कोरोना संकट: नाइट्रोजन प्लांट से आखिर कैसे होगा ऑक्सीजन का प्रोडक्शन?
बूम ने पता लगाने की कोशिश की कि आखिर कैसे नाइट्रोजन जनरेशन प्लांट्स को ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट्स में तब्दील किया जा सकता है. पढ़िए ये रिपोर्ट.
कोरोनावायरस महामारी (coronavirus pandemic) के दूसरे लहर का प्रकोप जारी है. संक्रमण के 4 लाख से अधिक मामले सामने आने लगे हैं और मौतें भी ज़्यादा हो रही हैं. इसी बीच देश भर के हॉस्पिटल्स में हो रही ऑक्सीजन (oxygen) की किल्लत ने इस महामारी (pandemic) को और विकराल रूप दे दिया है.
सोशल मीडिया पर पेशेंट्स से लेकर हॉस्पिटल्स तक ऑक्सीजन की गुहार लगा रहें हैं. कहीं पर गुरुद्वारों ने 'ऑक्सीजन लंगर' खोल रखे हैं तो कही वालंटियर्स (volunteers) ऑक्सीजन पंहुचा रहे है. बड़े बड़े मल्टीनेशनल्स (multinationals) भी हॉस्पिटल्स को लिक्विड ऑक्सीजन (liquid oxygen) मुहैया करा रहें हैं. भारतीय रेल से लेकर भारतीय वायु सेना तक ऑक्सीजन की इस कमी को पाटने में पूरी शिद्दत से लगा हुआ है.
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इसी बीच उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कार्यालय के ऑफिशियल ट्विटर हैंडल @CMOfficeUP से एक ट्वीट में मुख्यमंत्री के हवाले से कहा गया कि 'तकनीकी संस्थानों के विशेषज्ञों से संवाद स्थापित कर हवा से नाइट्रोजन बनाने वाले प्लांट को ऑक्सीजन बनाने वाले प्लांट में कन्वर्ट करने की संभावनाओं को तलाशा जाए'.
बूम ने पता लगाने की कोशिश की कि आखिर कैसे नाइट्रोजन जनरेशन प्लांट्स को ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट्स में तब्दील किया जा सकता है.
जानिए तकनीक
इस समस्या से निपटने के लिए आईआईटी बॉम्बे (IIT Bombay) के एक प्रोफ़ेसर और उनकी टीम ने एक सरल तरीक़ा निकाला है.
बूम ने डीन (R&D) और इंस्टिट्यूट चेयर प्रोफ़ेसर, डिपार्टमेंट ऑफ़ मैकेनिकल इंजीनियरिंग (Mechanical engineering), आई.आई.टी बॉम्बे मिलिंद आत्रेय से इस बाबत बात की. आत्रेय ने हमें बताया कि उन्होंने टाटा कंसल्टिंग इंजीनियर्स लिमिटेड (TCEL) के साथ मिलकर नाइट्रोजन जनरेशन प्लांट्स (PSA Nitrogen generation plants) को ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट्स (Oxygen generation plants) में तब्दील करने का डेमोंस्ट्रेशन दिया है.
नाइट्रोजन प्लांट्स (Nitrogen plants) पूरे देश में मौजूद हैं. यह फ़र्टिलाइज़र, आयल और गैस, फ़ूड और बेवरेजेज़ इंडस्ट्रीज़ में मौजूद होते हैं. बूम से बात करते हुए मिलिंद आत्रेय नाइट्रोजन जनरेशन प्लांट को ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट में तब्दील करने की पूरी प्रक्रिया समझाते हैं.
प्रक्रिया समझें
"नाइट्रोजन जनरेशन प्लांट्स जो होते हैं उसमें दो मुख्य कॉम्पोनेन्ट होते हैं. एक एयर कंप्रेसर (air compressor) और दूसरा प्रेशर स्विंग एडसॉर्प्शन (pressure swing adsorption or PSA) यूनिट. एयर कंप्रेसर वातावरण की हवा को जल वाष्प (water vapour) और अन्य गंदगी साफ़ कर के PSA चैम्बर में भेजता है. इस प्रेशर स्विंग एडसॉर्प्शन चैम्बर में कार्बन मॉलिक्यूलर चलनी (carbon molecular sieves) होती है जो ऑक्सीजन को एडसोर्ब (adsorb) कर लेते/रोक देती हैं और नाइट्रोजन पास हो जाती है. इससे नाइट्रोजन जेनेरेट होती है," मिलिंद आत्रेय ने बताया.
