चुनाव कैसा भी हो, प्रचार हमेशा ध्यान खींचते हैं. लोकसभा चुनाव में प्रमुख राजनीतिक दलों के अलावा छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार भी खूब जोर लगा रहे हैं. इनके पास बड़े दलों जितना फंड और मैनपॉवर भले ही न हो लेकिन प्रचार के अनोखे ढंग से ये चुनाव में दमखम दिखा रहे हैं. कोई केतली लेकर प्रचार कर रहा है तो कोई खाट, तो कोई जूतों की माला गले में पहनकर लोगों से वोट अपील कर रहा है.
बूम ने लोकसभा चुनाव के लिए उत्तर प्रदेश, गुजरात और मध्य प्रदेश के ऐसे उम्मीदवारों से बात की जो इस बार दिलचस्प तरीके से चुनाव प्रचार कर वोट मांग रहे हैं.
चप्पल की माला पहनकर चुनाव प्रचार
उम्मीदवार: पंडित केशव देव गौतम
सीट: अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश की अलीगढ़ लोकसभा सीट पर इस बार 14 उम्मीदवार मैदान में हैं. वैसे तो सत्ताधारी बीजेपी के सतीश कुमार गौतम और सपा के बिजेंद्र सिंह के बीच सीधा मुकाबला है लेकिन इस लड़ाई को और दिलचस्प बना रहे हैं निर्दलीय उम्मीदवार पंडित केशव देव गौतम. वह चप्पलों से बनाई माला गले में डालकर प्रचार करते हैं. दरअसल केशव को चुनाव आयोग से चप्पल चुनाव चिह्न मंजूर हुआ है. वह कहते हैं, "मैंने जूता चुनाव चिह्न के लिए आवेदन किया था लेकिन वह किसी और दल को रजिस्टर्ड हो गया. फिर हमने चप्पल ले लिया."
केशव बताते हैं, "पिछले कई सालों से करप्शन, अत्याचार, शोषण और बलात्कार जैसे अपराध बढ़ रहे हैं. हमने इनके विरुद्ध जनता को एक विकल्प दिया है कि कोई भी पीड़ित किसी दबंग, अपराधी और माफिया पर सीधे चप्पल नहीं मार सकता. उसे कानून का सहारा भी लेना पड़ता है लेकिन उसके बाद भी गुनहगार कई बार छूट जाता है .तो अबकी बार जनता के लिए मैं चुनाव चिह्न के रूप में चप्पल का विकल्प लाया हूं."
केशव आगे कहते हैं, " जनता मुझे संसद भेजकर उन आतातायी, अत्याचारी और भ्रष्टाचारियों पर सीधा चप्पल लगा सकती है." केशव ने सात चप्पलों की एक माला बनाई है. वह कहते हैं, "सात तरह के अत्याचारी हैं- दुराचारी, भ्रष्टाचारी, शराबी, बलात्कारी, नशाखोरी, कालाबाजारी, ठग विद्या वाला. हर एक माला से एक लाख वोट की अपील करता हूं. ऐसे ही मैंने सात मालाएं बनाई हैं. सात मालाएं यानी 7 लाख वोट पड़े तो इन अत्याचारियों पर चप्पल लगाकर हम लोकसभा पहुंच जाएंगे."
यही नहीं केशव ने एक स्लोगन भी बनाया है, 'जो करेंगे अत्याचार- भ्रष्टाचार, उसको मारो अबकी बार चप्पल चार.' केशव जनता का काम न करने पर खुद को सजा देने की बात कहते हैं. वह कहते हैं, "हमको अगर जनता ने सांसद बनाकर दिल्ली भेजा और हमने विकास के लिए कोई काम नहीं किया या सुविधाएं नहीं दिलाई तो हम जनता को अधिकार देंगे कि हमारी चप्पल हमारे ही लगाए."
केशव ने बताया कि उन्होंने अपनी लोकसभा में हर तरफ प्रचार किया. वह सुबह सात बजे से रात आठ तक कैंपेनिंग करते थे. इस दौरान वह लोगों से मिलते थे और उनसे वोट की अपील करते थे. बूम से बातचीत के वक्त वह अलीगढ़ शहर में प्रचार कर रहे थे.
केशव ने बताया कि उन्होंने सबसे पहले 2017 में जूता चुनाव चिह्न से विधानसभा का चुनाव लड़ा था. इसके बाद 2023 में वार्ड 69 से नगर पार्षद का चुनाव लड़ा था.
केशव ने बताया कि राजनीति में आने से पहले वह समाज सेवा कर रहे थे. उनके संगठन का नाम भ्रष्टाचार विरोधी सेना है. वह कहते हैं, "मैं सूचना का अधिकार (आरटीआई) एक्टिविस्ट हूं. भ्रष्टाचारियों पर कार्रवाई की मांग करते हैं लेकिन उन पर कार्रवाई नहीं होती इसलिए मजबूरन हमें राजनीति में आना पड़ा."
