अल्बर्ट आइंस्टाइन और यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्न के नाम से वायरल फ़र्ज़ी पत्र की दास्तान
यूनिवर्सिटी ऑफ बर्न ने बूम को बताया कि यह एक फ़र्ज़ी पत्र है ।
अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व प्रसिद्ध भौतिक विज्ञानी थे और चूँकि विश्व प्रसिद्ध थे तो फ़ेक न्यूज़ के लपेटे में आना तो लाज़िमी है | तो हुआ यूँ कि फ़िल्म निर्माता शेखर कपूर ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ बर्न के नाम से आइंस्टीन को भेजा गया एक फ़र्ज़ी पत्र ट्वीट कर इस सालों पुरानी फ़ेक न्यूज़ को फिर हवा दे दी है |
यह पत्र कथित तौर पर बर्न विश्वविद्यालय ने अल्बर्ट आइंस्टीन को 6 जून 1907 में उनकी डॉक्टरेट की याचिका को ख़ारिज करते हुए भेजा था | इस वायरल पत्र में बताया गया है कि विल्हेम हेनरिक नामक विज्ञान के डीन ने आइंस्टीन की डॉक्टरेट की याचिका यह कहते हुए ख़ारिज कर दी थी कि प्रकाश की प्रकृति एवं उनके द्वारा बताया गया समय और अंतराल में सम्बन्ध काफी हद तक उग्र है और उनके सिद्धांत "भौतिकी से अधिक कला" पर निर्भर हैं |
बूम ने बर्न यूनिवर्सिटी से संपर्क किया और पता लगाया कि यह पत्र फ़र्ज़ी है | विश्वविद्यालय के मीडिया रिलेशन्स से ब्रिगिट बुशर ने बूम को बताया, "यह एक फॉर्जरी है | यह पत्र सालों से सोशल मीडिया पर वायरल है |"
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गौरतलब है कि 28 अक्टूबर 1907 को डीन जी. टॉब्लर ने वास्तव में आइंस्टाइन की याचिका रद्द की थी पर वह डॉक्टरेट की नहीं बल्क़ि हैबिलिटेशन की याचिका ख़ारिज हुई थी | और कारण आइंस्टीन के सिद्धांतों की कमी या खामी होना नहीं था बल्क़ि याचिका इसलिए ख़ारिज की गयी थी क्योंकि आइंस्टीन ने 'हैबिलिटेशन थीसिस' जमा नहीं की थी | हैबिलिटेशन यानी पोस्ट-डॉक्टोरल यूनिवर्सिटी डिग्री विथ लेक्चर क्वालिफिकेशन | यह किसी व्यक्ति को यूनिवर्सिटी में पढ़ाने की योग्यता का करार देती है |
इस लेटर के साथ शेखर कपूर ने लिखा 'जीवन का सबक: यदि आप अपने आप में विश्वास करते हैं, तो जुनून और दृढ़ता रखें, आप अपने लक्ष्यों को प्राप्त करेंगे। यहां तक कि आइंस्टीन को भी शुरू में खारिज कर दिया गया था। उनकी थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविरी को बहुत कम भौतिकी, अधिक कला होने के कारण खारिज कर दिया गया था!
(English: Lessons of Life: if you believe in yourself, have passion and perseverence, you will achieve your goals. Even Einstien was rejected initially. His Theory of Relativiry was rejected as being much less Physics, more Art !)
