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सूरज की किरणों को दर्पण में केंद्रित करके जलाई जाती है ओलंपिक मशाल, जानिए पूरी कहानी

ParisOlympics2024: आधुनिक ओलंपिक खेल के इतिहास में मशाल जुलूस की शुरुआत 1936 के बर्लिन ओलंपिक से हुई थी.

By - Rishabh Raj | 24 July 2024 5:12 PM IST

दुनिया में खेल के सबसे बड़े महाकुंभ ओलंपिक की शुरुआत 26 जुलाई से फ्रांस की राजधानी पेरिस में हो रही है. ओलंपिक के आगाज से महीनों पहले ही चारों ओर इसकी चर्चा होने लगती है, लेकिन खेल की आधिकारिक शुरुआत से पहले जो सबसे खास है, वह है ओलंपिक मशाल यात्रा. पेरिस ओलंपिक 2024 के लिए ओलंपिक मशाल की शुरुआत 16 अप्रैल 2024 को ही हो चुकी है. 16 अप्रैल को ग्रीस के प्राचीन ओलंपिया शहर से ओलंपिक मशाल जलाकर मशाल यात्रा का श्रीगणेश किया गया.

8 मई 2024 को ओलंपिक मशाल दुनिया के दूसरे हिस्सों से अपनी यात्रा पूरी करने के बाद ओलंपिक के मेजबान देश फ्रांस पहुंच चुकी है. उसके बाद से अब तक मशाल यात्रा फ्रांस के विभिन्न शहरों में जारी है. 26 जुलाई को ओलंपिक मशाल यात्रा पेरिस में खत्म होगी और उसी दिन दुनिया के सबसे बड़े खेल महाकुंभ का शुभारंभ होगा.

क्या है ओलंपिक मशाल?

ओलंपिक मशाल हर ओलंपिक के शुरू होने से कुछ महीने पहले ग्रीस के ओलंपिया शहर में जलाई जाती है, जो प्राचीन ओलंपिक खेलों और आधुनिक ओलंपिक खेलों के बीच एक संबंध की याद दिलाता है.

ओलंपिक मशाल को ओलंपिया से ओलंपिक के मेजबान शहर तक ले जाया जाता है, जिसे ओलंपिक मशाल यात्रा कहते हैं. इस मशाल यात्रा को मुख्य रूप से एथलीटों द्वारा ओलंपिया से ओलंपिक के मेजबान शहर तक परिवहन के विभिन्न साधनों द्वारा ले जाया जाता है.

प्राचीन ओलंपिक खेलों पर क्यों लगा था प्रतिबंध?

प्राचीन ओलंपिक खेलों की शुरुआत 776 ईसा पूर्व ग्रीस के ओलंपिया शहर में हुई थी. शुरुआत में ओलंपिक ग्रीक देवता गॉड जीउस के सम्मान में हर चार साल में आयोजित की जाती थी. हालांकि, 393 ईसवीं में रोमन सम्राट थियोडोसियस प्रथम ने धार्मिक कारणों के चलते इस खेल पर प्रतिबंध लगा दिया था.

इसी प्राचीन ओलंपिक खेलों में सबसे पहले मशाल जलाई जाती थी और मशाल जुलूस निकाला जाता था. प्राचीन रोमन लोग इसे शुभ मानते थे. इतिहासकारों के मुताबिक सबसे पहले मशाल यूनानी लोगों ने अपनी देवी रानी हेरा के सम्मान में उनके मंदिर में जलाई थी. रानी हेरा का मंदिर उसी स्थान पर था, जहां प्राचीन ओलंपिक का आयोजन होता था. यूनानी लोगों ने मशाल जलाने के लिए पैराबोलिक मिरर का इस्तेमाल किया था, जिसके केंद्र पर सूर्य की किरणों से मशाल प्रज्जवलित होती थी.

हालांकि, 393 ईसवीं में प्राचीन ओलंपिक खेलों के बंद होने के बाद यह परंपरा भी बंद हो गई थी.

1936 के बर्लिन ओलंपिक में मशाल यात्रा दोबारा शुरू

साल 1896 में यूनान (प्राचीन ग्रीस) की राजधानी एथेंस में आधुनिक ओलंपिक खेलों की शुरुआत हुई. एथेंस में पहले ओलंपिक खेलों में 14 देशों के लगभग 200 खिलाड़ियों ने भाग लिया था. हालांकि, तब ओलंपिक खेलों के शुरू होने से पहले मशाल जलाने और जुलूस निकालने की परंपरा नहीं थी.

साल 1928 में पहली बार एम्स्टर्डम ओलंपिक में ओलंपिक मशाल जलाने का विचार सामने आया, लेकिन इस ओलंपिक में कोई मशाल जुलूस नहीं निकाली गई थी. तब एम्स्टर्डम ओलंपिक स्टेडियम के बाहर एक टावर पर अग्नि जलाई गई थी.

साल 1936 में बर्लिन ओलंपिक शुरू होने से पहले पहली बार आधुनिक ओलंपिक के इतिहास में मशाल जुलूस निकाली गई. प्राचीन ओलंपिक में मशाल जलाने की परंपरा को दोबारा शुरू करते हुए 1936 के बर्लिन ओलंपिक के महासचिव कार्ल डायम ने दोबारा प्राचीन ग्रीस के ओलंपिया शहर से बर्लिन तक मशाल यात्रा शुरू करवाई. उसके बाद से आजतक हर ओलंपिक शुरू होने से पहले मशाल यात्रा निकाली जाती है. 1952 के हेलेंस्की ओलंपिक में पहली बार ओलंपिक मशाल को हवाई मार्ग से एथेंस से डेनमार्क ले जाया गया. 

स्टेफनोस नूसकोस पेरिस ओलंपिक के पहले मशालवाहक

2020 के टोक्यो ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले ग्रीक एथलीट स्टेफनोस नूसकोस (Stefanos Ntouskos) पेरिस ओलंपिक 2024 के पहले मशालवाहक बनें. पेरिस ओलंपिक 2024 के लिए 10 हजार से अधिक मशालवाहक का चयन किया गया था, जो इस 68 दिवसीय यात्रा के दौरान मशाल लेकर एक जगह से दूसरे जगह तक पहुचेंगे. ओलंपिक में व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पदक जीतने वाले शूटर अभिनव बिंद्रा पेरिस ओलंपिक में एकमात्र भारतीय मशालवाहक हैं.

ज्वाला बुझाने के साथ होती है ओलंपिक खेलों की समाप्ति

ओलंपिक मशाल यात्रा जब ओलंपिक स्टेडियम में पहुंचती है तो उस मशाल से एक विशेष प्रकार की कड़ाही में आग जलाई जाती है, जिसके बाद ओलंपिक गेम्स की शुरुआत होती है. यह आग तब तक जलती रहती है, जब तक कि ओलंपिक गेम समाप्त न हो जाए. ओलंपिक गेम की समाप्ति के साथ ही इस कड़ाही की आग को भी बुझा दिया जाता है, जो ओलंपिक खेलों की आधिकारिक समाप्ति मानी जाती है.

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