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मानव विकास सूचकांक में भारत एक स्थान ऊपर, अब 129 वें स्थान पर

2005 और 2016 के बीच, प्रति व्यक्ति भारत की सकल राष्ट्रीय आय दोगुनी हुई है और 27.1 मिलियन लोग गरीबी से बाहर आए हैं।

By - Shachi Sutaria | 12 Dec 2019 12:26 PM IST

संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) द्वारा 2019 मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) रैंकिंग में भारत एक स्थान ऊपर पहुंचा है। यानी भारत की रैंकिंग 130 से 129 पहुंच गई है। इस सूचकांक में 189 देश शामिल हैं। भारत ने कुछ क्षेत्रों में सुधार दिखाया है, जैसे देश में पूर्ण गरीबी में रहने वाले लोगों की संख्या में गिरावट हुई है और जीवन प्रत्याशा, शैक्षिक स्तर और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच में वृद्धि हुई है।

भारत का स्कोर 0.647, जीवन प्रत्याशा 69.4 वर्ष, स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्ष 12.3 वर्ष, औसत स्कूली शिक्षा के वर्ष 6.5 वर्ष और की प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय 6,829 ($) है।

मानव विकास सूचकांक क्या है?

मानव विकास सूचकांक एक सांख्यिकीय साधन है जिसका उपयोग किसी देश की उपलब्धियों और उसके सामाजिक और आर्थिक आयामों की प्रगति को मापने के लिए किया जाता है।

शिक्षा के स्तर और प्रति व्यक्ति सकल राष्ट्रीय आय के साथ यह जन्म के समय जीवन प्रत्याशा का गुणोत्तर औसत लेता है। शैक्षणिक स्तर स्कूली शिक्षा के अपेक्षित वर्षों और स्कूली शिक्षा के औसत वर्षों के अंकगणित से निर्धारित होता है।

आय से परे, औसत से परे, और आज से परे: भारत की भूमिका

इस वर्ष की रिपोर्ट का विषय है, "आय से परे, औसत से परे, आज से परे है: 21 वीं सदी में मानव विकास में असमानताएं। "

आय से परे सार्वजनिक व्यय और निष्पक्ष कराधान, कर्मचारियों की शक्ति, स्वास्थ्य और शिक्षा पर सार्वजनिक व्यय पर केंद्रित है। इस पहलू में, रिपोर्ट में बताए गए प्रमुख उदाहरण में भारत के माइंडस्पार्क एप्लिकेशन के बारे में कहा गया है जो प्रत्येक छात्र के प्रारंभिक सीखने के स्तर को बेंचमार्क करने के लिए टेकनोलोजी का उपयोग करता है और गतिशील रूप से व्यक्तिगत स्तर और प्रगति की दर से मेल खाने के लिए सामग्री को निजीकृत करता है।

इसके साथ ही, भारत ने अपनी पूर्ण गरीबी को आधा कर दिया है। लेकिन क्षैतिज असमानताएं थीं। क्षैतिज असमानता तब होती है जब समान मूल और बुद्धि के लोगों को उनके सामाजिक-आर्थिक, सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के कारण समान सफलता नहीं मिलती है और उनकी स्थिति, आय और धन में असमानता होती है।

इस क्षैतिज असमानता ने दिखाया है, निचले 40 प्रतिशत की आय वृद्धि ( 2000 और 2018 के बीच - 58 प्रतिशत आबादी ) औसत से काफी कम थी। स्पेक्ट्रम के दूसरे छोर पर टॉप 1 प्रतिशत ने देखा कि उनकी आय 2000 और 2007 के बाद से औसत से काफी अधिक है।

औसत से परे ये सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक अंतर पर केंद्रित है। यह समाज में मौजूद पूर्वाग्रहों को जन्म देने वाले लैंगिक असमानता और लैंगिक अंतर पर केंद्रित है। भारत में लैंगिक पक्षपात और सामाजिक मानदंडों के अनुसार व्यवहार करने वाले पुरुषों और महिलाओं दोनों का अनुपात बढ़ा है।

भारत ने टेकनोलोजी में भी प्रगति की है और आज के दृष्टिकोण से परे लागू करने के लिए रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन के उपायों की दिशा में काम कर रहा है। 'आज से परे' (बियॉन्ड टुडे) में इन दो व्यवस्थित परिवर्तनों पर ध्यान केंद्रित किया गया है।

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