मुस्लिम समेत कई लोगों द्वारा सोशल मीडिया पर लैंगिक समानता कार्यकर्ता तृप्ति देसाई का एक वीडियो साझा किया जा रहा है। इस वीडियो का कैप्शन भ्रमक है। ऐसा कहा जा रहा है कि केरल के सबरीमाला अयप्पा मंदिर में मासिक धर्म की आयु वर्ग की महिलाओं के प्रवेश वर्जित होने की सदियों पुरानी परंपरा को तोड़ने के लिए दायर की गई याचिका के पीछे मुस्लिम थे। 2 मिनट और 18 सेकंड के इस वीडियो क्लिप में देसाई को 28 सिंतबर 2018 को, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ घंटे बाद, कुछ लोगों से मिलते हुए दिखाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 4:1 बहुमत के अपने फैसले में सबरीमाला में हर आयु की महिलाओं के प्रवेश की अनुमति दी है। इस वीडियो को व्हाट्सएप और फेसबुक पर दुर्भावनापूर्ण कैप्शन के साथ साझा किया जा रहा है जो इस बात की ओर इशारा करता है कि मुसलमान सबरीमाला मामले में देसाई का समर्थन कर रहे थे।
लेकिन बूम ने पाया कि 2006 में यंग इंडियन लॉयर्स एसोसिएशन के महासचिव भक्ति पसरिजा के नेतृत्व में एसोसिएशन ने प्राचीन पाबंदी को चुनौती देते हुए जनहित वाद दायर की थी। टिप्पणी के लिए पसरीजा तक तुरंत पहुंचा नहीं जा सका है। (निर्णय पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
जबकि तृप्ति देसाई धार्मिक स्थानों में लिंग समानता के लिए बढ़ते अभियान की लड़ाई का चेहरा बनी और और धार्मिक नेताओं और महिलाओं से हिंसा और दुर्व्यवहार का सामना किया है, लेकिन उन्होंने कभी भी अदालतों से संपर्क नहीं किया है और न ही इसके लिए याचिका दायर की है।
Full View Full View तृप्ति देसाई पुणे स्थित सामाजिक न्याय संगठन भुमाता ब्रिगेड की संस्थापक हैं, और महिलाओं को पूजा के स्थानों में प्रवेश करने की लड़ाई में आगे आई कुछ महिलाओं में से एक रही है। उन्होंने 2016 में, शनि शिंगणापुर में महिलाओं के एक समूह की अगुवाई के लिए काफी प्रसिद्धि पाई। महाराष्ट्र में यह धार्मिक मंदिर हिंदू भगवान शनि को समर्पित है, जो महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाता है। इसके बाद उन्होंने नासिक में त्रंबकेश्वर मंदिर के अभयारण्य में प्रवेश किया और फिर मुंबई में हाजी अली दरगाह का दौरा किया। वीडियो में लोगों की पहचान को स्पष्ट करने के लिए बूम ने देसाई से भी संपर्क किया। देसाई ने कहा कि तीन धर्मों ( हिंदू धर्म, इस्लाम और ईसाई धर्म ) के संगठन सबरीमाला के फैसले के बाद उनके पास आए थे। बूम से बात करते हुए देसाई ने कहा, "सबरीमाला के फैसले के बाद कई स्थानीय समाचार चैनल और संगठन आए और मुझे बधाई दी। जबकि मैं याचिकाकर्ता नहीं रही हूं, लेकिन इन मुद्दों के बारे में मुखर होने और मंदिरों में प्रवेश करने जैसी कार्रवाई करके मनोदशा बदलने में कई समूहों ने मेरी मदद की है। " उन्होंने कहा कि गोवा और महाराष्ट्र के ईसाई संगठन भी उनके पास आए थे। उन्होंने बताया, “वीडियो में दिखाए गए सूमह में संगिता पप्पानी हैं। संगीता ईसाई हैं जो पुणे में अल्पसंख्यक ईसाइयों के उत्थान के लिए काम करती है। मनीषा तिलकर एक हिंदू और भुमाता ब्रिगेड की एक सदस्य हैं और चंद्रकांता कुडलकर जो सभी धर्मों से महिलाओं के साथ काम करती है। समूह में रिपब्लिकन सेना के सदस्य भी शामिल हैं जो अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए काम करता है। उसी दिन,सभी धर्मों के लिए काम करने वाले, एक मुस्लिम समूह ज़मज़म-ए-ख़िदमत के सदस्यों ने भी मुझसे मुलाकात की और मुझे बधाई दी।” बूम उसी ही दिन की अन्य तस्वीरें और एक और वीडियो तक पहुंचने में सक्षम था, जिसमें देसाई के पास एक-एक करके विभिन्न धर्मों के सदस्यों को दिखाया गया था और उन्हें फूल, मिठाई और माला के साथ सम्मानित किया गया था।
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