- एडसोर्ब यानी कि अधिशोषण की प्रक्रिया - ये एक प्रक्रिया होती है जिसमें किसी वस्तु पर कोई अन्य बाहरी वास्तु सोखी नहीं जाती है बल्कि चिपकती है. यहां पढ़ें.
आत्रेय आगे बताते हैं कि चूँकि नाइट्रोजन वातावरण में करीब 80% है और ऑक्सीजन लगभग 20% प्रतिशत तो PSA चैम्बर में बदलाव के साथ साथ कुछ छोटे मोटे अन्य बदलाव भी करने होंगे. लेकिन यह सारे बदलाव के साथ तीन दिनों में किसी नाइट्रोजन जनरेशन प्लांट को ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट बनाया जा सकता है.
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हालांकि वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा कम होने के वजह से प्रोडक्शन करीब एक चौथाई तक (1/4) तक घट जाएगा. उदाहरण के तौर पर यदि एक दिन में नाइट्रोजन के 100 सिलिंडरों का उत्पाद होता था तो ऑक्सीजन के केवल 20-25 सिलिंडर ही तैयार होंगे. "काम खत्म होने पर इस पुनः नाइट्रोजन जनरेटर बनाया जा सकेगा," उन्होंने कहा.
कैसे होगा बदलाव?
मिलिंद आत्रेय आगे बताते हैं कि इस प्रक्रिया के दौरान हमें एडसोरबेन्ट मटेरियल (adsorbent material) बदलना होता है. जहाँ प्लांट में नाइट्रोजन बनाने के लिए ऑक्सीजन को रोका जा रहा था वहीं एडसोरबेन्ट बदल कर नाइट्रोजन को रोका जाएगा और ऑक्सीजन जनरेट की जा सकेगी.
"ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट में तब्दीली के लिए हमें PSA चैम्बर में कार्बन मॉलिक्यूलर सिव्स (carbon molecular sieves) की जगह ज़ियोलाइट मॉलिक्यूलर सिव्स (zeolite molecular sieves) लगाने होंगे जिससे ऑक्सीजन की जगह नाइट्रोजन एडसोर्ब (adsorb) हो और ऑक्सीजन गैस जनरेट हो सके," आत्रेय ने कहा.
"इसके अलावा कुछ छोटे मोटे बदलाव करने होंगे जिसमें कूल मिलाकर तीन दिनों का समय लगेगा," आत्रेय ने आगे कहा. इसके अलावा काम हो जाने पर प्लांट को पुनः नाइट्रोजन जनरेटर बनाया जा सकेगा, उन्होंने कहा.
- ज़ियोलाइट दरअसल अल्लुमिनोसिलिकेट मिनरल्स (aluminosilicate minerals) होने हैं जो कमर्शियल एडसोरबेन्ट और कैटेलिस्ट/उत्प्रेरक (catalyst) की तरह इस्तेमाल होते हैं.
किस क्वालिटी की होगी ऑक्सीजन?
डेमोंस्ट्रेशन के हिसाब से 3.5 एटमॉस्फेरिक (atmospheric) दबाव (3.5 ATM) पर उत्पन्न ऑक्सीजन करीब 93%-96% शुद्ध है. यह मान्य शुद्धता है.
"शुद्धता को ऊपर नीचे किया जा सकता है. चूँकि वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा नाइट्रोजन से कम है, हमें PSA चैम्बर में ज़्यादा देरी तक गैस गुजारनी पड़ेगी तो शुद्धता बढ़ाई जा सकती है," आत्रेय ने बताया.
केंद्र सरकार ने भी जताई रूचि
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 3 मई को नाइट्रोजन प्लांट्स को ऑक्सीजन प्लांट्स में बदलने की प्रक्रिया की समीक्षा की. परिस्थिति के मुताबिक़ केंद्र सरकार ने कहा है कि 1,500 PSA ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट्स विकसित किए जा रहे हैं.
मीडिया के साथ बातचीत में स्वास्थ मंत्रालय के जॉइंट सेक्रेटरी ने कहा, "ऑक्सीजन की उपलब्धता बढ़ाने के लिए हम नाइट्रोजन प्लांट्स को ऑक्सीजन प्लांट्स में तब्दील करने पर काम कर रहे हैं. हमनें 14 इंडस्ट्रीज़ जिनमें PSA नाइट्रोजन प्लांट्स हैं और 37 प्लांट्स पहचाने हैं."