सोशल मीडिया पर संविधान के अनुच्छेद-30 को सरकार द्वारा समाप्त किए जाने की संभावना के दावे से एक संदेश वायरल है. वायरल मैसेज के साथ दावा किया जा रहा है कि संविधान का अनुच्छेद 30 हिंदू विरोधी है. सरदार पटेल ने इसका विरोध करते हुए कांग्रेस पार्टी और मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने की घोषणा कर दी थी जिसके बाद नेहरू झुक गए लेकिन सरदार पटेल की मृत्यु होने के बाद नेहरू ने इस कानून को संविधान में शामिल करा दिया.
संदेश में यह दावा भी है कि अनुच्छेद-30 के अनुसार मुस्लिम और ईसाई अपने धर्म की शिक्षा देने के लिए मदरसे और कॉन्वेंट स्कूल चला सकते हैं लेकिन हिंदू गुरुकुल या वैदिक शिक्षा पर आधारित पारंपरिक स्कूल नहीं चला सकते. यदि हिंदू ऐसा करते हैं तो उन्हें कानून के तहत दंडित किया जाएगा.
बूम ने जांच में पाया कि अनुच्छेद-30 भारत के अल्पसंख्यक वर्गों के शिक्षा और संस्कृति संबंधी मौलिक अधिकारों से जुड़ा है. इसे सरदार वल्लभभाई पटेल के जीवन काल में ही 8 दिसंबर 1948 को संविधान में शामिल कर लिया गया था. इसमें कोई हिंदू विरोधी प्रावधान नहीं है.
क्या है वायरल दावा :
फेसबुक यूजर ने वायरल संदेश को अपनी वॉल पर शेयर किया है. आर्काइव लिंक
एक्स पर भी यह संदेश वायरल है. आर्काइव लिंक
पड़ताल में क्या मिला :
अनुच्छेद 30 हिंदू विरोधी नहीं
वायरल दावे की जांच के लिए हमने भारतीय संविधान के अनुच्छेद-30 को पढ़ा. अनुच्छेद 30 को संविधान के भाग-3 (जहां नागरिकों के मूल अधिकारों को लिपिबद्ध किया गया है) में शामिल किया गया है. यह नागरिकों के मूल अधिकारों से जुड़ा अनुच्छेद है. इसके अनुसार, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों को अपनी रुचि के शिक्षण संस्थानों और उनके प्रशासन का अधिकार दिया गया है. राज्य को निर्देशित किया गया है कि वह धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यकों द्वारा प्रबंधित शिक्षा संस्थानों को सहायता देने में कोई भेद नहीं करेगा.
अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान की किसी संपत्ति के अनिवार्य अधिग्रहण के लिए राज्य द्वारा मुआवजे की राशि उनके गारंटीकृत अधिकार को प्रतिबंधित या निरस्त नहीं करेगी. इस प्रावधान को 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 के तहत जोड़ा गया था.
अनुच्छेद में कहीं भी हिंदुओं को गुरुकुल या पारंपरिक स्कूल चलाने पर दंडित करने का कोई प्रावधान नहीं है. यह अल्पसंख्यक वर्गों के संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकारों के संरक्षण से जुड़ा है.
सरदार पटेल ने अनुच्छेद 30 का विरोध नहीं किया
सरदार वल्लभभाई पटेल मूल अधिकारों, अल्पसंख्यकों तथा आदिवासी और अपवर्जित क्षेत्रों पर गठित की गई सलाहकार समिति के अध्यक्ष थे. समिति का गठन 24 जनवरी 1947 को किया गया था. इस समिति की उप समिति के रूप में अल्पसंख्यक अधिकारों पर सलाहकार समिति का गठन किया गया था. जिसने अल्पसंख्यकों के अधिकारों और संरक्षण पर अपनी रिपोर्ट तैयार की थी. खुद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने भारतीय विधान परिषद के सामने यह रिपोर्ट पेश की थी. संविधान सभा ने 27-28 अगस्त को इस पर चर्चा की थी जिसमें अल्पसंख्यकों और पिछड़े समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए कई सिफारिशें की गई थीं.
संविधान का अनुच्छेद-30 जोकि अल्पसंख्यकों के शिक्षण संस्थाओं की स्थापना और उनके प्रशासन संबंधी अधिकारों से जुड़ा है पर संविधान सभा में 8 दिसंबर 1948 को चर्चा हुई थी. हमने अनुच्छेद पर संविधान सभा में हुई पूरी चर्चा को पढ़ा. चर्चा के दौरान सरदार पटेल ने कहीं भी इस अनुच्छेद का विरोध नहीं किया. प्रारूप समिति द्वारा तैयार किए संविधान के मसौदे (जो कि संविधान का आरंभिक स्वरूप था) में इसे अनुच्छेद-23A कहा गया था.
पटेल की मृत्यु से पहले ही संविधान में शामिल हो गया था अनुच्छेद-30
अनुच्छेद को 8 दिसंबर 1948 को ही संविधान में शामिल कर लिया गया था जब सरदार पटेल जीवित थे. पुष्टि हेतु संविधान सभा की बहस के दस्तावेज के पेज 68 को देखा जा सकता है. पटेल की मृत्यु 15 दिसंबर 1950 को हुई थी. दावा गलत है कि इसे नेहरू ने पटेल की मृत्यु के बाद संविधान में शामिल कराया.
क्या अनुच्छेद 30 को समाप्त किया जा सकता है
अनुच्छेद 30 संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों से जुड़ा हुआ है. अल्पसंख्यकों को यह मूल अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है ताकि वे अपनी भाषा, बोली और संस्कृति का संरक्षण कर सकें. हालांकि भारतीय संविधान में 'अल्पसंख्यक' शब्द को कानूनी रूप से परिभाषित नहीं किया गया है, लेकिन यह धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को मान्यता देता है. जिनके भाषाई और सांस्कृतिक अधिकारों के संरक्षण के लिए संविधान में अनुच्छेद 29 और 30 की व्यवस्था की गई है.
मूल अधिकारों से जुड़े प्रावधान को समाप्त या संशोधित करने के लिए संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संसद द्वारा संशोधन विधेयक पास कराना आवश्यक है, इसके लिए दोनों सदनों में दो-तिहाई बहुमत और कुछ मामलों में राज्यों की सहमति भी जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट के आधारभूत संरचना सिद्धांत के अनुसार, ऐसे अधिकारों को पूरी तरह रद्द करना चुनौतीपूर्ण है क्योंकि यह अल्पसंख्यकों के मौलिक सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकारों से जुड़ा है.
अपनी जांच में हमें केंद्र सरकार के अनुच्छेद 30 को समाप्त या संशोधित करने की मंशा के दावे की पुष्टि करने वाली कोई विश्वसनिय रिपोर्ट नहीं मिली.


