14 अप्रैल, 2020 की शाम को मुंबई के बांद्रा (वेस्ट) स्टेशन के बाहर लोगों की जमा होती भीड़ के कई वीडियोज़ अब सोशल मीडिया पर आने लगे हैं । यह भीड़ आस पास रहने वाले मज़दूरों की थी जो लॉकडाउन का उल्लंघन करके स्टेशन के बाहर विरोध कर रहे थे । इस घटना को सोशल मीडिया पर अब साम्प्रदायिक रूप देकर वायरल किया जा रहा है। कई न्यूज़ चैनल्स, खासकर रिपब्लिक टीवी, न्यूज़ नेशन और इंडिया टीवी के एडिटर-इन-चीफ़ रजत शर्मा ने यह खबर ये कह कर शेयर की कि ये भीड़ एक मस्जिद के सामने इकठ्ठा हुई थी |
बूम ने घटनास्थल पर मौजूद पुलिस एवं पत्रकारों से सम्पर्क करके पता लगाया की यह भीड़ कई सारी अफ़वाहों के कारण वहाँ जमा हुई थी । आस पास रहने वाले मुसलमान बस्तियों के लोग जब इस भीड़ में शामिल हो गएँ तो ये और विशाल हो गयी।
यह वीडियो और ज़्यादा वायरल इसलिए हुए क्यूँकि यह घटना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के घोषणा के बाद हुई । इस घोषणा में उन्होंने 14 अप्रैल को ख़त्म होने वाले 21 दिन के लॉकडाउन को 3 मई, 2020 तक बढ़ाये जाने कि बात कही थी |
इससे जुड़ी कई तस्वीरों व वीडियो में भीड़ पास के मस्जिद के आसपास इकट्ठा होती दिखायी देती है। ट्विटर पर कई लोगों ने इन्हीं तस्वीरों व वीडियो को साम्प्रदायिक रूप देकर वायरल करना शुरू कर दिया । जबकि कई मुख्यधारा के न्यूज़ आउटलेट्स ने इसकी रिपोर्टिंग में धार्मिकता की चर्चा कहीं नहीं की, कई ट्वीट्स सामने आए जिनमें कहा जा रहा था की स्थानीय मुसलमान महाराष्ट्र में COVID-19 के फ़ैलाव को रोकने के प्रयासों को जानबूझ कर विफ़ल करने के लिए लॉकडाउन का उल्लंघन कर रहे थे ।
Wow. Thousands of ambassadors of peace doing this at #Bandra right now. Well done @OfficeofUT, well done. The world should see this.#Covid_19 #COVIDIOTSpic.twitter.com/SdinaZXm39
— Abhijit Majumder (@abhijitmajumder) April 14, 2020
Another #TablighiJamatVirus moment. This time in Bandra, right in the backyard of the Best CM In The World, @OfficeofUT pic.twitter.com/vEYEPLPjok
— Shefali Vaidya. (@ShefVaidya) April 14, 2020
Why is the appeal in the name of Allah? Migrant Labourers are from pan India and pan religious background.... Pls note yesterday #KavitaKrishnan yesterday tried to peddle a fake story of a hungry woman.... Today this concerted effort to sabotage lockdown. What is happening?
— Ashoke Pandit (@ashokepandit) April 14, 2020
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बांद्रा में जामा मस्जिद के बाहर इतनी बड़ी संख्या में लोगों का इकट्ठा चिंता की बात है. इन्हें किसने बुलाया? अगर ये लोग घर वापस जाने के लिए ट्रेन पकड़ने के लिए आए थे तो उनके हाथों में सामान क्यों नहीं था?
