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कभी होती थीं राजनीतिक सभाएं, आजादी के बाद कैसे खत्म हुआ रिवाज, जानें 'गणतंत्र मंडप' की कहानी

25 जुलाई को राष्ट्रपति भवन सचिवालय ने एक बयान जारी कर कहा कि दरबार हॉल का नाम बदलकर 'गणतंत्र मंडप' और अशोक हॉल का नाम बदलकर 'अशोक मंडप' कर दिया गया है.

By - Rishabh Raj | 29 July 2024 8:38 AM GMT

राष्ट्रपति भवन के प्रतिष्ठित 'दरबार हॉल' और 'अशोक हॉल' के नाम बदल दिए गए हैं. 25 जुलाई को राष्ट्रपति सचिवालय ने एक बयान जारी कर कहा कि दरबार हॉल का नाम बदलकर 'गणतंत्र मंडप' और अशोक हॉल का नाम बदलकर 'अशोक मंडप' कर दिया गया है.

राष्ट्रपति भवन सचिवालय ने अपने बयान में कहा, 'राष्ट्रपति भवन को लोगों के लिए अधिक सुलभ बनाने का लगातार प्रयास किया जा रहा है. कोशिश की जा रही है कि राष्ट्रपति भवन का परिवेश और माहौल भारतीय संस्कृति और मूल्यों का प्रतिबिंब बने. इसलिए, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की इच्छानुसार राष्ट्रपति भवन के दो महत्वपूर्ण हॉल 'दरबार हॉल' और 'अशोक हॉल' का नाम परिवर्तन कर क्रमश: 'गणतंत्र मंडप' और 'अशोक मंडप' कर दिया गया है.'

बता दें कि यह पहली बार नहीं है जब राष्ट्रपति भवन में किसी चीज का नाम बदला गया हो. जनवरी 2023 में राष्ट्रपति भवन परिसर में स्थित मुगल गार्डन' का नाम बदलकर 'अमृत उद्यान' कर दिया गया था. इससे पहले 2022 में राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट तक जाने वाले 'राजपथ' का नाम बदलकर 'कर्तव्य पथ' कर दिया गया था. 



(फोटो क्रेडिट:rashtrapatibhavan.gov.in)

क्या है दरबार हॉल की कहानी 

दरबार हॉल राष्ट्रपति भवन के बीचों बीच स्थित सबसे बड़ा हॉल है. राष्ट्रपति भवन में भारत के मुख्य न्यायाधीश के शपथ ग्रहण समारोह से लेकर अधिकतर महत्वपूर्ण कार्यक्रम का आयोजन यही किया जाता है. 1947 में स्वतंत्र भारत की पहली सरकार का शपथ ग्रहण दरबार हॉल में ही हुआ था. स्वतंत्र भारत के पहले गवर्नर-जनरल सी राजगोपालाचारी ने भी 1948 में राष्ट्रपति भवन के दरबार हॉल में ही शपथ ली थी. इसके अलावा राष्ट्रीय पुरस्कार वितरण समारोह जैसे कार्यक्रम का आयोजन भी यही होता है.

दरबार हॉल को पहले सिंहासन कक्ष के नाम से जाना जाता था. अंग्रेजी शासन काल में दरबार हॉल में वायसराय और उनकी पत्नी के लिए दो अलग-अलग सिंहासन होते थे, लेकिन देश की आजादी के बाद उसे हटा दिया और वहां राष्ट्रपति की कुर्सी लगाई गई.

हॉल में प्रवेश के लिए चढ़नी पड़ती हैं 31 सीढ़ियां

राष्ट्रपति भवन का दरबार हॉल राष्ट्रपति भवन के केंद्रीय गुंबद के ठीक नीचे है. राष्ट्रपति भवन की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक दरबार हॉल में प्रवेश करने के लिए आंगुतकों को 31 सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है. दरबार हॉल में ब्रिटिश काल में महाराजा और नवाबों की बैठक होती थी. दरबार हॉल में राष्ट्रपति की कुर्सी के पीछे 5वीं सदी की बुद्ध की प्रतिमा खड़ी है.

इस वेबसाइट के मुताबिक, दरबार हॉल राष्ट्रपति भवन के गुंबद के ठीक नीचे 42 फीट ऊंची सफेद संगमरमर की दीवारों से बना है. इसके बीचों बीच बेल्जियम कांच की 33 फीट की ऊंचाई पर लटका हुआ एक झूमर लगा हुआ है.

