क्या इंडोनेशिया में 5 हजार साल पुराना विष्णु मंदिर पाया गया? फ़ैक्ट चेक
पांच हजार साल पुरानी भगवान विष्णु की मूर्तियों के रूप में वायरल ये तस्वीरें बीते कई सालों से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं. जानिए क्या है सच्चाई हमारी इस रिपोर्ट में.
सोशल मीडिया पर पानी के नीचे मूर्तियों की तीन तस्वीरों का एक सेट इस दावे के साथ वायरल है कि ये इंडोनेशिया (Indonesia) के बाली (Bali) में समुद्र में पाई गई 5,000 साल पुरानी भगवान विष्णु (Vishnu) की मूर्तियां हैं.
बूम ने पाया है कि ये मूर्तियां इंडोनेशिया के बाली के पेमुटरन में आकृत्रिम रूप से बनाए गए अंडरवाटर गार्डन का हिस्सा हैं. पहली तस्वीर बुद्ध टेम्पल की है, जो तुलम्बेन बीच के पास स्थित है. वहीं, दूसरी और तीसरी तस्वीरें कोरल गॉडेस (Coral Goddess), बायोरॉक रीफ़ रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं.
पांच हजार साल पुरानी भगवान विष्णु की मूर्तियों के रूप में वायरल ये तस्वीरें बीते कई सालों से सोशल मीडिया पर शेयर की जा रही हैं. यही नहीं, कई हिंदी और अंग्रेजी मीडिया रिपोर्ट्स में भी इन तस्वीरों को उपर्युक्त दावे के साथ कवर किया गया है. इसके अलावा यूट्यूब पर ढेरों वीडियो हैं, जिनमें समुद्र के नीचे कृत्रिम रूप से बनाई गई इन मूर्तियों को भगवान विष्णु की 5 हजार साल पुरानी मूर्ति और 9 हजार साल पुरानी द्वारका नगरी के रूप में वर्णित किया गया है.
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ट्विटर पर वायरल तस्वीरें शेयर करते हुए एक यूज़र ने लिखा, "5000 वर्ष पुराने भगवान श्री विष्णुजी इंडोनेशिया के बाली सागर में पाए गए। महाभारत लगभग 5500 बीसी की है, तो भारत का कौन सा राज्य इंडोनेशिया था और क्या उसने महाभारत में भाग लिया था? सनातन दक्षिण एशिया में अखण्ड भारत की सीमाओं तक सदैव विद्यमान था. जय श्री राम."
ट्वीट का आर्काइव वर्ज़न यहां देखें.
पोस्ट का आर्काइव वर्ज़न यहां देखें.
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फ़ैक्ट चेक
बूम ने वायरल तस्वीरों की सत्यता जांचने के लिए इन तस्वीरों को रिवर्स इमेज पर सर्च किया. हमें अपनी खोज के दौरान जो परिणाम मिले, वो वायरल दावे के ठीक उलट है.
पहली तस्वीर
बूम ने पाया कि यह तस्वीर बुद्ध टेम्पल की है, जो बाली के तुलम्बेन बीच के पास स्थित है. यह तस्वीर फ़ोटो स्टॉक वेबसाइट फ़्लिकर और शटरस्टॉक पर देखी जा सकती है.
स्कूबा वेबसाइट के अनुसार, इंडोनेशिया के बाली के उत्तर-पूर्व तट पर तुलम्बेन के पास स्थित सुसी प्लेस की इस मूर्ति का नाम स्लीपिंग बुद्धा है. साल 2012 में मूर्तियों को इस साईट पर जोड़ा गया था. यहां पर बुद्ध की माँ तारा की भी मूर्ति बनाई गई है.
दूसरी और तीसरी तस्वीर
बूम ने पाया कि दूसरी और तीसरी तस्वीर कोरल गॉडेस की है, जो पेमुटरन की कोरल रीफ़ पुनर्वास परियोजना के तहत साल 2000 में बनाई गई थी. बायोरॉक तकनीक के उपयोग से बनी यह सबसे बड़ी परियोजना है, जिसमें 115 से अधिक बायोरॉक संरचनाएं हैं. इस तस्वीर को आप फ़ोटो स्टॉक वेबसाइट फ़्लिकर और एडोब स्टॉक पर देख सकते हैं.
प्रो. वुल्फ हिल्बर्ट्स की अगुवाई वाली इस परियोजना को 2012 UNDP इक्वेटर पुरस्कार, और 2015 UNWTO के रनर अप पुरस्कार के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित किया गया है.
बूम ने वायरल तस्वीरों के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए इंडोनेशिया के बाली में 'सी रोवर्स डाईव सेंटर' के मलिक पॉल एम टरले से संपर्क किया.
टरले ने बूम को बताया कि उनकी कुछ तस्वीरों किसी ने ट्विटर पर ग़लत दावों के साथ पोस्ट की थी. इस संदर्भ में बीबीसी, एएफ़पी सहित कई मीडिया आउटलेट्स से बात करके उस दावे का खंडन किया था.
वर्तमान में वायरल तस्वीरों के सेट के बारे में उन्होंने स्पष्ट किया कि ये तस्वीरें अंडरवाटर टेम्पल गार्डन की भी नहीं हैं. वायरल पोस्ट में, बायीं ओर दिखने वाली तस्वीर पुनर्वास परियोजना का हिस्सा हैं.
बूम ने उनसे यह जानना चाहा कि तस्वीरों में दिखने वाली मूर्तियां क्या 5 हजार साल पुरानी हैं? जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि "मैं 100 प्रतिशत दावे के साथ कह सकता हूं कि ये 5 हजार साल पुरानी नहीं हैं. ये सभी प्रोजेक्ट बाली के अलग-अलग द्वीपों में बनाये गए हैं. ये सभी मानवनिर्मित हैं."
उन्होंने आगे कहा कि कोरल गॉडेस प्रोजेक्ट बायोरॉक द्वारा बनाया गया था. बायोरॉक एक अलग संगठन है.
अंत में हमने पॉल एम टरले से इन अंडरवाटर मूर्तियों के बनाने में इस्तेमाल होने वाले मैटेरियल के बारे में पूछा. उन्होंने बताया कि "धातु और पत्थर. वे केवल रीडबार को वेल्डिंग करते हैं और इलेक्ट्रोलोसिस का उपयोग करते हैं जो फ्रेम पर मिनरल्स को गुप्त करता है. इसके बाद कोरल्स चढ़ाई जाती है जो बढ़ती रहती है."
हमने यह भी पाया कि पानी के नीचे बनाई जाने वाली इन मूर्तियों को बनाने में ऐसे मैटेरियल का इस्तेमाल किया जाता है, जिससे मूर्तियां जीवंत लगे, ताकि समुद्र के नीचे रहने वाली जीव उसमें आकार ले सकें.
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बूम पहले भी वायरल तस्वीरों में से एक तस्वीर का फ़ैक्ट चेक कर चुका है, जब यह तस्वीर 9 हजार साल पुरानी द्वारका नगरी के रूप में वायरल हुई थी. रिपोर्ट यहां पढ़ें.