अलीगढ़ के थाना बन्नादेवी प्रतिभा कॉलोनी निवासी केशव देव ने दम भरते हुए कहते हैं, "पार्टी के नेताओं से ज्यादा जनता मुझे जानती है. ये सारी पार्टियां अलीबाबा 40 चोर भ्रष्टाचारी हैं. गठबंधन करते हैं, सत्ता में आते हैं, फिर अपने फायदे के लिए सत्ता गिराते हैं और फिर सत्ता बनाते हैं. इन्हें जॉइन करके मैं चोर नहीं बनना चाहता." अलीगढ़ में दूसरे चरण यानी 26 अप्रैल को वोटिंग है.
उम्मीदवार का कटआउट लेकर प्रचार करने पहुंचीं दोनों पत्नियां
उम्मीदवार: चैतर वसावा
सीट: भरूच, गुजरात
INDIA गठबंधन के मद्देनजर गुजरात की भरूच सीट आम आदमी पार्टी (आप) के हिस्से आई. इस सीट पर आप ने आदिवासी नेता चैतार वसावा को उम्मीदवार बनाया है. वह डेडियापाडा सीट से विधायक भी हैं. चैतार का सामना बीजेपी के छह बार के सांसद मनसुख वसावा से है. चैतार के लिए यह चुनाव काफी चुनौतियों भरा है. वन अधिकारियों को कथित रूप से धमकाने से एक मामले में वह और उनकी पत्नी शकुंतला को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था. हालांकि इसी साल फरवरी में उन्हें जमानत मिल गई लेकिन कोर्ट के स्टे के चलते चैतार को अपने चुनाव क्षेत्र में जाकर प्रचार की इजाजत नहीं थी.
ऐसे में चैतार के चुनाव प्रचार का मोर्चा संभाला उनकी दोनों पत्नियों- शकुंतला (34) और वर्षा (30) ने. दोनों सरकारी कर्मचारी थीं लेकिन 2022 गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले इस्तीफा देकर चैतार के लिए चुनाव प्रचार किया था. शकुंतला और वर्षा दोनों आदिवासी इलाकों में जाकर चैतार के लिए वोट की अपील करती हैं. वर्षा ने जनवरी में नेतरंग तहसील में एक रैली का प्रतिनिधित्व भी किया था, जिसमें आप के शीर्ष नेता अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान भी शामिल हुए थे.
चैतार के करीबी और उनका चुनाव प्रचार संभाल रहे मधुसिंह बताते हैं, "कोर्ट के आदेश के चलते चैतार भाई को उनके क्षेत्र में जाने की अनुमति नहीं थी, तब उनकी पत्नियों और समर्थकों ने उनके लिए प्रचार किया था. शकुतंला और वर्षाबेन ने डोर-टु-डोर कैंपनिंग में लोगों के घर जाकर वोट मांगे."
वह बताते हैं, "इसके अलावा आप कार्यकर्ता चैतार की गैरमौजूदगी में उनका कटआउट लेकर गांव-गांव जाते थे और छोटी जनसभा करते थे. इसके जरिए यह संदेश देने की कोशिश थी कि भले ही चैतार भाई को यहां आने की इजाजत न हो लेकिन वह फिर भी हमेशा लोगों के दिलों में रहेंगे."
गौरतलब है कि गुजरात के अधिकांश आदिवासी समुदायों में, बहुविवाह स्वीकृत सामाजिक प्रथा है. अनुसूचित जनजातियों को हिंदू विवाह अधिनियम के प्रावधानों से छूट दी गई है. मधुसिंह बताते हैं, "यह दादा और परदादा के समय से चला आ रहा है. किसी तरह का आपस में बैर नहीं रहता और सभी साथ में रहते हैं." भरूच में तीसरे चरण यानी 7 मई को वोटिंग है.
चंद्रशेखर ने अपनाया क्राउडफंडिंग का देसी तरीका
उम्मीदवार: चंद्रशेखर
सीट: नगीना, उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश के बिजनौर की नगीना लोकसभा सीट पर पहले चरण (19 अप्रैल) में बेहद दिलचस्प मुकाबला हुआ. यहां बीजेपी, सपा और बसपा को चुनौती दे रहे हैं दलित युवा नेता चंद्रशेखर. पहले चर्चा थी कि वह INDIA गठबंधन के तहत प्रत्याशी हो सकते हैं लेकिन अखिलेश यादव के साथ बात न बनने पर वह अकेले ही मैदान में उतरे. चंद्रशेखर के भाषणों के अलावा उनके कैंपेनिंग स्टाइल ने भी लोगों का खूब ध्यान खींचा. चंद्रशेखर ने केतली चुनाव चिह्न के साथ प्रचार किया. इस दौरान वह जनसभाओं में केतली लेकर जाते थे और लोगों से वोट की अपील के साथ एक नोट एक वोट का आह्वान करते थे. इसके अलावा उनका एक स्लोगन भी है, 'सारी पार्टी देखली, अबकी बार केतली'
आजाद समाज पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष सौरभ किशोर ने बताया, "चंद्रशेखर कांशीराम (बसपा संस्थापक) को अपना आदर्श मानते हैं. उनके 'एक नोट एक वोट' के फॉर्म्युले को लेकर चंद्रशेखर जहां जनसभाओं में जाते, वहां केतली लेकर जाते. एक आइडिया यह है कि केतली चुनाव चिह्न के रूप में लोगों के जेहन में उतारना है और दूसरा उसमें लिखा हुआ है कि एक नोट एक वोट, तो वहां पर जो पब्लिक रहती है, वो अपनी इच्छानुसार उसमें पैसे डालती है."
