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63 भारतीयों के पास हैं 2018 के केंद्रीय बजट से ज्यादा रकम - ऑक्सफैम

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि दुनिया भर में शोषित महिलाओं और लड़कियों की कीमत पर कैसे लोगों के भाग्य बने हैं

By - Archis Chowdhury | 21 Jan 2020 7:49 PM IST

63 भारतीयों के पास हैं 2018 के केंद्रीय बजट से ज्यादा रकम - ऑक्सफैम

हाल में ऑक्सफैम के एक अध्ययन के अनुसार, भारत के 63 अरबपतियों के पास वित्त वर्ष 18-19 के लिए पूरे केंद्रीय बजट से अधिक संपत्ति है। हम बता दें कि वर्ष 18-19 के लिए कुल बजट 24,42,200 करोड़ रुपये था। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में 70 फीसदी आबादी ( 953 मिलियन लोग ) के पास जितना कुल धन है, उसका चार गुना धन केवल एक फीसदी भारतीय अमीरों के पास है।

ऑक्सफैम द्वारा "टाइम टू केयर" अध्ययन में विश्व आर्थिक मंच (डब्लूईएफ) की 50 वीं वार्षिक बैठक से ठीक पहले, दुनिया भर में असमानताओं के बारे में कुछ स्पष्ट विचार किए गए है। इसमें यह भी बताया गया है कि कैसे अमीर कुलीन ने शोषित महिलाओं और लड़कियों को ताक पर रख किस्मत बनाई है।

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अमीर और गरीब के बीच

मुंबई 2015 (श्रोत: शटरस्टॉक)

रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के 2,153 अरबपतियों के पास ग्रह की पूरी आबादी का निचला 60% बनाने वाले, 4.6 बिलियन लोगों की तुलना में अधिक संपत्ति है।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि 15 वर्ष और उससे अधिक उम्र की महिलाओं का दुनिया भर में अवैतनिक देखभाल कार्य मौद्रिक मूल्य में कम से कम $ 10.8 ट्रिलियन था, जो दुनिया के तकनिकी उद्योग के आकार का तीन गुना है।

"हमारी टूटी हुई अर्थव्यवस्थाएँ, सामान्य पुरुषों और महिलाओं की कीमत पर अरबपतियों और बड़े कारोबारियों की जेबें भर रही हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग सवाल करने लगे हैं कि क्या अरबपतियों का अस्तित्व भी होना चाहिए।" - अमिताभ बेहार, सीईओ, ऑक्सफैम इंडिया

ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहार, जो दावोस में वर्तमान में कंफेडेरशन का प्रतिनिधित्व करने के लिए मौजूद हैं, कहते हैं, "हमारी टूटी हुई अर्थव्यवस्थाएँ, सामान्य पुरुषों और महिलाओं की कीमत पर अरबपतियों और बड़े कारोबारियों की जेबें भर रही हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि लोग सवाल करने लगे हैं कि क्या अरबपतियों का अस्तित्व भी होना चाहिए।"

स्विट्जरलैंड के दावोस में 5 दिवसीय शिखर सम्मेलन के दौरान 21 जनवरी से शुरू होने वाली आगामी डब्लूईएफ वार्षिक बैठक में असमानता के विषय को सामने लाने की उम्मीद है। 2018 में, भारत को ऑक्सफैम के विश्व असमानता सूचकांक में 147 वें स्थान पर रखा गया था। इस सूचकांक में परिसंघ द्वारा 157 देशों का विश्लेषण किया गया था।

बेहार ने कहा, "महिलाएं और लड़कियां उन लोगों में से हैं जो आज की आर्थिक व्यवस्था से कम से कम लाभान्वित हैं। वे अरबों घंटे खाना पकाने, सफाई और बच्चों- बुजुर्गों की देखभाल में बिताती हैं। अवैतनिक देखभाल कार्य 'छिपा हुआ इंजन' है जो हमारी अर्थव्यवस्थाओं, व्यवसायों और समाजों के पहियों को गतिमान रखता है। यह उन महिलाओं द्वारा संचालित होता है जिनके पास अक्सर शिक्षा प्राप्त करने के लिए बहुत कम समय होता है, एक सामान्य जीवन यापन करती है या समाज में कुछ कह पाती हैं, इसे तय करने में कम हिस्सेदारी होती है, वह अर्थव्यवस्था के निचले भाग में फंसी हुई हैं।"

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सेक्सिस्ट आर्थिक विकास


गुजरात, भारत - जून, 2015: एक आदिवासी गांव में लड़की सर्वे करती हुई (श्रोत: शटरस्टॉक)

हालिया रिपोर्ट में अक्सर महिला घरेलू कामगारों के मामले सामने आते हैं - जो कई भारतीय घरों में सर्वव्यापी हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, इस तरह के एक कार्यकर्ता को एक तकनिकी कंपनी के सीईओ की वार्षिक कमाई का मिलान करने में 22,277 साल लगेंगे। एक सामान्य घरेलू महिला की वार्षिक कमाई, सीईओ द्वारा 10 मिनट में अर्जित की जाती है।

इसके अलावा, यह देखा गया कि महिलाएं और लड़कियां 3.26 बिलियन घंटे अवैतनिक देखभाल के काम में लगाती हैं - जो सालाना कम से कम 19 लाख करोड़ का योगदान हैं।

यह राशि भारत के 2019 शिक्षा बजट का 20 गुना है जो 93,000 करोड़ रुपये था।

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रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि दुनिया भर की सरकारें सबसे धनी व्यक्तियों और निगमों पर कम कर लगा रही हैं। यह महत्वपूर्ण सार्वजनिक सेवाओं और बुनियादी ढांचे में काम पैसों के आने से जुड़ा हुआ है जो महिलाओं और लड़कियों के लिए काम का बोझ कम करने में मदद कर सकता है।

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