ऐ भगत सिंह तू ज़िंदा है हर एक लहू के कतरे में: जन्मदिवस विशेष
अगर सरदार भगत सिंह की सामाजिक राजनैतिक वैचारिकी को आप समझना चाहते हैं तो उनसे जुड़ा ये साहित्य जरूर पढ़िये.
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में सबसे ज़्यादा वैचारिक और राजनीतिक रूप से सजग इंक़लाबी नौजवान, सरदार भगत सिंह का स्थान आज भी अजर अमर है. भगत सिंह जैसी इक़बालिया शख़्सियत किसी और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की नहीं है. उसका कारण ये है कि भगत सिंह बहुत छोटी उम्र में ही साम्राज्यवाद, राष्ट्रवाद, साम्प्रदायिकता और समतामूलक समाज निर्माण जैसी सतही लेकिन महत्वपूर्ण बातों पर बहुत स्पष्ट राय रखते थे और इसे जन जन तक पहुँचाने की साहस भी रखते थे. आज भगत सिंह का 114वाँ जन्मदिन है.
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जिस दिन फाँसी दी गई,
उनकी कोठरी में लेनिन की किताब मिली
जिसका एक पन्ना मुड़ा हुआ था,
पंजाब की जवानी को
उसके आख़िरी दिन से
इस मुड़े पन्ने से बढ़ना है आगे, चलना है आगे
पंजाब के क्रांतिकारी कवि अवतार सिंह संधू 'पाश' ने ये लाइनें सरदार भगत सिंह के लिये लिखी थीं. पूरे पंजाब भर के युवाओं को एक नये समाज निर्माण के लिये प्रेरित करती इन लाइनों के नायक सरदार भगत सिंह का जन्म पंजाब के लायलपुर के बंगा गाँव में 28 September 1907 को हुआ है जो अब पाकिस्तान पंजाब का हिस्सा है.
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भगत सिंह का पूरा जीवन ब्रिटिश साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ लड़ते हुए बीता और बहुत कम उम्र में ही भगत सिंह की गिरफ़्तारी हो गई. भगत सिंह की वैचारिक प्रतिबद्धता इतनी मज़बूत थी कि हिंदुस्तान की तमाम बड़ी हस्तियों के हस्तक्षेप के बावजूद भी ब्रिटिश हुकूमत ने भगत सिंह की फाँसी की सजा माफ़ नहीं की.
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फाँसी पर जाने से पहले वे लेनिन की जीवनी पढ़ रहे थे और जब उनसे उनकी आख़िरी इच्छा पूछी गई तो उन्होंने कहा कि वह लेनिन की जीवनी पढ़ रहे हैं और उन्हें वह पूरी करने का समय दिया जाए. भगत सिंह को जेल के अधिकारियों ने जब यह सूचना दी कि उनकी फाँसी का वक्त आ गया है तो उन्होंने कहा "ठहरिए! पहले एक क्रान्तिकारी दूसरे से मिल तो ले." फिर एक मिनट बाद किताब छत की ओर उछाल कर बोले "ठीक है अब चलो."
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भगत सिंह पर वैसे तो अब तक बहुत कुछ लिखा पढ़ा जा चुका है फिर भी भगत सिंह का कुछ मौलिक लेखन और उनके ऊपर लिखे कुछ उत्कृष्ट लेखन के बारे में हम आपको बतायेंगे. अगर सरदार भगत सिंह की सामाजिक राजनैतिक वैचारिकी को आप समझना चाहते हैं तो उनसे जुड़ा ये साहित्य जरूर पढ़िये.
