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फैक्ट चेक

गाय के गोबर से बने उपले में देसी गाय का घी डालकर ऑक्सीजन पैदा करने का सच क्या है?

पोस्ट में दावा किया गया है कि घर में ऑक्सीजन पैदा करने के लिए गाय के गोबर से बने उपले में देसी गाय का घी डालकर जलाने से 1000 टन वायु ऑक्सीजन में परिवर्तित होती है.

By - Mohammad Salman | 30 April 2021 8:10 PM IST

देशभर में ख़तरनाक रूप से बढ़ते कोरोना (Coronavirus) मामलों के बीच ऑक्सीजन (Oxygen) की कमी से मौतों का सिलसिला लगातार जारी है. इसी दौरान सोशल मीडिया पर ऑक्सीजन और कोरोना के इलाज के रूप में तमाम फ़र्ज़ी और भ्रामक घरेलू उपचार वाले पोस्ट वायरल हैं. ऑक्सीजन की कमी को दूर करने वाला एक ऐसा ही दावा सोशल मीडिया पर काफ़ी वायरल है.

वायरल पोस्ट में दावा किया गया है कि घर में ऑक्सीजन पैदा करने के लिए गाय के गोबर से बने उपले (cow dung) में 10 ग्राम घी डालकर जलाने (Burning ghee) से 1000 टन वायु ऑक्सीजन में परिवर्तित होती है.

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बूम ने अपनी जांच में पाया कि वायरल पोस्ट का यह दावा फ़र्ज़ी है. आईआईटी बॉम्बे के प्रोफ़ेसर अभिजीत मजूमदार ने बूम से बात करते हुए पोस्ट में किये गए दावे को सिरे से ख़ारिज कर दिया.

फ़ेसबुक पर देश की आवाज़ नाम के पेज पर शेयर की गई तस्वीर पर लिखा है, "घर में ऑक्सीजन पैदा करने के लिए गौ माता के गोबर से बने 2 छोटे कंडे (उपले) देसी घी डालकर जलाएं. 10 ग्राम घी 1000 टन वायु को ऑक्सीजन में परिवर्तित (कन्वर्ट) कर देता है. हमारे (भारतीय) ऋषि मुनियों ने यह हजारों वर्षों पहले यह बताया था. शोध के रूप में जापान ने यह प्रयोग वर्षों पहले किया है."


पोस्ट यहां और आर्काइव वर्ज़न यहां देखें.

वायरल पोस्ट को फ़ेसबुक पर बड़ी संख्या में शेयर किया गया है. इसके अलावा ऐसा ही दावा हमें सर्व काऊ नाम की वेबसाइट पर मिला.

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बूम को गाय के गोबर से बने उपले में 10 ग्राम घी मिलाकर जलाने से 1000 टन ऑक्सीजन पैदा करने वाले दावे की पुष्टि करता कोई भी वैज्ञानिक साक्ष्य नहीं मिला.

बूम ने वायरल दावे की प्रमाणिकता पर विस्तृत जानकारी के लिए आईआईटी बॉम्बे में डिपार्टमेंट ऑफ़ केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर अभिजीत मजूमदार से संपर्क किया, जिसमें उन्होंने इसे पूरी तरह से हास्यास्पद करार दिया.

उन्होंने मज़ाकिया लहजे में कहा कि यह इस दुनिया में संभव नहीं है. हां, हैरी पॉटर की दुनिया में ज़रूर हो सकता है.

"हम अगर कोई चीज़ जलाते हैं तो हम वास्तव में ऑक्सीजन का इस्तेमाल करते हैं. इसको एक उदाहरण से समझें तो जब हम जलती हुई मोमबत्ती को गिलास से ढक देते हैं तो वह नहीं जलती है, बुझ जाती है. कोई भी जलने वाली प्रक्रिया ऑक्सीजन का उपयोग करती है, यह ऑक्सीजन का उत्पादन नहीं करती है. हवा में 80 प्रतिशत नाइट्रोजन और 20 प्रतिशत ऑक्सीजन होता है. अगर मैं कहता हूं कि मैं हवा को ऑक्सीजन में बदल सकता हूं, तो मेरा मतलब यह है कि मैं नाइट्रोजन को ऑक्सीजन में परिवर्तित कर रहा हूं. आप ऐसा कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए आपको न्यूक्लियर रिएक्टर या उच्च तापमान जैसी किसी चीज़ की जरूरत पड़ेगी, जो कि आप सिर्फ़ सूरज के अंदरूनी कोर से पा सकते हैं, ना कि गाय का गोबर जलाकर. इसलिए यह दावा बिल्कुल गलत है और इसका कोई आधार नहीं है." प्रोफ़ेसर अभिजीत मजूमदार ने कहा.

उन्होंने आगे कहा कि भौतिकी और रसायन विज्ञान के बुनियादी ज्ञान के साथ एक स्कूल जाने वाला छात्र भी यह बताने में सक्षम होना चाहिए कि यह बिल्कुल फ़र्ज़ी दावा है.

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