सोशल मीडिया पर जम्मू एवं कश्मीर को लेकर एक दावा काफ़ी वायरल हो रहा है, जिसमें कहा जा रहा है कि "प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में जम्मू और कश्मीर को UN की डिस्प्यूटेड लिस्ट से बाहर कर दिया गया है और अब यह विवादित क्षेत्र नहीं रहा है".
हालांकि बूम ने अपनी जांच में पाया कि करीब 13 साल पुरानी इस ख़बर को फ़र्ज़ी दावों के साथ शेयर किया जा रहा है.
वायरल दावे को एक ट्वीट के स्क्रीनशॉट के तौर पर शेयर किया जा रहा है, जिसमें मौजूद तस्वीर में सबसे ऊपर की ओर प्रधानमंत्री मोदी और जम्मू कश्मीर के मैप की फ़ोटो मौजूद है और नीचे टेक्स्ट में लिखा हुआ है “जम्मू और कश्मीर UN की डिस्प्यूट लिस्ट से बाहर हुआ यानी दुनिया के हिसाब से अब ये विवादित क्षेत्र नही है, मोदी है तो मुमकिन है, पाकिस्तान प्रेमियों जरा और तिलमिलाओ”.
वहीं ट्वीट के कैप्शन में लिखा हुआ है, “इसको कहते है ब्रेकिंग न्यूज़... जिसके पास बरनोल का स्टॉक है वो करोड़पति बनेंगे इतनी जलेगी कांगियो, वामियो, सपाइयो और आपियो की”.
फ़ेसबुक पर वायरल दावे से जुडे पोस्ट्स को आप यहां, यहां, यहां और यहां देख सकते हैं.
बूम को यह दावा टिपलाइन (7700906588) पर भी प्राप्त हुआ है.
फ़ैक्ट चेक
बूम ने वायरल दावे की पड़ताल के लिए संबंधित कीवर्ड की मदद से गूगल सर्च किया तो हमें एनडीटीवी और द हिंदू की वेबसाइट पर 15 नवंबर 2010 को प्रकाशित रिपोर्ट मिली. एनडीटीवी की रिपोर्ट समाचार एजेंसी पीटीआई के हवाले से लिखी गई थी. दोनों की हेडिंग के अनुसार जम्मू कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र के विवादों वाली सूची से हटा दिया गया है.
रिपोर्ट पढ़ने पर हमने यह पाया कि नवंबर 2010 में यह मुद्दा तब सुर्ख़ियों में आया था, जब यूनाइटेड किंगडम के मार्क लायल ग्रांट ने संयुक्त राष्ट्र में अपने संबोधन में अनसुलझे विवादों की सूची में जम्मू-कश्मीर विवाद का जिक्र नहीं किया था. उस समय संयुक्त राष्ट्र के सबसे शक्तिशाली अंग सुरक्षा परिषद का जिम्मा यूनाइटेड किंगडम के पास ही था और इसी नाते यूनाइटेड किंगडम के तत्कालीन प्रतिनिधि मार्क लायल ग्रांट ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित किया था.
मार्क लायल ग्रांट ने संयुक्त राष्ट्र महासभा को संबोधित करते हुए कहा था कि “मिडिल ईस्ट, साइप्रस और पश्चिमी सहारा सहित कई लंबे समय से चली आ रही स्थितियां अभी भी अनसुलझी हुई हैं. इनमें नेपाल और गिनी बिसाऊ भी शामिल हैं जहां परिषद ने हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया है.
रिपोर्ट में यह भी लिखा गया था कि जम्मू कश्मीर को संयुक्त राष्ट्र द्वारा विवादों की सूची से हटाए जाने पर पाकिस्तानी राजदूत ने इसका विरोध भी किया था. संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के तत्कालीन राजदूत अमजद हुसैन सियाल ने बयान देते हुए कहा था कि लंबे समय से चल रहे अनसुलझी स्थितियों के संदर्भ में जम्मू और कश्मीर विवाद का उल्लेख नहीं किया गया. हम समझते हैं कि यह अनजाने में हुई एक चूक है, क्योंकि जम्मू-कश्मीर सुरक्षा परिषद के एजेंडे में सबसे पुराने विवादों में से एक है”.
जांच में हमें मार्क लायल ग्रांट का इससे जुड़ा पूरा संबोधन संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर भी मिला. संयुक्त राष्ट्र की वेबसाइट पर 11 नवंबर 2010 की तारीख़ भी अंकित की गई थी. इस दौरान हमें मार्क लायल ग्रांट के भाषण का वह हिस्सा भी मिला, जिसे न्यूज़ आउटलेट ने अपने रिपोर्ट में शामिल किया है. आप इसे नीचे पढ़ सकते हैं.
हमने अपनी जांच में यह पाया कि 2010 में जब यह घटना घटित हुई थी तो उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी और प्रधानमंत्री पद का ज़िम्मा डॉ मनमोहन सिंह के पास था.
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