फेक न्यूज फैलाने वाले फेसबुक-इंस्टा पेजों ने ऐड पर खर्च किए 2 करोड़ रुपये
सोशल मीडिया अकाउंट 'उल्टा चश्मा' और इसके पेजों के एक नेटवर्क ने किसान प्रदर्शन से लेकर मुसलमानों को निशाना बनाते हुए कई फेक पोस्ट शेयर किए.
25 नवंबर 2023 को राजस्थान विधानसभा चुनाव के लिए मतदान हुए थे. मतदान के दिन से ठीक तीन दिन पहले उल्टा चश्मा (Ulta Chashma) नाम के एक फेसबुक पेज ने इंस्टाग्राम पर वीडियो ऐड चलाने शुरू किए. यह वीडियो पिछले साल उदयपुर में कन्हैयालाल नाम के हिंदू टेलर की भयावह हत्या से संबंधित था, जिसे दो मुस्लिम कट्टरपंथियों ने अंजाम दिया था.
इस फेसबुक पेज ने 22 नवंबर 2023 से मतदान वाले दिन (25 नवंबर 2023) तक बेहद परेशान और विचलित कर देने वाले ऐसे आठ वीडियो विज्ञापन चलाए.
20 सेकंड के वीडियो में एक टेक्स्ट भी था. इसमें लिखा गया था, 'वोट देने से पहले याद रखो उदयपुर के हिंदू कन्हैयालाल की आखिरी चीखें.’
कन्हैया लाल राजस्थान के उदयपुर निवासी एक टेलर था. 28 जून 2022 को दो मुस्लिम कट्टरपंथियों ने उसकी निर्मम हत्या कर दी थी. हत्यारों ने इस जघन्य घटना का वीडियो भी बनाया और उसे सोशल मीडिया पर वायरल कर दिया था.
इस तरह के भड़काऊ और उत्तेजक विज्ञापनों के अलावा भी उल्टा चश्मा (Ulta Chashma) पेज पर कई तरह की पोस्ट हैं. बूम की जांच में पाया गया कि यह पेज विपक्षी दलों को निशाना बनाने के लिए अभद्र भाषा, गलत सूचना और झूठे प्रचार का भी इस्तेमाल करता है.
बूम ने यह भी पाया कि इस नेटवर्क ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे प्रदर्शनकारी किसानों को भी निशाना बनाते हुए उनके खिलाफ गलत सूचनाएं फैलाईं. नेटवर्क ने भारत में मुसलमानों के खिलाफ हेट स्पीच भी शेयर कीं.
बूम की जांच में सामने आया कि पिछले साल नवंबर में शुरू हुए इस नेटवर्क ने सिर्फ चार महीने में ही फेसबुक और इंस्टाग्राम पर एक हजार से अधिक ऐड को प्रमोट करने के लिए दो करोड़ रुपये से ज्यादा पैसे खर्च कर दिए हैं.
गौरतलब है कि देश में अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए काउंट डाउन शुरू हो गया है. ऐसे में तमाम राजनीतिक दलों के आईटी सेल की ओर से सत्ता जीतने की जंग में फेक न्यूज को भी हथियार बनाया जा रहा है.
डिजिटल अधिकारों की वकालत करने वाले ग्रुप ‘इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन’ के कार्यकारी निदेशक प्रतीक वाघरे ने बूम को बताया, ‘मुझे लगता है कि हम में से बहुत से लोग इस बात से सहमत हैं कि चुनाव के आस-पास चलने वाले ऐसे अस्पष्ट कैंपेन आपको मिलेंगे, जिनसे निपटना अपने आप में ही काफी कठिन है.’
वाघरे ने आगे कहा, ‘चुनौती काफी बड़ी हो जाती है. जैसे, इन प्रक्रियाओं में पैसे का लेन-देन कितने बड़े स्तर पर किया जा रहा है? यह ऑपरेशन कितने बड़े और व्यापक हैं? आपने एक पेज की पहचान की है, जबकि इसी तरह के पेजों का एक बहुत बड़ा नेटवर्क भी हो सकता है. और इस तरह की स्थिति में मामले की गंभीरता के स्तर को निर्धारित करना कठिन हो जाता है.’
नवंबर में बनाए गए थे पेज
‘उल्टा चश्मा’ नाम का फेसबुक पेज 6 नवंबर 2023 को बनाया गया था. इसमें छह अन्य पेजों और संबंधित इंस्टाग्राम अकाउंट का एक नेटवर्क शामिल है. इसमें MemeXpress और Political X-ray नाम के दो राजनीतिक व्यंग्य फेसबुक पेज भी शामिल हैं.
इनमें से चार फेसबुक ऐसे हैं जिनमें विपक्ष शासित राज्यों को निशाना बनाया जाता है. पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के लिए Sonar Bangla, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) शासित तमिलनाडु के लिए Tamilakam, कांग्रेस शासित कर्नाटक के लिए Kannada Sangamam और Malabar Central जो केरल में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट को निशाना बनाता है.
