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फैक्ट चेक

मेघालय हाईकोर्ट का 'हिंदू राष्ट्र' पर विवादित फैसला हालिया बताकर वायरल

बूम ने पाया कि वायरल दावा भ्रामक है. मेघालय हाईकोर्ट ने हिंदू राष्ट्र के संबंध में 2018 में यह फैसला दिया था, जिसे साल 2019 में खारिज कर दिया गया था.

By -  Jagriti Trisha |

25 Oct 2024 4:41 PM IST

सोशल मीडिया पर पंजाब केसरी के एक न्यूज बुलेटिन को शेयर करते हुए दावा किया जा रहा है कि मेघालय हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में केंद्र सरकार से अपील की है कि भारत को इस्लामिक देश बनने से बचाया जाना चाहिए. साथ में हाईकोर्ट ने यह भी कहा है कि आजादी के समय जिस तरह पाकिस्तान इस्लामिक देश बना उसी तरह भारत को भी हिंदू राष्ट्र बनना चाहिए था.

बूम ने अपने फैक्ट चेक में पाया कि मेघालय हाईकोर्ट के 2018 के फैसले को हालिया बताकर शेयर किया जा रहा है.

लगभग तीन मिनट के इस वायरल वीडियो में मेघालय हाईकोर्ट के जस्टिस सुदीप रंजन सेन द्वारा हिंदू राष्ट्र के संबंध में की गई टिप्पणी पर विस्तृत रिपोर्ट की गई है.

फेसबुक पर इस पुराने वीडियो को शेयर करते हुए यूजर ने लिखा, 'मेघालय हाईकोर्ट का फैसला, इस हिसाब से भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित करना चाहिए.'


पोस्ट का आर्काइव लिंक.

यह वीडियो हमें बूम के टिपलाइन नंबर भी प्राप्त हुआ.



फैक्ट चेक: मेघालय हाईकोर्ट का यह फैसला हाल का नहीं है

पंजाब केसरी के वायरल न्यूज बुलेटिन के मुताबिक यह फैसला 10 दिसंबर को आया था, इससे हमें अंदेशा हुआ कि यह वीडियो हाल का नहीं है.

आगे हमने यूट्यूब पर संबंधित कीवर्ड्स की मदद से मूल वीडियो की तलाश की. हमने पाया कि पंजाब केसरी के आधिकारिक यूट्यूब चैनल पर 13 दिसंबर 2018 को यह बुलेटिन शेयर किया गया था.

Full View


फिर हमने मेघायल हाईकोर्ट के इस फैसले के संबंध में अन्य मीडिया रिपोर्ट्स की तलाश की. हमें दिसंबर 2018 की कई खबरें मिलीं. 

अमर उजाला की 12 दिसंबर 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक, अमन राणा नाम के एक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई करते हुए मेघालय हाईकोर्ट के जस्टिस सुदीप रंजन सेन ने अपने फैसले में कहा, "यह अविवादित तथ्य है कि विभाजन के वक्त लाखों की संख्या में हिंदू व सिख मारे गए. उन्हें प्रताड़ित किया गया और महिलाओं का यौन शोषण किया गया. भारत का विभाजन ही धर्म के आधार पर हुआ था. पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित कर दिया. ऐसे में भारत को भी उस समय हिंदू राष्ट्र घोषित कर देना चाहिए था लेकिन, इसे धर्मनिरपेक्ष बनाए रखा गया."

असल में अमन राणा को निवास प्रमाण पत्र देने से मना कर दिया गया था, जिसके बाद उन्होंने यह याचिका दायर की थी. इसपर सुनवाई के दौरान मेघालय हाईकोर्ट ने केंद्र से ऐसे कानून बनाने की अपील की थी कि जिससे पाकिस्तान, बांग्लादेश व अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, जैन, सिख, बौद्ध, ईसाई, पारसी, जयंतिया, खासी व गारो को बिना किसी सवाल व दस्तावेज के भी भारत की नागरिकता मिल सके.

न्यूज 18 की रिपोर्ट के अनुसार, इस 37 पन्ने के जजमेंट में जज सेन ने यह भी कहा था कि "किसी को भारत को एक और इस्लामिक देश बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए. मुझे पूरा भरोसा है की पीएम मोदी की सरकार इस मामले की गंभीरता को समझेगी और अपील पर कदम उठाएगी."

इस संबंध में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, एनडीटीवी की भी रिपोर्ट देखी जा सकती है.

हाईकोर्ट ने साल 2019 में इस फैसले को किया खारिज 

हालांकि बाद में मेघालय हाईकोर्ट को अपने इस विवादित फैसले को निरस्त करना पड़ा. 25 मई 2019 की बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, तत्कालीन चीफ जस्टिस मोहम्मद याकूब मीर और जस्टिस एचएस थंगकियू की डिविजन बेंच ने सुदीप रंजन सेन के इस विचार को त्रुटिपूर्ण करार दिया. 

उन्होंने अपने आदेश में लिखा, "इस मामले पर विस्तार से गहन विमर्श के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि यह संवैधानिक सिद्धांतों के अनुरूप नहीं है. इसलिए, उसमें जो भी राय दिए गए हैं और जो भी निर्देश जारी किए गए हैं वह निरर्थक हैं. इसलिए उन्हें पूरी तरह से हटाया जाता है."

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