क्या इन लोगों को जेएनयू में ब्राह्मण विरोधी नारे लिखने पर पीटा गया? फ़ैक्ट चेक
बूम ने अपनी जांच में पाया कि वायरल कोलाज के साथ किया जा रहा दावा ग़लत है, जेएनयू के 'ब्राह्मण-विरोधी नारों' के विवाद से कोलाज में दिख रहे व्यक्तियों का कोई सम्बन्ध नहीं है.
सोशल मीडिया पर एक कोलाज बहुत अधिक वायरल है जिसमें तीन लोगों की तस्वीरें दिख रही हैं. कोलाज में दिख रहे तीनों लोग लहूलुहान और उनके चेहरे पर चोटों के निशान दिख रहे हैं. कोलाज के साथ दावा किया जा रहा है कि ये लोग वही हैं जिन्होंने जवाहर लाल विश्वविद्यालय (जेएनयू) की दीवारों पर 'ब्राह्मण भारत छोड़ो' के नारे लिखे थे, इसीलिए लोगों ने इनका ये हाल कर दिया है.
दरअसल, मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज की दीवारों पर बीते गुरुवार 1 दिसंबर 2022 को ब्राह्मण विरोधी नारे लिखे मिले, जिसके बाद सोशल मीडिया पर यह मुद्दा वायरल हो गया. जेएनयू प्रशासन ने घटना की निंदा करते हुए विभागीय जाँच के आदेश दिए हैं. दिल्ली में रहने वाले एक वकील के द्वारा इस मामले पर 'अज्ञात लोगों' के विरुद्ध पुलिस में शिकायत भी की गयी है.
बूम ने अपनी जांच में पाया कि वायरल कोलाज के साथ किया जा रहा दावा ग़लत है, जेएनयू के 'ब्राह्मण-विरोधी नारों' के विवाद से कोलाज में दिख रहे व्यक्तियों का कोई सम्बन्ध नहीं है.
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फेसबुक पर एक यूज़र ने कोलाज को शेयर करते हुए लिखा,'कसम से अब ये तीनो सपने में भी नही लिखेंगे, ब्राम्हण भारत छोड़ो यही तीनो थे दीवार पर लिखने वाले'.
फ़ेसबुक पर ये कोलाज इसी तरह के दावों के साथ बेहद वायरल है.
फ़ैक्ट चेक
बूम ने सबसे पहले जेएनयू में 1 दिसंबर 2022 को सामने आये ब्राह्मण विरोधी नारों के सम्बन्ध में मीडिया रिपोर्ट्स खंगाली तो किसी भी रिपोर्ट में आरोपियों की पहचान के बारें में कोई सुराग नहीं मिला. सभी रिपोर्ट्स में आरोपियों को 'अज्ञात' ही बताया गया था.
वायरल कोलाज को गूगल रिवर्स इमेज सर्च किया तो 'द वायर' की 2 दिसंबर 2022 की रिपोर्ट में यही तस्वीर मिली. रिपोर्ट के मुताबिक़ 'कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रेप्रेशन' (राज्य दमन के ख़िलाफ़ अभियान) लगभग 36 संस्थाओं से बना एक संयुक्त मोर्चा है जिसके सदस्य दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस में जेल में बंद प्रो. जी.एन. साईंबाबा सहित अन्य राजनितिक बंदियों की रिहाई के लिए प्रदर्शन कर रहे थे तभी कुछ लोगों ने उन पर हमला किया. कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रेप्रेशन (सीएएसआर) के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की छात्र इकाई अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सदस्यों ने उनपर यह हमला किया है.
रिपोर्ट के अनुसार ये घटना गुरुवार, 1 दिसंबर 2022 की शाम को हुई थी, जिसमें कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रेप्रेशन के 5 सदस्यों को चोटें आयीं वहीं कथित तौर एबीवीपी के 2 सदस्य भी घायल हुए.
आगे बूम को कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रेप्रेशन (सीएएसआर) का 2 दिसंबर 2022 का इसी घटना पर पोस्ट रूपी वक्तव्य मिला, उसमें यही तस्वीर इस्तेमाल की गयी थी. पोस्ट में घटना को मौरिस पुलिस स्टेशन के सामने 1 दिसंबर की शाम 4 बजे का बताते हुए लिखा था कि भगत सिंह छात्र एकता मंच (बीएससीएएम) की कॉमरेड बादल के सिर पर ईंट से मारा गया जिससे उनके सिर पर दो टांके आए. बीएससीएएम के कॉमरेड अरहान को भी चेहरे पर बेल्ट से बेरहमी से पीटा गया. लॉयर्स अगेंस्ट एट्रोसिटीज (एलएलए) के कॉमरेड एहतमाम को भी गुंडों ने पीटा. उसके कान पर गंभीर चोट आई.
