हम्पी की धरोहर स्थल पर तीन व्यक्तियों द्वारा तोड़फोड़ करने का वीडियो फैलने के एक सप्ताह बाद स्थानीय पुलिस ने चार लोगों को गिरफ्तार किया है। जबकि सोशल मीडिया पर किये गए पोस्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि वीडियो में देखे गए लोग मुस्लिम थे, लेकिन हम्पी पुलिस ने इसका खंडन किया है और लोगों से अफवाह न फैलाने की अपील की है ।
वीडियो में तीन युवकों को एक खंभे को धक्का देते हुए देखा जा सकता है जो इसके गिरने और टूटने का कारण बताया जा सकता है। यह वीडियो पिछले हफ्ते वायरल हो गया था।
सोलवीं शताब्दी के मंदिरों और खंडहरों के लिए जाना जाने वाला, हम्पी एक यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है। दुनिया भर के पर्यटकों के लिए यह एक लोकप्रिय स्थान है।
इस क्लिप को इंस्टाग्राम पर आयुष साहू द्वारा अपलोड किया गया था और बाद में फ़ेसबुक और ट्विटर पर वायरल कर दिया गया। लोगों ने इस संबंध में कर्नाटक सरकार और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण से भी सवाल किये थे। साहू का खाता अब इंस्टाग्राम से हटा दिया गया है।
हालांकि, पिछले हफ्ते तक अपराधियों की पहचान काफी हद तक रहस्य बनी रही लेकिन बाद में फ़ेसबुक पर कुछ पोस्ट में कहा गया है कि अपराधी मुस्लिम थे।
बूम ने हम्पी पुलिस से संपर्क किया, जिन्होंने इस तरह की पोस्टों को खारिज किया और कहा कि गिरफ्तार किए गए लोग हिंदू हैं और इसमें कोई सांप्रदायिक कोण नहीं है।
बूम से बात करते हुए, बल्लारी जिले के पुलिस अधीक्षक, अरुण रंगराजन ने कहा कि पकड़े गए युवक आयुष साहू हैं जो मध्य प्रदेश के निवासी हैं और अन्य तीन बिहार के हैं- राज आरए, राजा बाबू चौधरी और राजेश चौधरी।
रंगराजन ने कहा, “साहू बेंगलुरु में एक डिजिटल फर्म के लिए काम करते है और उन्होंने यह वीडियो शूट किया है। इसे इंस्टाग्राम अकाउंट पर अपलोड किया था । राज बाबू हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) में दैनिक वेतन भोगी कर्मचारी हैं और बेंगलुरु में अध्ययनरत एक इंजीनियरिंग छात्र भी ।”
उन्होंने आगे कहा कि युवकों का दावा है कि वे रेलवे भर्ती परीक्षा में शामिल होने के लिए बल्लारी में थे और परीक्षा के बाद हम्पी जाने का फैसला किया था ।
यह पूछे जाने पर कि युवाओं ने खंभे को नीचे धकेलकर स्थल को क्यों गिराया, रंगराजन ने कहा, "युवाओं का दावा है कि वे इस बात से अनजान थे कि यह एक विरासत संरचना थी। इस घटना का कोई सांप्रदायिक कोण नहीं है और दावा करने वाले सभी पोस्ट गलत और भ्रामक हैं।”
हालाँकि, यह स्पष्ट नहीं है कि तोड़फोड़ कब हुई है, जैसा कि एएसआई और पुलिस की समयरेखा के संबंध में बयान भिन्न है। रंगराजन ने कहा कि जबकि एएसआई का कहना है कि वीडियो कम से कम एक साल पुराना है, वहीं पुलिस द्वारा तथ्य-खोज और युवाओं के बयान एएसआई के निष्कर्षों के विपरीत हैं। युवाओं ने कहा है कि वे इस साल हम्पी में थे, लेकिन एएसआई के निष्कर्ष बताते हैं कि वीडियो एक साल पुराना है। घटना कब हुई, इस मामले की अभी भी जांच की जा रही है।