकल रिएक्शन की वजह से उनकी आँख ख़राब हो गई. उनके पिता किसान हैं जिन्होंने कभी भी अपनी बेटी की पढ़ाई लिखाई या अन्य खेलकूद और गतिविधियों में कोई कसर नहीं छोड़ी. Angmo ने बताया कि दिल्ली विश्वविद्यालय के मिरांडा हाउस (Miranda House) से ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर वो फ़िलहाल एक बैंक में जॉब कर रही थीं. कुछ अलग करने की ज़िद में Angmo हमेशा ही उत्साही रहती थीं.
उन्होंने बताया कि उन्हें सोशल मीडिया के ज़रिये CLAW की इस योजना का पता चला और उन्होंने इसमें अप्लाई कर दिया. इसके बाद सेलेक्ट होने के लिये जितने भी मापदंड रखे गये थे वो एक एक करके सबको पास करती गईं और अंत में उस टीम का हिस्सा भी बनीं जिसने इतिहास रच दिया. Angmo का कहना है कि अब उनका सपना एवरेस्ट फ़तह करने का है.
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मिशन के दौरान अपने सफ़र की कठिनाइयों के बारे में Angmo ने बताया कि ग्लेशियर को स्केल करते हुए, टीम धीरे-धीरे 4,000 फीट ऊपर चढ़ गई. इस मार्ग में कई गहरी दरारों, बर्फीले हिमनदों की जलधाराओं, कठोर बर्फ के हिस्सों और लहरदार चट्टानी मोराइनों को पार करना भी शामिल था.
"इसने न केवल हमारी शारीरिक सहनशक्ति और मानसिक सहनशक्ति का परीक्षण किया, बल्कि टीम के बर्फ़ से निपटने के कौशल का भी परीक्षण किया," Angmo ने बूम को बताया. CLAW के 4 प्रशिक्षक और भारतीय सेना के 3 गाइड पूरे सफ़र भर उनके साथ रहे जिससे हर तरह की सुविधा उन्हे मिलती रही.
Operation Blue Freedom की इस कामयाबी का ज़िक्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 26 सितम्बर को अपने 'मन की बात' में भी की. प्रधानमंत्री कार्यालय के ऑफ़िशियल ट्विटर हैंडल @PMOIndia से किये गए 26 सितम्बर के एक ट्वीट में इन सभी जांबाज़ों की सराहना भी की गयी.
नहीं, वायरल तस्वीर अयोध्या में नवनिर्मित रेलवे स्टेशन की नहीं है