सोशल मीडिया पर एक दावा खूब वायरल है जिसमें कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया है कि अब से ब्राह्मणों के खिलाफ़ अपशब्द बोलने पर एट्रोसिटी एक्ट लागू होगा. दावे में आगे कहा जा रहा है कि एडवोकेट मुकेश भट्ट की पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने मान्यता दी है.
बूम ने पाया कि वायरल दावा फ़र्ज़ी है. बूम को इस संबंध में कोई प्रमाण नहीं मिला.
फ़ेसबुक पर पिछले कुछ समय से यह दावा काफ़ी व्यापक स्तर पर वायरल है. एक यूज़र ने शेयर करते हुए लिखा है,'#मुकेश_भट्ट_एडवोकेट को दिल से धन्यवाद और बधाई, भारत के #सुप्रीम_कोर्ट ने दी बड़ी #ब्राह्मण जाति को गाली देने पर अब लागू होगा #एट्रोसिटी_एक्ट'
फ़ैक्ट चेक
बूम ने सबसे पहले संबंधित कीवर्ड की मदद से इस संदर्भ में मीडिया रिपोर्ट खोजी लेकिन इस तरह की कोई रिपोर्ट हमें नहीं मिली. इसके बाद हमने खोजा कि क्या कोई अत्याचार निरोधी कानून ब्राह्मण के लिए है लेकिन इस पर भी हमें ऐसे किसी कानून की कोई जानकारी नहीं मिली.
इसके बाद हमने सुप्रीम कोर्ट की वेबसाईट देखी कि क्या वहाँ कोई इस तरह की याचिका स्वीकार की गई है या इससे संबंधित कोई फैसला आया हो. ब्राह्मणों पर होने वाले अत्याचार पर लागू होगा एट्रोसिटी एक्ट से संबंधित न तो कोई याचिका न इस तरह का कोई मामला मिला जिसपर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई हो.
फिर हमनें मीडिया रिपोर्ट ढूँढी जहां ब्राह्मणों की ओर से एससी/एसटी एक्ट में शामिल करने की मांग की गई हो हमें कई रिपोर्ट मिलीं जिसमें ब्राह्मण समुदाय और उनके तमाम संगठनों द्वारा लंबे समय से अलग से ब्राह्मण एट्रोसिटी एक्ट की मांग की जा रही है. इस बारे में विस्तार से afternoon voice , maharashtra news ,the hans india , आदि पोर्टल्स पर पढ़ा जा सकता है.
इसको लेकर इंटरनेट पर तमाम तरह के अभियान भी समय समय पर चलाए जाते रहे हैं जिसे यहाँ और यहाँ देखा जा सकता है.
इसके अलावा हमने देखा कि ब्राह्मण/ सवर्ण समुदाय द्वारा वर्तमान में लागू एससी/एसटी एट्रोसिटी एक्ट को निरस्त करने अथवा उसमें बदलाव करने को लेकर लंबे समय से आंदोलन चल रहा है. फ्री प्रेस जर्नल, जागरण, अमर उजाला, हिंदुस्तान पर इस संबंध में पढ़ा जा सकता है.
सवर्ण/ब्राह्मण समुदाय के अनुसार एससी/एसटी समुदाय के लोग ब्राह्मणों के खिलाफ़ इस एक्ट का दुरुपयोग करते हैं. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अबतक ऐसे किसी मामले को सुनवाई के लिए स्वीकार नहीं किया है.
आपको याद दिला दूँ वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एके गोयल और यूयू ललित की बेंच ने एससी/एसटी एक्ट क संबंध में नई गाइडलाइन जारी करते हुए एक्ट के तात्कालिक स्वरूप में कुछ बदलाव किये थे. जिसमें जांच के पहले गिरफ़्तारी पर रोक सबसे प्रमुख थी. सरकार द्वारा इस फैसले को पलटने की मांग के साथ देश भर में प्रदर्शन भी हुए थे. जिसके बाद अगस्त 2018 के मॉनसून सत्र में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला पलटते हुए एक्ट को मूल स्वरूप में पास किया था.
इसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकार कर लिया था.
गौरतलब हो 1989 में एससी/एसटी (SC/ST) एट्रोसिटी एक्ट पारित किया गया था जिसका मकसद अनुसूचित जाति/जनजाति के खिलाफ़ होने वाले अपराध को रोकना था. इसका मुख्य उद्देशय अस्पृश्यता मिटाना और जातिगत भेदभाव जो खत्म करना था. यह एक विशेष कानून है जो संविधान के अनुच्छेद 15 (4) के तहत बनाया गया जो राज्य को समाज के कमजोर वर्ग के लिए विशेष प्रावधान करने की छूट देता है. यह अपनी तरह का भारत में सिर्फ एकमात्र कानून है.