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      फ़ैक्ट चेक

      क़रीब पांच साल पुरानी ख़बर को शेयर करके राष्ट्रपति पर निशाना साधा जा रहा है

      सोशल मीडिया यूज़र्स दावा कर रहे हैं कि पिछले पांच साल से ‘संघवाद’ के साथ मजबूती से खड़े रहने के बाद अब राष्ट्रपति को दलित, ओबीसी और आदिवासी याद आ रहे हैं.

      By - Mohammad Salman | 7 July 2022 10:36 AM GMT
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    • क़रीब पांच साल पुरानी ख़बर को शेयर करके राष्ट्रपति पर निशाना साधा जा रहा है

      "राष्ट्रपति ने पूछा – ओबीसी, एससी, एसटी, महिला जज इतने कम क्यों?"

      इस शीर्षक के साथ एक अख़बार में छपी ख़बर की एक कतरन को सोशल मीडिया पर ग़लत दावे के साथ शेयर किया जा रहा है. वायरल अख़बार की इस कतरन की ख़बर में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद न्यायपालिका में महिला, एससी,एसटी और ओबीसी जजों की कम संख्या पर चिंता जता रहे हैं.

      सोशल मीडिया यूज़र्स अख़बार की इस कतरन को शेयर करते हुए राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद पर सवाल उठा रहे हैं. और इस ख़बर को हालिया मानकर दावा कर रहे हैं कि पिछले पांच साल से 'संघवाद' के साथ मजबूती से खड़े रहने के बाद अब राष्ट्रपति दलित, ओबीसी और आदिवासी याद आ रहे हैं.

      बूम ने पाया कि वायरल अख़बार की कतरन में जो ख़बर है, वो क़रीब पांच साल पुरानी है.

      आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ द्रौपदी मुर्मू की एडिटेड तस्वीर वायरल

      फ़ेसबुक पर अख़बार की इस कतरन को बड़ी संख्या में शेयर किया जा रहा है.

      एक फ़ेसबुक यूज़र ने इसे शेयर करते हुए कैप्शन दिया, "पिछले 5 साल #संघवाद के साथ मज़बूती के से खड़े रहने के बाद विदाई के वक़्त #दलित, #ओबीसी और#आदिवासी याद आए!"


      पोस्ट यहां देखें.


      पोस्ट यहां देखें.

      अन्य पोस्ट यहां, यहां और यहां देखें.

      एन राम और तमिलनाडु के मंत्री की तस्वीर सुप्रीम कोर्ट जज के रूप में वायरल

      फ़ैक्ट चेक

      बूम ने संबंधित कीवर्ड की मदद से वायरल अख़बार की ख़बर को खोजा तो इसी शीर्षक के साथ इन्शोर्ट्स पर 26 नवंबर 2017 को प्रकाशित रिपोर्ट मिली.


      रिपोर्ट में लिखा है कि राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राष्ट्रीय विधि दिवस के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायपालिका में महिला, एससी, एसटी और ओबीसी जजों की कम संख्या पर चिंता जताई.

      हमने अख़बार की कतरन को खोजा तो द रिपब्लिक प्रेस नाम के फ़ेसबुक पेज पर 26 नवंबर 2017 को शेयर किये गए एक पोस्ट के रूप में अख़बार का पूरा पन्ना मिला.

      पोस्ट के साथ कैप्शन में अख़बार का नाम दैनिक जागरण और तारीख़ 26 नवंबर 2017 लिखी है.

      अख़बार के शीर्षक के ऊपर लिखा है- "देश के 3 बड़े मुद्दों पर शीर्ष संविधानिक पदों पर बैठे तीन व्यक्तियों की टिप्पणी..."


      इससे हिंट लेते हुए हमने गूगल सर्च किया तो साल 2017 में 'देश के 3 बड़े मुद्दों पर शीर्ष संवैधानिक पदों पर बैठे तीन व्यक्तियों की टिप्पणी' शीर्षक के साथ प्रकाशित दैनिक भास्कर की एक रिपोर्ट मिली.

      हमने यह रिपोर्ट ध्यानपूर्वक पढ़ा और पाया कि रामनाथ कोविंद के हवाले से जिन बातों का ज़िक्र वायरल अख़बार की ख़बर में है, ठीक वही बातें भास्कर की इस रिपोर्ट से मेल खाती हैं. मसलन- राष्ट्रपति का वक्तव्य, सब-हेडिंग और आंकड़े.


      हमने इस संबंध में कुछ और मीडिया रिपोर्ट्स चेक किया. 25 नवंबर 2017 को प्रकाशित हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि दिल्ली में राष्ट्रीय विधि दिवस सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद राष्ट्रपति कोविंद ने कहा कि न्यायपालिका को भारत की विविधता का प्रतिनिधित्व करने की ज़रूरत है. निचली अदालतों, उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के 17,000 जजों में से केवल 4,700 ही महिलाएं हैं, जो लगभग चार में से एक है. ओबीसी, एससी और एसटी जैसे पारंपरिक रूप से कमजोर वर्गों का अस्वीकार्य रूप से कम प्रतिनिधित्व है, खासकर उच्च न्यायपालिका में."

      न्यायपालिका में ओबीसी, एससी, एसटी और महिला जजों की कम संख्या पर अपना वक्तव्य रखते राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को डीडी न्यूज़ के यूट्यूब चैनल पर 25 नवंबर 2017 को अपलोड किये गए वीडियो में 9 मिनट की समयावधि से सुना जा सकता है.

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      Tags

      President of IndiaRamnath KovindSupreme CourtViral NewsFact Check
      Read Full Article
      Claim :   पिछले 5 साल संघवाद के साथ मज़बूती से खड़े रहने के बाद विदाई के वक़्त दलित, ओबीसी और आदिवासी याद आए!
      Claimed By :  Facebook Posts
      Fact Check :  False
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