— Rajat Sharma (@RajatSharmaLive) April 14, 2020
बूम द्वारा ज़ोनल डीसीपी अभिषेक त्रीमुखे से सम्पर्क करने पर पता चला की भीड़ ज़्यादातर पास के पटेल नगर में रहने वाले मज़दूरों की थी । उन्होंने हमें बताया: "मज़दूर जिस क्षेत्र में रहते हैं, वहाँ दो अफ़वाहें फ़ैलाईं गयी थी जिसके कारण भीड़ जुट गयी । एक तो ये की ट्रेन सुविधा फिर से शुरू कर दी गयीं हैं जो उन्हें उनके घर ले जाएगी और दूसरी की मुफ़्त मे खाना बाटा जा रहा है।" त्रिमुखे ने बताया की डिपार्टमेंट अफ़वाह फ़ैलाने वाले को ढूँढने का पूरा प्रयास कर रही है । उनके मुताबिक़, "3-3.30 बजे के आसपास मज़दूरों की भीड़ स्टेशन के बाहर जमा होने लगी। वे सभी लॉकडाउन का उल्लंघन करके वहाँ, अपने अपने घर जाने के लिए आए थे क्यूँकि उन्हें पता चला था की ट्रेन शुरू कर दी गयी हैं । किंतु जब पुलिस ने उन्हें अंदर जाने से रोका तब उन्होंने विरोध करना शुरू कर दिया ।"
मुंबई पुलिस के प्रवक्ता ने भी इस घटना की एक वीडियो क्लिप ट्विटर पे शेयर की ।
बांद्रा में जो कुछ हुआ उसमें हिन्दू मुस्लिम का कोई एंगल नहीं है 🙏🏼
— sohit mishra (@sohitmishra99) April 14, 2020
सभी मजदूर एक इलाके के थे, करीब 3:30 बजे इकट्ठा होकर गाँव जाने की मांग करने लगे, पुलिस ने समझाने की कोशिश की, नहीं माने, लाठीचार्ज करना पड़ा। इसमें किसी एक धर्म का कोई लेना देना नहीं और अब सभी चले गए हैं #Bandra pic.twitter.com/cnqDouHqAW
एक प्रमुख समाचारपत्र के स्थानीय रिपोर्टर ने घटनाक्रम की पुष्टि करते हुए कहा "मैंने वहाँ पहुँचते ही देखा की पुलिस और स्थानीय समुदाय के नेता स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे थे। भीड़ के कुछ सदस्यों से बात करके मुझे पता चला की उन्हें बताया गया था कि ट्रेनें फिर से काम कर रही हैं और इसलिए वे अपने गाँव जाने के लिए वहाँ पहुंचे थे। उन्हें यह भी बताया गया था कि उन्हें मुफ्त खाना मिल रहा है और चूँकि उनके पास किराने के सामान के पैसे नहीं थे, उन्होंने सोचा कि वे आकर इसे इकट्ठा कर सकते हैं ।"
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बूम ने इन दोनो अफ़वाहों की पुष्टि मुंबई पुलिस के एक वरिष्ठ कर्मचारी से की जिन्होंने हमें बताया की भीड़ प्रवासी मज़दूरों की थी जो सिर्फ़ अपने घरों को लौटने के इछुक थे। "इनमें से ज़्यादातर मज़दूर पास के स्थानीय यूनिट्स में ज़री व कढ़ाई का काम करते हैं और छोटे छोटे कमरों में रहते हैं। लॉकडाउन के बढ़ने की घोषणा पर वे अपनी रोज़ी रोटी की चिंता में पड़ गए । इनसे किसी ने कहा कि ट्रेनें चल पड़ी हैं और यह सुनकर वे सभी घर जाने के लिए स्टेशन आ गए। परंतु उसके पश्चात उन्होंने इस बात की माँग करनी शुरू की के हम किसी प्रकार से उनके घर जाने का इंतेज़ाम कर दे।"
स्टेशन पर तैनात एक पुलिस कर्मचारी ने हमें बताया की पुलिस ने भीड़ के लिए खाने का इंतेज़ाम भी किया पर भीड़ वापिस नहीं लौटी । "भीड़ ने हमसे कहा की वे सभी ये सुन कर आये थे कि वहाँ खाना भी बाँट रहा है, इसीलिए हमने उन सब के किए खाने का इंतज़ाम किया ताकि वे सब लौट जाए। किंतु उनमें से कइयों ने खाना लेने से मना कर दिया और हमसे उन्हें किसी तरह अपने घर पहुँचाने की माँग की। यह सब यहाँ अकेले रहते हैं और इनका परिवार गाँव में रहता है। लॉकडाउन बढ़ने पर यह सब अपने घर लौटने के लिए उतावाले हो रहे थे," पुलिसकर्मी ने बूम को बताया |