सौरभ आगे कहते हैं, "आजकल यह दौर है जो लोग रैली में आते हैं उन्हें पैसे देकर बुलाया जाता है. उसके उलट हम लोगों की जो भी रैलियां हो रही हैं और नुक्कड़ सभाएं हो रही हैं उसमें लोग खुद अपना पैसा लगाकर व्यवस्था करते हैं, टेंट कुर्सी वगैरह लगाते हैं. फिर जब भाई (चंद्रशेखर) आह्वान करते हैं तो उसी में पैसे भी डालते हैं 10, 20 से लेकर 100 ,500 रुपये तक जिसकी हैसियत होती है. उसका कॉन्सेप्ट यही है कि जो व्यक्ति पैसा देता है तो वह एक तरह से इमोशनली अटैच हो जाता है उस चीज से, तो लोगों की एक मोहब्बत है कि वो खुद व्यवस्था भी कर रहे हैं और पैसे भी दे रहे हैं चुनाव लड़ने के लिए."
चंद्रशेखर के करीबी सौरभ बताते हैं, "क्राउडफंडिंग का जो कॉन्सेप्ट है उसको देसी लेवल पर सोचेंगे तो एक नोट एक वोट को उसी में बदला गया है. हमारे पास पूंजिपतियों का पैसा नहीं है हमे जनता ही चुनाव लड़ा रही है." सौरभ ने बताया कि चंद्रशेखर पिछले डेढ़ महीने से एक दिन में 15-20 जनसभाएं कर रहे थे.
चुनाव चिह्न मिला खटिया, तो जनता से की अनोखी अपील
उम्मीदवार: इंजीनियर प्रवीण गजभिये
सीट: जबलपुर, मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश के जबलपुर में बीजेपी के आशीष दुबे का कांग्रेस के दिनेश यादव के साथ मुकाबला है. पिछले 28 साल से यह सीट बीजेपी का गढ़ रही है. जबलपुर में 55 साल के निर्दलीय उम्मीदवार इंजीनियर प्रवीण गजभिये ने अपने प्रचार से सबका ध्यान खींचा. खटिया (पलंग) चुनाव चिह्न के साथ प्रवीण ने एक दिलचस्प नारा भी बनाया है. वह अपने क्षेत्र में खटिया लेकर जगह-जगह चुनाव प्रचार करते नजर आए. वहीं उनके समर्थक नारा लगाते, 'वर्तमान व्यवस्था घटिया है, जिसका समाधान घटिया है' और 'बटन दबाओ चारपाई की, हिसाब लो पाई-पाई की.'
बूम से बातचीत में प्रवीण बताते हैं, "75 साल में कांग्रेस और बीजेपी ने देश का सर्वनाश करके लोगों को भुखमरी की हालत में पहुंचा दिया हैं. इसलिए हम जबलपुर के लोगों ने फैसला किया है कि हम इनकी खटिया खड़ी करेंगे." प्रवीण ने जबलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज से बीसिविल की डिग्री हासिल की थी. वह बताते हैं, 40 साल पहले इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के बाद भी नौकरी नहीं की. मुझे समाज सेवा करना था. उन्होंने अपनी वोट अपील में लोगों से कहते, "भ्रष्टाचारी और गुंडागर्दी से इस समाज का विनाश करने वालों को सबक सिखाने के लिए 15 नंबर का बटन दबाओ और खटिया को वोट दो."
प्रवीण ने बताया कि उन्होंने 2009 में बसपा से पार्षदी का चुनाव जीता था. उनके समर्थक बताते हैं कि प्रवीण के प्रचार का तरीका बहुत सिंपल है. वह जब पार्षद चुने गए थे तो हाथी लेकर नगर निगम की सदन में पहुंचे थे. इस बार वह लोगों से करते कि "आपके घर में जो खटिया है उसका ध्यान रखें और वोट करें."
इसके बाद उन्होंने 2013 में विधानसभा का चुनाव भी लड़ा था. 2014 में प्रवीण ने पहली बार सांसदी का चुनाव लड़ा था और अब 10 साल बाद वह फिर से मैदान में हैं. इस बार वह बहुजन मुक्ति पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं. प्रवीण गजभिये बताते हैं कि समाज सेवा के चलते उन्हें शादी नहीं की और अपने समर्थकों और संगठन के सदस्यों को अपना परिवार मानते हैं.
बता दें कि जबलपुर में 19 अप्रैल को वोटिंग हुई थी. प्रवीण ने बताया, "55 साल की उम्र में हर विधानसभा क्षेत्र में घूम-घूमकर प्रचार किया. कभी समर्थकों के साथ खाट लेकर पैदल चले तो कभी साइकिल पर सवार होकर वोट अपील की."