फेसबुक पर ये पेज खुद को ‘डिजिटल क्रिएटर' बताते हैं और इसमें किसी तरह के पॉलिटिकल कैंपेन की तरफ इशारा करता कोई लिंक भी नहीं है.
हालांकि, इस नेटवर्क का विज्ञापनों पर भारी भरकम खर्च हैरान करने वाला है. इस लेख को प्रकाशित करने के समय तक यह नेटवर्क फेसबुक और इंस्टाग्राम पर विज्ञापनों के लिए दो करोड़ 47 लाख एक हजार नौ सौ बानवे (24,701,992) रुपये खर्च कर चुका है.
इन पेजों पर शेयर की गई सामग्री बेहद चालाकी पूर्ण तरीके से बनाई गई है. इसमें वीडियो, मीम्स, कॉमिक्स और पोस्ट को हैशटैग के साथ शेयर किया जाता है.
इन पेजों पर राहुल गांधी, अरविंद केजरीवाल, ममता बनर्जी, एमके स्टालिन, तेजस्वी यादव जैसे कई विपक्षी नेताओं पर तीखे हमले किए गए हैं.
टेक्सास यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर मीडिया एंगेजमेंट में प्रोपेगैंडा रिसर्च लैब की हेड ऑफ रिसर्च इंगा ट्रॉटिग ने बूम से बातचीत में कहा, ‘यह कुछ ऐसा है जिसे हम निश्चित रूप से दुनिया भर में देखते हैं. अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव से कई महीने पहले से ही जो बाइडेन की उम्र का मजाक उड़ाने वाले मीम्स काफी वायरल हैं.’
ट्रॉटिग ने आगे कहा, ‘बिना किसी टकराव के लोगों को प्रभावित करने के लिए व्यंग्य काफी असरदार रणनीति है. उदाहरण के लिए, एक संदेश में किसी प्रतिद्वंद्वी की आर्थिक नीतियों की बिल्कुल सीधे तरीके से आलोचना करने के बजाए, प्रचारक एक व्यंग्यात्मक मैसेज के साथ एक मीम तैयार करते हैं. इस तरह कम आक्रामक तरीके से अपनी बात पहुंचा दी जाती है,'
किसान प्रदर्शन को लेकर फैलाईं फेक न्यूज
27 फरवरी को ‘उल्टा चश्मा’ के इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो शेयर किया गया. इसमें कुछ सिख एक मुस्लिम शख्स को पगड़ी बांधते हुए दिखे.
वीडियो के साथ किसान प्रदर्शन का जिक्र करते हुए मुसलमानों पर निशाना साधा गया, 'तो, ये लोग चला रहे हैं आंदोलन.’
हालांकि, बूम के फैक्ट चेक से पता चला है कि यह वीडियो जून 2022 का था. वीडियो पंजाबी गायक सिद्धू मूसेवाला के अंतिम संस्कार से पहले पगड़ी बांधने के कार्यक्रम से जुड़ा था. मूसेवाला की 29 मई 2022 को हत्या कर दी गई थी.
इसी तरह ‘उल्टा चश्मा’ के इंस्टाग्राम हैंडल ने पंजाब की बरनाला ट्रैक्टर मंडी में ट्रैक्टर की बिक्री को लेकर बहसबाजी का एक वीडियो भी पोस्ट किया था. इसके साथ दावा किया गया था कि प्रदर्शनकारी किसान पैसे को लेकर झगड़ा कर रहे हैं. फैक्ट चेक यहां पढ़ें.
किसानों के विरोध प्रदर्शन को निशाना वाली अधिकांश फेक न्यूज पहले वेरिफाइड एक्स अकाउंट से शेयर किए गए और फिर दूसरे सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स पर भी वायरल हो गए.
इसी अकाउंट ने कनाडा का एक वीडियो भी पोस्ट किया, जिसमें कुछ खालिस्तान समर्थक एक फुटबॉल से लिपटे तिरंगे के साथ खेलते दिख रहे थे. वीडियो को किसानों के प्रदर्शन से जोड़कर शेयर किया गया. बूम ने इस दावे का फैक्ट चेक भी किया था.
इसी तरह एक और पोस्ट में प्रदर्शनकारियों को नकली किसान बताते हुए एक वीडियो शेयर किया गया और आरोप लगाया गया कि प्रदर्शनकारी खालिस्तान समर्थक थे.
बूम ने पाया कि ‘उल्टा चश्मा’ के इंस्टाग्राम अकाउंट पर इस साल किसानों के विरोध प्रदर्शन से जोड़ते हुए कई फेक न्यूज पोस्ट की गईं.
अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हुए किए गए पोस्ट
‘उल्टा चश्मा’ पेज ने भारतीय मुसलमानों को निशाना बनाने वाली हेट स्पीच भी पोस्ट कीं. राजस्थान विधानसभा चुनाव के दौरान इसने एक तस्वीर के साथ एक पोस्ट शेयर किया. यह एक छाया तस्वीर थी. इसमें टोपी पहने एक शख्स को तलवार लहराते हुए दूसरे का पीछा करते हुए दिखाया गया था. पोस्ट को 'सावधान राजस्थान' के कैप्शन के साथ शेयर किया गया था.
बूम के आपत्ति जताए (flagged) जाने के बाद मेटा (Meta) ने पोस्ट को हटा दिया था. मेटा के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘हमने अपने सामुदायिक मानकों का उल्लंघन करने वाले पोस्ट के खिलाफ कार्रवाई की है.’
केंद्र सरकार के लिए सकारात्मक पोस्ट
बूम ने पाया कि इन पेजों पर ऐसे पोस्ट शेयर हुए जिनका मकसद सरकार का समर्थन और सकारात्मक छवि गढ़ना था.
उदाहरण के लिए, उल्टा चश्मा ने कश्मीर में सामान्य हालात दिखाने के लिए पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर की फरवरी में अपने परिवार के साथ वहां की यात्रा का इस्तेमाल किया था.
इस हैंडल ने अपनी पोस्ट में दो वीडियो का एक कोलाज था. इसमें एक तरफ घाटी में पथराव का एक पुराना वीडियो था, तो दूसरी ओर तेंदुलकर के कश्मीर के गुलमर्ग में स्थानीय लोगों के साथ क्रिकेट खेलने का वीडियो था. पोस्ट को आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद कश्मीर में आए बदलाव से जोड़कर शेयर किया गया था.
इसी नेटवर्क के Malabar Central नाम के एक पेज ने केरल में मोदी की रैली का एक वीडियो मोंटाज पोस्ट किया था. इसमें प्रधानमंत्री की प्रशंसा करते हुए भाजपा समर्थकों की आवाज भी शामिल थी.
इस पोस्ट को प्रचारित करने के लिए एडवर्टाइजर के रूप में ‘उल्टा चश्मा’ को लिस्टेड किया गया था.
इसी नेटवर्क के एक पेज Political X-ray पर जनवरी 2024 में महाराष्ट के मीरा रोड हिंसा से जोड़ते हुए एक कार्टून पोस्ट किया गया था. पोस्ट में एक साइन बोर्ड पर ‘मीरा रोड’ लिखा था और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे को उस पर बुलडोजर चलाते हुए दिख रहे थे.
गाइडलाइंस के बावजूद बच निकलते हैं ऑपरेटर्स
मेटा के प्लेटफॉर्म पर विज्ञापनों, खास तौर से राजनीतिक विज्ञापनों की पारदर्शिता में सुधार लाने के लिए एक ऐड लाइब्रेरी बनाई गई थी.
जो एडवर्टाइजर पॉलिटिकल और सोशल या इलेक्शन को लेकर विज्ञापन चलाते हैं, उन्हें प्लेटफॉर्म के दिशानिर्देशों के अनुसार, मेटा की विज्ञापन प्राधिकरण प्रक्रिया को पूरा करना होता है.
इन विज्ञापनों में भुगतान करने वाली संस्था का नाम और एक डिस्क्लेमर भी होना चाहिए.
हालांकि, राजनीतिक दलों और उनके लिए काम करने वाली कंसेल्टेंसी फर्म्स ने एक ऐसा समाधान तैयार किया है, जिससे कई बार वे निगरानी से बच जाते हैं.
राजनीतिक प्रचार अभियान ऐसे फोन नंबरों का प्रयोग करते हैं जिनका पता लगाना मुश्किल होता है, वे अस्पष्ट पते देते हैं और पेज के एक ही नाम से ही प्लेसहोल्डर वेबसाइट बनाते हैं.
उदाहरण के लिए उल्टा चश्मा ने ऐड डिस्क्लेमर में अपना एड्रेस केवल चतरपुरा, राजस्थान बताया है. चतरपुरा राजस्थान के जयपुर जिले की सांगानेर तहसील में स्थित एक गांव है.
एक सामान्य फेसबुक या इंस्टाग्राम यूजर ऐड लाइब्रेरी में भी इन पेज या अकाउंट को देखे, तो भी यह नहीं पता लगा सकता कि इन्हें कौन चला रहा है.
इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के प्रतीक वाघरे ने बताया, ‘इस तरह के ऑपरेटर नजर में आने से बचने के लिए नए हमेशा नए तरीके खोजते रहते हैं, लेकिन मेटा इनमें से अधिकतर का पता लगा सकता है. हालांकि यह एक कठिन काम है, लेकिन इसके बावजूद मेटा की जांच से बचना इनके लिए आसान नहीं होना चाहिए.’