वर्ष 2015 में ओस्लो में ली गयी तस्वीर स्वीडन हिंसा से जोड़कर वायरल
बूम ने तस्वीर लेने वाले फ़ोटोग्राफर से बात की जिन्होंने बताया की तस्वीर पांच साल पुरानी है
नॉर्वे की राजधानी ओस्लो में करीब पांच साल पहले ली गयी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर हाल ही में हुए स्वीडन दंगों से जोड़कर फ़र्ज़ी दावों के साथ शेयर की जा रही है | दावा किया जा रहा है कि स्वीडन में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने मानवश्रृंखला बनाकर यहूदी और स्वीडिश गिरिजाघरों को दंगाइयों से बचाया |
बूम ने तस्वीर खींचने वाले पत्रकार एवं फ़ोटोग्राफर रयान रोड्रिक बैलेर से संपर्क किया जिन्होंने पुष्टि की कि तस्वीर पांच साल पुरानी है और एक अलग घटना से सम्बंधित है |
आप को बात दें की अगस्त 28 को स्वीडन के शहर माल्मो में तब हिंसक प्रदर्शन भड़क उठे जब स्ट्राम कुर्स नामक पार्टी के कार्यकर्ताओं ने विरोध दर्ज़ करने के लिए क़ुरान की एक प्रति जलाई थी | अंग्रेज़ी दैनिक इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ इस घटना के बाद भीड़ इकठ्ठा हुई |
रिपोर्ट्स की माने तो इस घटना के बाद मुस्लिम विरोधी गतिविधियों के ख़िलाफ स्वीडन के मुस्लिमों ने प्रदर्शन किया और इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने कथित तौर से पुलिस पर चीज़ें फेंकी और कार के टायर जलाए | यहाँ और यहाँ पढ़ें |
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वायरल पोस्ट के साथ लिखे अंग्रेज़ी कैप्शन में कहा गया है: माशाल्लाह!! स्वीडन में मुस्लिमों ने 'ह्यूमन चैन' बनाई ताकि स्वीडिश चर्चों और यहूदी उपासनागृह को भीड़ के हमले से बचाया जा सके | इसलिए मुस्लिम शरणार्थी किसी अन्य शरणार्थियों से बेहतर हैं | आपने कभी किसी क्रिस्चियन, यहूदी या हिन्दू को देखा है मस्जिद बचाते हुए? नहीं, क्योंकि इस्लाम ही दुनिया में एकमात्र शांतिप्रिय धर्म है और दुनिया कभी शांत नहीं रह सकती तब तक जब तक पूरी दुनिया इस्लाम न अपना ले |"
वायरल पोस्ट से प्रतीत होता है कि इसके द्वारा मुस्लिम समुदाय पर तंज कसने की कोशिश की गयी है | पिछले दिनों बंगलुरु में हुए सांप्रदायिक हिंसा में भी एक ऐसा ही उदहारण सामने आया था जब मुस्लिम समुदाय के युवा मानवश्रृंखला बना कर एक मंदिर के सामने खड़े हो गए थे |
बंगलुरु हिंसा के बारे में विस्तारपूर्ण जानकारी के लिए यहां क्लिक करें |
गौरतलब बात ये है कि तस्वीर को शेयर करने वाले कई पोस्ट्स ने दरअसल अब्दुल हमीद नामक व्यक्ति द्वारा किये गए पोस्ट का स्क्रीनशॉट शेयर किया है | बूम ने हमीद नमक इस शख्स कि प्रोफ़ाइल खोजने कि कोशिश की मगर हमें सफ़लता नहीं मिली |
अन्य पोस्ट्स नीचे देखें |
पोस्ट्स नीचे देखें और इनके आर्काइव्ड वर्शन यहाँ और यहाँ देखें |
This happened for real or photoshopped? 😭😭😭😭😭😭😭 pic.twitter.com/vzEen2tvhq
— SuperStar Raj 🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 (@NagpurKaRajini) August 31, 2020
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फ़ैक्ट चेक
बूम ने वायरल तस्वीर को रिवर्स इमेज सर्च कर के देखा | हमें 22 फ़रवरी 2015 का एक ट्वीट मिला जिसमें अलग कोणों से खींची गयी ऐसी ही तस्वीरें मिली और इंडिपेंडेंट नामक ब्रिटिश न्यूज़ पोर्टल कि एक रिपोर्ट भी दिखी |
Lovely gesture. Muslims form a #RingOfPeace around #Oslo synagogue http://t.co/qc46L6VKmO #ringOfPeaceOslo pic.twitter.com/SIwlKcuC8m
— Joseph Willits (@josephwillits) February 21, 2015
इस ट्वीट में रिंग ऑफ़ पीस की बात कि गयी थी | आगे सर्च करने पर हमें 'न्यू इंटरनेशनल' नामक वेबसाइट पर यही तस्वीर मिली जिसमें फ़ोटोग्राफर का नाम दिया गया था |
इसके बाद बूम ने पत्रकार और फ़ोटोग्राफर रयान रोड्रिक बैलेर से संपर्क किया |
"यह तस्वीर पांच साल पहले 21 फ़रवरी 2015 को ली gayiथी | यहाँ के मुस्लिम युवक और युवतियों ने डेनमार्क में ज्यूइश उपासनागृह पर हुए हिंसक हमले के बाद नॉर्वे में छोटे से ज्यूइश समुदाय के प्रति समर्थन और संरक्षण के नज़रिये से 'रिंग ऑफ़ पीस' बनाई थी," रयान ने बूम को ईमेल द्वारा बताया |
रयान ने बूम के साथ कुछ लेख भी साझा किये जो उन्होंने इस घटना के बाद लिखे थे | यहाँ और यहाँ देखें | इन लेखों में वायरल हो रही तस्वीर का भी इस्तेमाल हुआ है |
उन्होंने बूम को बताया कि उनके द्वारा ली गयी तसवीरें कई मीडिया संस्थानों ने इस्तेमाल किया था जिनमें से एक हफ़्फिंगटन पोस्ट भी है | नीचे देखें |
क्या थी ये घटना?
यूरोप में यहूदियों पर हो रहे हमलो के ख़िलाफ़ यहूदी समुदाय का साथ देने के लिए नॉर्वे में ऐसी मानव श्रृंखलाएं वर्ष 2015 के शुरुवाती महीनों में बनाई जा रही थी | ये तस्वीर भी ऐसे ही एक प्रदर्शन को दिखाती है | और जानकारी के लिए पढ़ें फ़रवरी 22, 2015 को बीबीसी में छपे इस रिपोर्ट को |