बूम ने तस्वीर में दिख रहे अरहान से संपर्क किया और वायरल तस्वीर के बारे में पूछा तो अरहान ने बताया कि कोलाज में पहली तस्वीर जो क्लीन शेव है और जिसमें गाल पर चोट के निशान दिख रहे हैं, वो वही हैं. उन्होंने कहा कि उस तस्वीर में जो दावा किया जा रहा है वो फेक है. मैं दिल्ली विश्वविद्यालय के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज का छात्र हूँ और भगत सिंह छात्र एकता मंच से जुड़ा हूँ. जिस दिन जेएनयू में ब्राह्मण विरोधी नारे की घटना हुई मैं उस पूरे दिन सीएएसआर के साथ मिलकर नार्थ कैंपस में कैंपेन कर रहा था. मैं उस दिन या उससे तीन-चार दिन पहले तक भी जेएनयू नहीं गया था. मेरा जेएनयू अथवा इस घटना से कोई सम्बन्ध नहीं है.
अरहान ने बताया की उनका दूसरा नाम अक्ष नेगी भी है. अरहान ने हमें 1 दिसंबर की खुद के साथ हुई घटना के बाद अस्पताल की तस्वीर भी भेजी.
इसके बाद बूम ने कोलाज में दिख रहे दूसरे व्यक्ति एहतमाम से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि जेएनयू की घटना से उनका कोई लेना-देना नहीं है. मैं लॉयर्स अगेंस्ट एट्रोसिटीज संस्था से जुड़ा हुआ हूँ और जामिया विश्वविद्यालय से मैंने लॉ किया है. हम तो सारे दिन डीयू में थे, शाम को हमले के बाद हिन्दू राव हॉस्पिटल में इलाज़ करने के दौरान मुझे जेएनयू की घटना के बारे में मालूम चला. हमारे साथ हुई घटना की एफआईआर कॉपी भी है. जेएनयू की घटना भी 1 दिसंबर को सामने आयी जबकि इस दिन हम सब यहाँ थे. ऐसे में हमारा वहां होना कैसे संभव है.
बूम ने कैंपेन अगेंस्ट स्टेट रेप्रेशन से जुड़े भगत सिंह छात्र एकता मंच की सदस्य बादल (लक्षिता राजोरा) से संपर्क किया. वायरल कोलाज में उनके सिर पर चोट दिख रही है. उन्होंने खुद को डीयू की जर्नलिज्म की छात्रा बताया और कहा कि जब हम लोग डीयू के नार्थ कैंपस में मार्च कर रहे थे तभी मौरिस पुलिस स्टेशन के सामने तीन गाड़ियों में एबीवीपी के गुण्डे आये, वे आदमी पार्टी के झंडों से मुंह ढके थे. उन्होंने पत्थर, रॉड और लाठियों से हम लोगों पर हमला करना शुरू कर दिया. इसके बाद हम लोग मौरिस पुलिस स्टेशन में घटना की एफआईआर भी दर्ज़ करवायी.
वायरल तस्वीर के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा,' ये फ़र्ज़ी है, हमारा इससे कोई लेना देना नहीं है. दक्षिणपंथी लोग ये फ़र्ज़ी प्रोपेगंडा फैला रहे हैं. इसके सन्दर्भ में हमने वक्तव्य भी जारी किया है'. भगत सिंह छात्र एकता मंच द्वारा जारी वक्तव्य-
उपरोक्त वक्तव्य में छात्रों ने जेएनयू में लिखे गए ब्राह्मण विरोधी नारों से खुद को अलग बताया. साक्ष्यों से स्पष्ट होता है की वायरल कोलाज के साथ किया जा रहा दावा फ़र्ज़ी है. जेएनयू में ब्राह्मण विरोधी नारे लगाने का आरोप अज्ञात व्यक्तियों पर है. उनकी पहचान को लेकर अभी तक मीडिया में कोई रिपोर्ट नहीं है.
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