सौरा में विरोध प्रदर्शन के एक हफ़्ते बाद श्रीनगर से आधे घंटे की दूरी पर स्थित एक गांव राष्ट्रीय सुर्खियां बन गया यह अब एक किले जैसा दिखता है।
हालांकि श्रीनगर की मुख्य सड़कों पर भारी ट्रैफ़िक की आवाजाही देखी गई है पर शनिवार को कर्फ्यू और प्रतिबंधों में ढील देने के बाद (17 अगस्त, 2019) भी सौरा में ग्रामीण हिलने को तैयार नहीं हैं ।
ग्रामीणों ने बैरिकेड्स लगा दिए हैं - सड़क की चौड़ाई की रखवाली करने वाले गिरे हुए पेड़ों से संकरी गलियों के किनारे चलने वाले हस्तनिर्मित स्टील के जाल से गांव में महत्वपूर्ण बिंदुओं पर खड़ी ईंटों और खाइयों को बंद कर दिया है ।
एक निवासी ने बताया, "ये केवल बलों के लिए नहीं हैं, यह भारतीय मीडिया के लिए भी है।" पत्रकारों, विशेषकर भारतीय समाचार संगठनों के लिए काम करने वालों के ख़िलाफ आक्रोश गहराता जा रहा है । सबसे हालिया ट्रिगर मुख्यधारा के मीडिया के एक वर्ग द्वारा 9 अगस्त को सौरा में किसी भी विरोध का खंडन है ।
कई समाचार चैनलों ने आरोप लगाया कि ब्रिटिश ब्रॉडकास्टिंग कॉरपोरेशन और अल जज़ीरा द्वारा प्रसारित किए जा रहे विरोध के फुटेज वास्तव में पुराने थे और प्रदर्शनकारियों पर अर्धसैनिक बलों ने गोली नहीं चलाई थी ।
केंद्र सरकार ने इस बात से भी इनकार किया कि प्रदर्शनकारियों पर बलों ने गोलियां चलाई या फ़िर उन्हें चोट पहुंचाई गई थी । शुरुआत में सरकार ने विदेशी समाचार संगठनों पर सौरा में विरोध प्रदर्शनों के मामले को "बनावटी" और "नकली समाचार" चलाने का भी आरोप लगाया था, लेकिन बाद में विरोध प्रदर्शनों को स्वीकार करते हुए बात से मुकर गयी ।
खुले स्रोत के आंकड़ों की मदद से बूम ने दिखाया कि सौरा में विरोध प्रदर्शन हुआ था जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा बताया गया है । यहां पढ़ें
कोई भी मौका ना छोड़ने और मीडिया और सरकार की किसी भी प्रतिकूल प्रतिक्रिया का मुकाबला करने के लिए सौरा के लोग बकरी ईद के त्योहार पर 12 अगस्त को अपने अगले विरोध के लिए तैयारी के साथ आए ।
विरोध प्रदर्शन कर रहे प्रदर्शनकारियों ने लिखी तारीखों के साथ तख़्तियों को पकड़ा । जैसा कि नीचे दी गई तस्वीर में दिखाई दे रहा है एक प्रदर्शनकारी ने तख़्ती पकड़ी है जिस पर दिनांक 12-08-2019 के साथ हाथों से लिखा है, “हमें आजादी चाहिए। गो इंडिया, गो बैक।”
16 अगस्त 2019 को आयोजित विरोध प्रदर्शनों के लिए भी ऐसा ही किया गया था जिसमें तख़्तियों पर तारीख के साथ लिखा गया था, 'कश्मीर का एक ही समाधान है।'
बूम ने सौरा के निवासियों से बात की जो विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व कर रहे हैं । नाम न छापने की शर्त पर नेताओं में से एक ने कहा, “हम निराश थे लेकिन आश्चर्यचकित नहीं थे, जिस तरह से 'भारतीय मीडिया' ने विरोध प्रदर्शन को चित्रित नहीं किया था । हमने चैनलों को बेतुकी बातों का दावा करते देखा जैसे कुछ ने कहा पीओके में विरोध प्रदर्शन की घटना है और कुछ ने कहा कि वे पुराने थे और अनुच्छेद 37 को हटाने के हालिया फैसले के बाद ऐसा कभी नहीं हुआ।"
अपनी आवाज ना सुने जाने से परेशान निवासियों ने एक छोटी सी बैठक की और आरोपों से निपटने के तरीकों के बारे में सोचा । उन्होंने बताया, “हम अलग-अलग तरीकों के साथ सामने आए लेकिन हमने जो चुना था वह प्लेकार्ड पर तारीख लिखना था । इसलिए विरोध प्रदर्शन में कम से कम 5-6 लोगों को इस पर लिखे गए विरोध की तारीख के साथ तख्तियां दे दी गईं । जो लोग इन तख़्तियों को पकड़े हुए थे, उनमें से अधिकांश के साथ कई जगहों पर विरोध प्रदर्शनों के दौरान फैल गए थे ताकि अगर कोई अलग कोण से शूटिंग कर रहा था, तो यह अभी भी दिखाई देगा ।"
उन्होंने आगे बताया कि प्रदर्शनकारियों ने भी तख़्तियों पर समय लिखने के बारे में सोचा । एक अन्य नेता ने कहा, "हम यह सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कोशिश करेंगे कि विरोध प्रदर्शन को नकली, पुराना न कहा जाए या यह ना कहा जाए कि भारतीय कश्मीर में ऐसा नहीं हो रहा है । भारतीय मीडिया कब तक हमारी अनदेखी करेगा या हमारे बारे में झूठ बोलेगा?"