परिस्थती बेक़ाबू होने पर पुलिस को लाठीचार्ज भी करना पड़ा।
फ़्री प्रेस जर्नल की एक रिपोर्टर प्रियंका नवलकर ने कहा की वहाँ मौजूद पुलिस ने पता लगाया की भीड़ अफ़वाहों के कारण जमा हुई है। "वहाँ मौजूद मेरे एक सूत्र ने लोगों से बात करके पता लगाया की पास में रहने वाले मज़दूरों ने स्टेशन के बाहर इकट्ठा होने का निर्णय लिया क्यूँकि उन्हें लगा ट्रेनें शुरू कर दी गयी हैं," प्रियंका ने हमें बताया।
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बूम ने इस घटना को साम्प्रदायिकता के नाम पर साझा करने वाले ट्वीट्स से मिले तस्वीरों व वीडियो का विश्लेषण किया। इनके मुतबिक भीड़ पास के मस्जिद के आसपास जमा हुई थी। हमें पता चला की वीडियो में दिखाई देता मस्जिद सुन्नी जामा मस्जिद है जो की बांद्रा स्टेशन से एक मिनट से भी कम के अंतर पर है। गूगल मैप्स के प्रयोग से हमने स्टेशन व मस्जिद के अंतर को माप कर पता किया की मस्जिद स्टेशन के बग़ल में स्थित है।
बूम ने विकास पांडे द्वारा ट्वीट किया हुआ वीडियो भी देखा। पांडे कई मोदी समर्थक पेजेज़ को सोशल मीडिया पर चलाते हैं। इस वीडियो में एक व्यक्ति भीड़ से कहता सुनायी देता है "तुम सब क्या कर रहे हो, मैं समझ रहा हूँ | मैं समझता हूं कि परेशानी और कठिनाई है। हम सब खुदाई लोग हैं और अगर आपको विश्वास है तो ये (कठिनाइयाँ) अल्लाह की तरफ़ से हैं और जो कहते हैं कि ये अल्लाह कि मर्ज़ी नहीं है, उन्हें उस पर विश्वास नहीं है |" इस पर भीड़ में से एक व्यक्ति कहता है "अल्लाह की तरफ़ से नहीं मोदी की तरफ़ से हैं।" माइक्रोफ़ोन पकड़े हुए व्यक्ति कि दोबारा आवाज़ आती है, "अगर अल्लाह यही चाहता है तो हम क्या कर सकते हैं ? हम थोड़ी परेशानी झेलते हैं। मुझे पता है कि माता-पिता वहां हैं और बच्चे वहां हैं लेकिन पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है। (स्थिति को देखते हुए) हमें मस्जिद, चर्च, मक्का को बंद करना पड़ा है। इस साल कोई हज नहीं होगा, क्या यह एक बड़ी बात नहीं है?"
मुंबई के बांद्रा स्टेशन पर लॉकडाउन का उल्लंघन करते मज़दूरों के वीडियोज़ साम्प्रदायिक रंग देकर किये गए वायरल
Why is unruly crowd in Bandra being addressed in the name of Allah???
— Vikas Pandey (@MODIfiedVikas) April 14, 2020
#MumbaiLockdown
pic.twitter.com/wdZMZ6lqHE
एक लोकल रिपोर्टर से बात करने पर पता चला की माईक्रोफ़ोन में बात करता हुआ आदमी वहाँ का स्थानीय है और वह परिस्थिति को नियंत्रित करने में पुलिस की सहायता कर रहा था। हमने हिंदुस्तान टाइम्ज़, इंडीयन इक्स्प्रेस जैसे समाचार पत्रों की रिपोर्ट्स भी पढ़ीं किंतु कहीं भी साम्प्रदायिकता का मोड़ नहीं पाया । बूम ने मुंबई पुलिस कर्मचारियों से ट्विटर पर चल रहे इन झूठे दावों के विषय में भी पूछा। एक वरिष्ठ कर्मचारी ने कहा की "वह मस्जिद हमेशा से वहीं पर है। उसका इस भीड़ से कोई लेना देना नहीं है। ऐसी स्थितियों में हम धार्मिकता नहीं देखते।"
डीसीपी प्रणय अशोक ने कहा की: मैं सभी लोगों से ऐसी बातें ना फ़ैलाने का अनुरोध करता हूँ। ऐसी टिप्पणियां कानूनी छानबीन की उत्तरदायि होंगी।