राष्ट्रपति भवन सचिवालय ने जारी बयान में कहा, 'दरबार शब्द का आशय भारतीय शासकों और अंग्रेजों के दरबार और सभाओं से है. भारत के गणतंत्र होने के बाद दरबार शब्द की प्रासंगिकता पूरी तरह से खत्म हो गई है. गणतंत्र की अवधारणा प्राचीन काल से ही भारतीय समाज की गहराई में है, इसलिए इस जगह का नाम 'गणतंत्र मंडप' उपयुक्त है.


(राष्ट्रपति भवन का दरबार हॉल. फोटो क्रेडिट:rashtrapatibhavan.gov.in)

क्या है अशोक हॉल का इतिहास

राष्ट्रपति भवन का अशोक हॉल, जिसका नाम अब बदलकर अशोक मंडप कर दिया गया है, अंग्रेजों के शासनकाल में स्टेट बॉलरूम के नाम से जाना जाता था. बॉलरूम एक तरह का बड़ा कमरा होता है, जिसमें पॉलिश किया हुआ फर्श होता है और इसका इस्तेमाल अक्सर सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए किया जाता है.

राष्ट्रपति भवन में अशोक हॉल का इस्तेमाल अंग्रेजों के समय स्टेट बॉलरूम के रूप किया जाता था, लेकिन आजादी के बाद इसका इस्तेमाल औपचारिक कामों के लिए किया जा रहा है.

विदेशी मेहमानों का परिचय समारोह हो या फिर राजकीय भोज में आने वाले मेहमान का परिचय इसी हॉल में करवाया जाता है.

ओयल पेंटिंग, बेल्जियम ग्लास झूमर, वुडन फ्लोर है अशोक हॉल की खासियत

अशोक हॉल का फर्श पूरी तरह से लकड़ी से बनाया गया है जबकि इसकी छत को ओयल पेंटिंग से सजाया गया है. अशोक हॉल की छतों को सुंदर बनाने के लिए फारसी शिलालेखों का इस्तेमाल किया गया था.

अशोक हॉल में 6 बेल्जियम ग्लास झूमरों का इस्तेमाल किया गया है. अंग्रेजों के समय यहां ऑर्केस्ट्रा के लिए एक स्टेज की डिजाइन किया गया था. हालांकि, आजादी के बाद इसका इस्तेमाल राष्ट्रगान बजाने के लिए किया जाता है.

अशोक हॉल के छत पर ईरान साम्राज्य के सम्राट फतेह अली शाह की विशाल चित्रकारी लगाई गई है. इसके बारे में कहा जाता है कि लेडी विलिंग्डन ने निजी तौर पर इटली के मशहूर चित्रकार टोमासो कोलोनेलो  (Tomasso Colonnello) को चित्रकारी का जिम्मा सौंपा था. लेडी विलिंग्डन अप्रैल 1931 से अप्रैल 1936 तक भारत के वायसराय रहे लॉर्ड विलिंग्डन की पत्नी थीं. अशोक हॉल में लगे कारपेट 500 कारीगरों की दो साल की मेहनत के बाद तैयार किए गए थे.


(राष्ट्रपति भवन का अशोक हॉल. फोटो क्रेडिट: rashtrapatibhavan.gov.in)

कब हुआ था राष्ट्रपति भवन का निर्माण

दिसंबर 1911 में दिल्ली में किंग जॉर्ज पंचम ने दिल्ली दरबार का आयोजन किया. इसी कार्यक्रम में देश की राजधानी को कोलकाता से हटाकर दिल्ली करने का फैसला लिया गया. राष्ट्रपति भवन का निर्माण कार्य साल 1912 में सर एडवर्ड लुटियंस के नेतृत्व में शुरू हुआ था. इस भवन का निर्माण साल 1929 में पूरा हुआ और इसे वर्ष 1931 में खोला गया.

शुरुआत में इसे वायसराय हाउस के नाम से जाना जाता था. साल 1947 में इसका नाम बदलकर गवर्नमेंट हाउस कर दिया गया. 1947 से 1950 तक इस भवन का नाम गवर्नमेंट हाउस रहा. 1950 में इस भवन का नाम राष्ट्रपति भवन कर दिया गया.

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