(1) मैं नास्तिक क्यों हूँ
सरदार भगत सिंह ने ये छोटी की पुस्तिका खुद लिखी थी जो भगत सिंह ने अपने अंतिम दिनों में जेल की कालकोठरी में लिखी थी. ये पहली बार लाहौर से छपने वाले अंग्रेज़ी पत्र 'द् पीपुल' में 1931 में छपा था. 'मैं नास्तिक क्यों हूँ' में भगत सिंह ने सृष्टि की भौतिकवादी समझ पेश करते हुए उसके पीछे किसी मानवेतर ईश्वरीय सत्ता के अस्तित्व को वैज्ञानिक ढंग से निराधार सिद्ध किया है और नास्तिक बनने के अपने कई वैज्ञानिक तर्क प्रस्तुत किये हैं.
(2) बम का दर्शन
भगत सिंह को लेकर आम जन में ये धारणा रहती है कि भगत एक हिंसात्मक तरीक़े से आज़ादी लेने वाले क्रांतिकारी थे. जबकि ऐसा बिल्कुल नहीं है, भगत ने अपनी इस पुस्तिका में असेंबली में बम फेंकने का तार्किक कारण दिया है. 23 दिसंबर 1929 को क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश साम्राज्यवाद के स्तंभ वायसराय की गाड़ी उड़ाने का प्रयत्न किया था जो असफल रहा.
गाँधी जी ने इस घटना पर एक कटुतापूर्ण लेख 'बम की पूजा' लिखा. जिसमें उन्होंने वायसराय को देश का शुभचिंतक और क्रांतिकारियों को आज़ादी के रास्ते में रोड़ा अटकाने वाले कहा. इसी के जवाब में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की ओर से भगवतीचरण वोहरा और सरदार भगत सिंह ने "बम का दर्शन" लिखा. भगत सिंह उस समय जेल में थे जब इस लेख को उन्होंने अंतिम रूप दिया. 26 जनवरी 1930 को इस लेख को देश भर में बाँट दिया गया.
(3) भगत सिंह और उनके साथियों के सम्पूर्ण दस्तावेज
ख्यातिप्राप्त शिक्षाविद प्रोफ़ेसर चमन लाल का भगत सिंह और जीवन पर बहुत शानदार काम है. उनके द्वारा संपादित इस किताब में भगत सिंह द्वारा लिखे गये ख़त, पर्चे और पुस्तिकाओं के अलावा तमाम छोटी बड़ी जानकारियाँ उपलब्ध हैं. भगत सिंह का उनकी माँ, चाची और बहन को लिखे कई पत्रों का संकलन इस किताब में हैं जिनसे भगत सिंह की वैचारिक प्रतिबद्धता झलकती है. हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के साथियों के नाम भी भगत सिंह ने कई ख़त लिखे थे जो इस किताब में मौजूद हैं.
(4) भगत सिंह की जेल डायरी
गिरफ़्तार होने के बाद भगत सिंह ने जेल भी पढ़ाई लिखाई का काम जारी रखा था. भगत सिंह ने जेल में रहने के दौरान राहुल सांकृत्यान, लेनिन, कार्ल मार्क्स, फ़्रेडेरिक एंगेल्स, मक्सिम गोर्की सहित तमाम विचारकों को पढ़ा और उनसे प्रेरणा लेकर लिखा भी.
भगत सिंह ने अपनी जेल डायरी में किसानों, मज़दूरों, छात्रों और समाज के वर्किंग क्लास की जनता की समस्याओं पर सैद्धांतिक रूप से लिखा है और समाजिक असमानता के कारणों की भी बारीक पड़ताल की है. उन्होंने कहा था कि आज़ादी सिर्फ़ राजनीतिक सत्ता का हस्तांतरण नहीं बल्कि देश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में भी एक व्यापक और बुनियादी परिवर्तन की आवश्यकता होगी.
(5) संस्मृतियाँ
शिव वर्मा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के नायकों पर बहुत महत्वपूर्ण लेखन किया है. हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन के सभी महत्वपूर्ण क्रांतिकारियों का महती दस्तावेज़ीकरण शिव वर्मा की इस किताब में किया गया है. भगत सिंह के साथ उनके साथियों के कई संस्मरणों का ज़िक्र इस किताब में है.