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फैक्ट चेक

क्या है हमदर्द और रूह अफ़्ज़ा के ख़िलाफ़ वायरल फ़र्ज़ी दावों का सच?

बूम ने पाया की हमदर्द कंपनी जो रूह अफ़्ज़ा का उत्पादन करती है किसी भी तरह से जाती एवं धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती

By - Saket Tiwari |
Published -  14 Jun 2019 4:12 PM IST
  • फ़ेसबुक और अन्य सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर सांप्रदायिक भड़काऊ पोस्ट अक्सर होते रहते है | कई उनमें सही भी होते है पर कई फ़र्ज़ी | ऐसा ही एक पोस्ट "वी सपोर्ट आर.एस.एस" (We Support RSS) नामक फ़ेसबुक पेज पर शेयर किया गया है | यह पोस्ट रूह अफ़्ज़ा के बारे में हैं जिसे सांप्रदायिक ढंग से पोस्ट किया गया है |

    इस पोस्ट में एक फ़ोटो शेयर की गयी है जिसमें लिखा है: अपील: रूह अफ़्ज़ा वक़्फ़ बोर्ड के द्वारा चलाई जा रही कंपनी है जिसका सारा पैसा मज़ारों, मदरसों और मुसलमानों के विकास के लिए लगाया जाता है | सभी हिन्दू भाइयों से निवेदन है रूह आफ्ज़ा का उपयोग करके मज़ारों, मदरसों और मस्जिदों का सहयोग न करें | इसके बाद लाल रंग के बैकग्राउंड के साथ लिखा है रूह अफ़्ज़ा उसी वक़्फ़ बोर्ड की कंपनी है जो अयोध्या में राम मंदिर का विरोध करते हैं | वहीँ निचली और लिखा है निवेदक: वीर सावरकर संगठन |

    आपको बता दें की यह दावा झूठा है | आप इस पोस्ट को यहाँ और इसके आर्काइव्ड वर्शन को यहाँ देख सकते हैं |

    पोस्ट का स्क्रीन शॉट जिसमें रूह आफ्ज़ा का उपयोग न करने को कहा गया है

    फ़ैक्ट चेक

    कुछ सालों पहले किये गए दावे

    बूम ने जब इस सूचना को जांचा तो फ़ेसबुक पर पुराने भी कुछ फ़र्ज़ी दावे मिले | चूँकि रूह अफ़्ज़ा 'हमदर्द' का एक उत्पाद है | पुराने दावों में यह कहा गया है की हमदर्द में सिर्फ़ मुसलामानों को काम करने दिया जाता है और सिर्फ़ मुसलमान ही कंपनी को संभालते हैं | पोस्ट 2017 में फ़ेसबुक पर डाली गयी थी जिसकी शुरुआत इस प्रकार है : मशहूर दवा कंपनी *हमदर्द (Hamdard)* में एक भी हिन्दू युवक को काम नहीं मिलता, वो भी सिर्फ इसलिए कि वो हिन्दू है। अल्पसंख्यक मंत्रालय और वक्फ बोर्ड के करोड़ो रूपये की सहायता से चलने वाला "हमदर्द" वक्फ लैबरोटरी जिसके प्रोडक्ट साफी, रूह आफजा, सौलिन, जोशिना आदि है, उसके डिस्ट्रीब्यूटर या C&F बनने के लिए पहली शर्त है की आवेदक सिर्फ मुस्लिम होना चाहिए...

    आप यह पोस्ट नीचे और इसका आर्काइव्ड वर्शन यहाँ देख सकते हैं |

    बूम ने इन दोनों दावों को जांचने के लिए हमदर्द से संपर्क किया तो पुराने दावे को खारिज़ करते हुए हमदर्द के हेड ऑफ़ मार्केटिंग मंसूर अली ने कहा की जो कोई भी इस तरह के दावे कर रहा है उसे हम हमदर्द फैक्ट्री में और ऑफ़िस में बुलाना चाहेंगे ताकि वह ख़ुद देख सके की यह दावे फ़र्ज़ी हैं | दरअसल संगठन में अधिकतर सीनियर लेवल प्रबंधन कर्मचारी गैर मुसलमान है |


    जो कोई भी इस तरह के दावे कर रहा है उसे हम हमदर्द फैक्ट्री में और ऑफ़िस में बुलाना चाहेंगे ताकि वह ख़ुद देख सके की यह दावे फ़र्ज़ी हैं | दरअसल संगठन में अधिकतर सीनियर लेवल प्रबंधन कर्मचारी गैर मुसलमान है - मंसूर अली, हमदर्द के हेड ऑफ़ मार्केटिंग

    बूम ने हमदर्द द्वारा चलाई जा रही जामिआ विश्वविद्यालय के शिक्षकों की सूची भी देखी और पाया की हिन्दू, ईसाई, सीख़, मुसलमान धर्मों के शिक्षक एक साथ पढ़ाते हैं | आप नीचे स्क्रीन शॉट्स देख सकते है और हमदर्द जामिआ विश्वविद्यालय की वेबसाइट यहाँ उपलप्ध है |

    आप कई गैर मुस्लिम नाम देख सकते हैं

    नए दावे का सच क्या है?

    हाल ही में वायरल एक पोस्ट जिसमें 'हमदर्द सिर्फ़ मुसलमानों का विकास करता है' ऐसा दावा किया गया है | इसके लिए बूम ने हमदर्द से संपर्क किया तो आधिकारिक प्रवक्ता ने वृस्तृत रूप से जानकारी दी परन्तु नाम न प्रकाशित करने का अनुरोध किया | हमदर्द के प्रवक्ता ने कहा: हम एक नॉन प्रॉफ़िट संगठन है जो प्रगतिशील एवं शोध आधारित काम करता है | हमारा सारा लाभ सामाज में शिक्षा, स्वास्थ, आर्थिक कमज़ोर वर्ग के हित में लगाया जाता है जिसमें हमदर्द किसी भी तरह से जाती या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता | इस पोस्ट में जो दावा है वो फ़र्ज़ी है और हम निवेदन करते है की ऐसी कोई भी निराधार सूचना को पढ़कर गुमराह न हों |

    "हम एक नॉन प्रॉफ़िट संगठन है जो प्रगतिशील एवं शोध आधारित काम करता है | हमारा सारा लाभ सामाज में शिक्षा, स्वास्थ, आर्थिक कमज़ोर वर्ग के हित में लगाया जाता है जिसमें हमदर्द किसी भी तरह से जाती या धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता | इस पोस्ट में जो दावा है वो फ़र्ज़ी है और हम निवेदन करते है की ऐसी कोई भी निराधार सूचना को पढ़कर गुमराह न हों"

    Tags

    Featuredhamdardhamdard companyHinduMuslimsrooh afzawaqf board
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    Claim :   हमदर्द कंपनी का सारा मुनाफ़ा मुसलमानों के विकास में लगाया जाता है
    Claimed By :  Facebook pages
    Fact Check :  False
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