यह दावे फ़ेसबुक पर भी पोस्ट किये गए हैं |
यहाँ तक की दो साल पहले थिरुवनंतपुरम से कांग्रेस के सांसद शशि थरूर ने भी इसी पत्र को ट्वीट किया था | यहाँ देखें | हालांकि बाद में उन्होंने अपनी गलती मानी थी और ट्वीट कर इस बात की जानकारी दी थी |
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फ़ैक्ट चेक
बूम ने पत्र की वास्तविकता जानने के लिए बर्न यूनिवर्सिटी से संपर्क किया | एक ईमेल में विश्वविद्यालय के मीडिया रिलेशन्स के ब्रिगिट बुशर ने हमें बताया, "यह एक कूटरचना यानी फॉर्जरी है | यह पत्र सालों से सोशल मीडिया पर वायरल है |"
इसके बाद हमें बर्न यूनिवर्सिटी की ऑनलाइन मैगज़ीन मिली | इस मैगज़ीन में 2016 में एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जो विश्वविद्यालय के आर्काइविस्ट यानी पुरातन लेखों पर काम करने वाले निक्लॉस बूटिकोफेर ने लिखी थी |
लेख में उन्होंने साफ़ करते हुए कहा है कि, "यह दस्तावेज तुलनात्मक रूप से बेकार तरीके से फोर्ज किया गया है | इसके पीछे शोध नहीं किया गया है |" इसके अलावा उन्होंने कुछ बिंदुओं पर गौर कर बताया कि वायरल हो रहा यह पत्र फ़र्ज़ी है |
- संकेतित तिथि में, दर्शन और इतिहास संकाय और दर्शनशास्त्र और प्राकृतिक विज्ञान संकाय को अभी तक अलग नहीं किया गया था
- इस विश्विद्यालय में विल्हेम हेनरिक नाम के ना तो कभी कोई डीन रहे हैं और ना ही कोई लेक्चरर
- आइंस्टीन - जो पैदाइशी जर्मन थे और 1901 में नैचरलाइज़्ड हो गये थे - और विश्वविद्यालय के बीच संवाद जर्मन में ही हुआ होगा ना कि अंग्रेजी में | बुटिकोफेर को शंका है कि इस फ़र्ज़ी पत्र बनाने वाले को जर्मन नहीं आती
- «डीन हेनरिक» के हस्ताक्षर के बगल में स्टाम्प का बर्न विश्वविद्यालय के साथ कोई संबंध नहीं है। बल्क़ि यह हंगरी के कोट ऑफ़ आर्म्स को दर्शाता है
- इस फोर्ज किये गए पत्र में सीडलेर्स्ट्रासे लिखा है जो 1931 के बाद से मौजूद है | इसके पहले इस जगह को स्टर्नवरतःस्त्रासे कहा जाता था | इसके अलावा अब मौजूद पोस्ट कोड उस वक़्त मौजूद नहीं था
वास्तविक कहानी
यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि 17 जून 1907 को अल्बर्ट आइंस्टीन ने थेओरिटिकल फिजिक्स में हैबिलिटेशन के लिए डायरेक्टर ऑफ़ एजुकेशन, केंटन ऑफ़ बर्न को याचिका दी थी |
यह एप्लीकेशन बाद में विश्वविद्यालय के फ़ैकल्टी ऑफ़ फिलॉसोफी को भेजी गयी जहाँ सदस्यों ने 28 अक्टूबर 1907 को एक बैठक के दौरान इसे ख़ारिज कर दिया था | हालांकि ख़ारिज करने का कारण यह नहीं था कि उनके सिद्धांत ख़ारिज हुए थे, बल्क़ि यह एप्लीकेशन इसलिए ख़ारिज हुई क्योंकि आइंस्टीन ने हैबिलिटेशन थीसिस नहीं जमा की थी |
इसके विपरीत तब भी आइंस्टीन की अपने क्षेत्र में सहयोगियों के बीच एक मजबूत प्रतिष्ठा थी, जैसा कि पॉल ग्रूनर के आवेदन से साबित होता है जो सैद्धांतिक और गणितीय भौतिकी के प्रोफेसर थे । अपनी "प्रमुख वैज्ञानिक उपलब्धियों" के कारण, वो थीसिस की कमी के बावजूद, आइंस्टीन को हैबिलिटेशन दिलवाना चाहते थे।
नीचे वास्तविक पत्र देखा जा सकता है | इसमें बाईं ओर (लाल घेरे में) एप्लीकेशन ख़ारिज करने का कारण दिया गया है और दाईं और (हरे घेरे में) वह वास्तविक पत्र है जो अल्बर्ट आइंस्टीन को भेजा गया था |
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